बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही

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शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।

Baligh Aurat Ki Dua Bina Hijab Ke Qabul Nahi Hoti – Abu Daud 641 Ki Tafseer

जानें Abu Daud 641 Ki Tafseer, हिजाब की अहमियत, दुआ की कुबूलियत और बिना हिजाब के दुआ न कुबूल होने की वजह।

इस्लाम में पर्दे (हिजाब) की बहुत अहमियत है। हिजाब न सिर्फ एक मुस्लिम औरत की पहचान है बल्कि यह उसकी पाकदिली और इज्जत की भी निशानी है। कई हदीसों में यह साफ तौर पर बताया गया है कि बिना हिजाब के दुआ कबूल नहीं होती।

Aaj Ki Hadees

Hadees In English

Sallallahu Alaihi Wasallam Ne Farmaya Allah Us Baligh Aurat Ki Dua Qabul Nahi Farmata Jab Tak Ki Vo Hijab Na Pehne

Hadees In Hindi

नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:

“अल्लाह उस बालिग़ औरत की दुआ कबूल नहीं करता जब तक कि वह हिजाब न पहने।”

(अबू दाऊद 641)

इस हदीस की रोशनी में आज हम समझेंगे कि हिजाब क्यों जरूरी है, इसका मकसद क्या है, और बिना हिजाब के दुआ न कबूल होने का असल मतलब क्या है।

1. Abu Daud 641 Ki Tafseer – अबू दाऊद 641 की हदीस की तफ़सीर

1. हिजाब और दुआ की कुबूलियत का रिश्ता

अबू दाऊद की इस हदीस से यह मालूम होता है कि हिजाब सिर्फ एक पर्दा ही नहीं बल्कि एक इबादत भी है। जब कोई औरत हिजाब नहीं करती तो उसकी दुआ को अल्लाह कुबूल नहीं करता, क्योंकि वह अल्लाह के एक जरूरी हुक्म की नाफरमानी कर रही होती है।

2. क्या हिजाब न करने वाली की कोई भी दुआ कुबूल नहीं होती?

इमाम नववी रहमतुल्लाह अलैह और अन्य उलमा फरमाते हैं कि इस हदीस का मतलब यह नहीं कि हिजाब न करने वाली औरत की कोई भी दुआ कुबूल नहीं होगी, बल्कि इसका मतलब यह है कि उसकी दुआ में वह बरकत और असर नहीं होगा जो एक परहेज़गार औरत की दुआ में होता है। अल्लाह चाहें तो दुआ कुबूल कर सकते हैं लेकिन हिजाब के साथ दुआ करना ज्यादा पसंदीदा और जल्द कुबूल होने वाला अमल है।

3. क्या यह हदीस सही है?

अबू दाऊद 641 की यह हदीस “हसन” (अच्छी) दर्जे की हदीस मानी जाती है। कुछ उलमा इस पर मतभेद रखते हैं लेकिन यह हदीस इस्लामी पर्दे के मूल सिद्धांत से मेल खाती है।

2. हिजाब न करने के नुकसान

अगर कोई औरत हिजाब नहीं करती तो इसके कई नुकसान हो सकते हैं:

1. अल्लाह के हुक्म की नाफरमानी

यह सबसे बड़ा नुकसान है क्योंकि अल्लाह तआला ने साफ तौर पर हिजाब का हुक्म दिया है।

2. गैर-महरम की नजरों से न बच पाना

हिजाब एक ढाल की तरह काम करता है जो औरत को बुरी नजरों से बचाता है।

3. रूहानी कमजोरी

जब कोई औरत अल्लाह के हुक्म को नजरअंदाज करती है तो उसकी रूहानी ताकत कमजोर हो जाती है और उसकी दुआओं में असर कम हो सकता है।

4. आखिरत में सजा

कयामत के दिन अल्लाह तआला से हिसाब देना पड़ेगा कि उसने हिजाब क्यों नहीं अपनाया।

3. हिजाब अपनाने से क्या फायदे हैं?

1. अल्लाह की खुशी

हिजाब करने से अल्लाह तआला खुश होते हैं और औरत की दुआओं को कुबूल करता है।

2. इज्जत और इज्जतदारी

हिजाब औरत की पाकदिली और इज्जत को बरकरार रखता है।

3. गैर-महरम से हिफाजत

हिजाब औरत को बुरी नजरों और फितनों से महफूज़ रखता है।

4. दुआ की कुबूलियत में बढ़ोतरी

जब कोई औरत अल्लाह के हुक्म के मुताबिक हिजाब करती है तो उसकी दुआ ज्यादा कुबूल होती है।

5. हिजाब की अहमियत इस्लाम में

इस्लाम में हिजाब का हुक्म सिर्फ एक लिबास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक औरत के चरित्र और शर्मो-हया का हिस्सा है। अल्लाह तआला ने कुरान में फरमाया:

(A) हिजाब का हुक्म कुरान में

अल्लाह तआला ने फरमाया:

“ऐ नबी! अपनी औरतों, अपनी बेटियों और ईमान वाली औरतों से कह दो कि वे अपने ऊपर अपनी चादरें डाल लिया करें। यह ज़्यादा बेहतर है, ताकि वे पहचान ली जाएं और उन्हें तकलीफ न दी जाए।”

(सूरह अल-अहज़ाब 33:59)

इस आयत में साफ तौर पर हुक्म दिया गया है कि मुस्लिम औरतों को हिजाब अपनाना चाहिए ताकि वे पहचान ली जाएं और उनकी हिफाजत हो सके।

4. हिजाब के बारे में दूसरी हदीसें

1. हिजाब और शर्मो-हया

“शर्मो-हया ईमान का हिस्सा है।

(सही मुस्लिम 36)

इस हदीस से पता चलता है कि हिजाब सिर्फ एक लिबास नहीं बल्कि ईमान का हिस्सा है।

2. हिजाब न करने का अंजाम

“जो औरतें कपड़े पहनकर भी नंगी रहती हैं, वे जन्नत की खुशबू भी नहीं सूंघ पाएंगी।

(सही मुस्लिम 2128)

इससे मालूम होता है कि हिजाब छोड़ना कितना खतरनाक हो सकता है।

5. क्या सिर्फ सिर ढकना ही हिजाब है?

बहुत से लोग यह समझते हैं कि सिर पर दुपट्टा या स्कार्फ रख लेना ही हिजाब है, लेकिन असल में हिजाब का मतलब पूरे शरीर को इस तरह ढकना है कि किसी गैर-महरम की उस पर बुरी नजर न पड़े।

6. कैसे हिजाब को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाएं?

1. नियत सही करें

हिजाब सिर्फ समाज या परिवार के दबाव में नहीं बल्कि अल्लाह की खुशी के लिए अपनाएं।

2. धीरे-धीरे आदत डालें

अचानक पूरा हिजाब अपनाने में दिक्कत हो सकती है, इसलिए पहले छोटे-छोटे बदलाव करें।

3. अल्लाह से मदद मांगे

हिजाब अपनाने के लिए दुआ करें कि अल्लाह आपको इस पर कायम रखे।

4. इस्लामी इल्म हासिल करें

हिजाब की अहमियत को समझने के लिए कुरान और हदीस पढ़ें।

5. अच्छे लोगों की संगत करें

ऐसे लोगों के साथ रहें जो इस्लामी उसूलों पर चलते हैं ताकि आपको प्रेरणा मिले।

नतीजा (Conclusion)

Abu Daud 641 Ki Tafseer से यह मालूम हुआ कि हिजाब औरत की दुआ की कुबूलियत में बहुत अहम किरदार निभाता है। हिजाब सिर्फ एक कपड़ा नहीं बल्कि ईमान की पहचान है। जो औरत अल्लाह के इस हुक्म को मानती है, उसकी दुआ जल्दी कुबूल होती है और अल्लाह उसे दुनिया और आखिरत में बेहतरीन इनाम देता है।

“अल्लाह हम सबको हिजाब अपनाने और इसकी अहमियत समझने की तौफीक अता फरमाए, आमीन।”

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