27 Rajab Ki Bid’at: Haqeeqat Ya Ghalat Fehmi Kya Hai Sach?

इस आर्टिकल में हम 27 Rajab Ki Bid’at और इस दिन के मकसद पर तफ्सीली गुफ्तगू करेंगे। क्या 27 राज़ब मनाना इस्लाम में सही है या यह एक गलतफहमी है? जानिए इस आर्टिकल में सच्चाई।

“इस्लाम एक मुकम्मल दीन है जो क़ुरआन और सुन्नत की रोशनी में चलने का हुक्म देता है। हर साल 27 राज़ब को मुस्लिम उम्माह के कुछ लोग शब-ए-मेराज के तौर पर मनाते हैं और इस रात को खास इबादत, नवाफिल, और महफिलों के जरिए याद करते हैं। लेकिन क्या इस अमल का इस्लाम में कोई सबूत है? क्या यह बिद’at है या सुन्नत? इस आर्टिकल में हम इस मसले का तहकीकी जायज़ा लेंगे।”

27 राज़ब और शब-ए-मेराज की हक़ीकत

27 राज़ब को अक्सर लोग शब-ए-मेराज के तौर पर मनाते हैं क्योंकि यह वह रात है जब नबी-ए-करीम ﷺ को अल्लाह तआला ने आसमानों की सैर कराई और उन्हें बहुत सी अजीम निशानियाँ दिखाई गईं। यह वाक़िया क़ुरआन और हदीस से साबित है, मगर इसकी खास तारीख़ के बारे में उलेमा के बीच इख़तिलाफ़ है।

27 राज़ब मनाना क्या सुन्नत है?

इस मसले पर उलेमा का नजरिया मुख्तलिफ़ है:

1. दलील के बिना इबादत 27 राज़ब के बारे में क्या लिखा है?

क़ुरआन और सही हदीस में कहीं भी यह नहीं लिखा गया कि 27 राज़ब की रात में कोई खास इबादत या महफिल-ए-शब-ए-मेराज मनाई जाए। जो लोग इस दिन की फ़ज़ीलत के लिए खास अमल करते हैं, उन्हें चाहिए कि इसका सबूत सही दलील से पेश करें।

2. सहाबा और सलफ का अमल

अज़ीम सहाबा (رضي الله عنهم) और ताबिईन ने कभी 27 राज़ब को खास तौर पर इबादत नहीं की, न ही इसकी कोई मिसाल इस्लामी तारीख़ में मिलती है। अगर यह दिन खास होता तो जरूर सहाबा और सलफ इस पर अमल करते।

3. बिद’at क्या है?

इस्लाम में हर नया अमल जो नबी ﷺ और उनके सहाबा के दौर में नहीं था, उसे बिद’at कहा जाता है। हज़रत मुहम्मद ﷺ का इरशाद है:

“हर नए काम का इज़ाफ़ा (धर्म में) बिद’at है, और हर बिद’at गुमराही है।” (सुनन अबू दाऊद 4607)

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27 राज़ब की रस्में और उनका तज़िया

आजकल लोग इस रात को

खास नवाफिल अदा करना

महफिल-ए-शब-ए-मेराज आयोजित करना

खास पकवान बनाना और बांटना

रोज़ा रखने का एहतिमाम करना

इस तरह की रस्मों का इस्लाम में कोई सबूत नहीं मिलता, बल्कि यह बिद’at के ज़ेले में आती हैं।

क्या राज़ब का महीना अल्लाह का महीना है?

Rajab Ka Mahina

 

हज़रत अबू हुरैरा (رضی الله عنہ) से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया रमज़ान के बाद सबसे अफ़ज़ल रोज़े अल्लाह के महीने मुहर्रम के हैं, और फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद सबसे अफ़ज़ल नमाज़ रात (तहज्जुद) की नमाज़ है।

(सहीह मुस्लिम हदीस नंबर 2755)

नोट – मालूम हुआ कि राज़ब अल्लाह का महीना नहीं है बल्कि अल्लाह का महीना मुहर्रम है।

सही रुख़ क्या होना चाहिए?

एक मोमिन के लिए जरूरी है कि वह दीन को सिर्फ़ क़ुरआन और सही हदीस की रोशनी में समझे और अमल करे। इबादत सिर्फ़ वही मक़बूल है जो नबी ﷺ और सहाबा के तरीके के मुताबिक़ हो।

क्या 27 राज़ब मनाना चाहिए या नहीं?

27 राज़ब को खास तौर पर मनाने का कोई शर’ई (धार्मिक) दलील नहीं है। यह अमल बिद’at के ज़ेले में आता है और इससे बचना चाहिए। हमें चाहिए कि हम अपनी इबादत को सिर्फ़ क़ुरआन और सुन्नत तक सीमित रखें और बिद’at से दूर रहें।

आज हमने इस आर्टिकल में जाना कि 27 राज़ब को मनाना, खास इबादत करना और रात में क़ियाम करना ये सब 27 Rajab Ki Bid’at है और इसका इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है।

“अल्लाह हमें सही रास्ते पर चलने की तौफीक़ अता फरमाए। आमीन।”

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