बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
Ashura Ka Roza : 10 मोहर्रम के रोजे की फज़ीलत
Ashura Ka Roza मोहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है और इसे अल्लाह का महीना कहा गया है। इस महीने का सबसे खास दिन 10 मोहर्रम (आशूरा का दिन) होता है, जिस दिन रोजा रखने की बहुत ज्यादा फज़ीलत बताई गई है।
इस लेख में हम जानेंगे:
आशूरा का रोजा क्यों रखा जाता है?
इसकी हदीसों में क्या फज़ीलत बताई गई है?
10 मोहर्रम के दिन क्या हुआ था?
इस दिन हमें क्या करना चाहिए?
1. आशूरा का रोजा क्यों रखा जाता है?
1. यहूदी और नसरानी भी 10 मोहर्रम को रोजा रखते थे
हदीस:
जब आप (ﷺ) से पूछा गया कि यहूदी और नसरानी 10 मोहर्रम का रोजा रखते हैं, तो आपने फरमाया:
“इंशाअल्लाह अगले साल हम 9 तारीख का भी रोजा रखेंगे।” लेकिन अगले साल आने से पहले ही आप (ﷺ) का इंतेकाल हो गया।
(सही मुस्लिम – 2666)
नोट: आज के उलेमा कहते हैं कि हमें 9-10 या 10-11 मोहर्रम का रोजा रखना चाहिए ताकि यहूदियों की मुखालिफत (विरोध) हो। लेकिन अगर कोई सिर्फ 10 मोहर्रम का भी रोजा रखना चाहे तो इसमें कोई हर्ज नहीं।
2. नबी (ﷺ) ने सहाबा और उनके बच्चों को भी रोजा रखने को कहा
हदीस:
नबी (ﷺ) ने आशूरा की सुबह अंसार के मोहल्लों में खबर भिजवाई:
“जिसने सुबह कुछ खा लिया हो, वह बाकी दिन रोजे की तरह पूरा करे और जिसने कुछ न खाया हो, वह पूरा दिन रोजे से रहे।”
नोट: इस हदीस से पता चलता है कि आप (ﷺ) ने बच्चों को भी रोजा रखने की ताकीद की थी।
3. मूसा (अ.) को फिरौन से निजात मिली
हदीस:
जब नबी (ﷺ) मदीना तशरीफ लाए तो आपने देखा कि यहूदी 10 मोहर्रम का रोजा रखते हैं। जब आपने वजह पूछी तो उन्होंने बताया:
“यह वो दिन है जब मूसा (अ.) और उनकी क़ौम को फिरौन से निजात मिली थी, इसलिए हम रोजा रखते हैं।”
आप (ﷺ) ने फरमाया:
“हम मूसा (अ.) के ज्यादा करीब हैं।” और आपने सहाबा को इस दिन का रोजा रखने का हुक्म दिया।
(सही बुखारी – 3943, 2004, 3397)
नोट:
यहूदी इस दिन को मनाते थे, लेकिन नबी (ﷺ) ने इसे सिर्फ इबादत और रोजे के लिए रखा।
इस दिन हमें कोई खास रस्में करने की जरूरत नहीं, सिर्फ रोजा रखना ही काफी है।
2. आशूरा के रोजे की फज़ीलत
1. सबसे अफजल रोजा – रमज़ान के बाद
हदीस:
नबी (ﷺ) ने फरमाया:
“रमज़ान के रोजों के बाद सबसे अफजल (श्रेष्ठ) रोजे मोहर्रम के हैं, जो अल्लाह का महीना है।”
(सही मुस्लिम – 2755)
नोट: इसका मतलब है कि रमज़ान के रोजों के बाद सबसे ज्यादा सवाब मोहर्रम के रोजों में है।
2. एक साल के गुनाह माफ़
हदीस:
नबी (ﷺ) ने फरमाया:
“आशूरा का रोजा पिछले एक साल के गुनाहों का कफ्फारा (मिटाने वाला) है।”
(सही मुस्लिम – 2746)
नोट: अगर हम इखलास के साथ रोजा रखेंगे, तो अल्लाह हमारे पिछले साल के छोटे गुनाह माफ़ कर देगा।
3. आशूरा के दिन क्या हुआ था?
क़ुरआन में अल्लाह ने फरमाया:
“मूसा (अ.) और उनकी क़ौम रात में निकल गई। जब फिरौन ने उनका पीछा किया, तो मूसा (अ.) के साथी कहने लगे: ‘अब तो हम पकड़े गए!’
मूसा (अ.) ने कहा: ‘हरगिज़ नहीं! मेरे साथ मेरा अल्लाह है, वह जरूर रास्ता निकालेगा।’
फिर हमने मूसा (अ.) को वही भेजी: ‘अपनी छड़ी दरिया में मारो!’ दरिया फट गया और पानी के टुकड़े पहाड़ों की तरह हो गए। फिर हमने मूसा (अ.) और उनकी क़ौम को बचा लिया और फिरौन और उसके लोगों को डुबो दिया।”
(सूरह अश-शु’अरा 26:61-63)
नोट:
यह घटना 10 मोहर्रम (आशूरा) के दिन हुई थी।
मूसा (अ.) और उनकी क़ौम ने इस दिन रोजा रखा था, इसलिए नबी (ﷺ) ने भी इस दिन रोजा रखने को कहा।
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4. आशूरा के दिन क्या करना चाहिए?
✔ 1. रोजा रखना
✔ 2. ज्यादा से ज्यादा दुआ और इबादत करना
✔ 3. गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना
✔ 4. अपने घरवालों पर थोड़ा ज्यादा खर्च करना (खास खाने की चीजें लाकर)
5. क्या आशूरा के दिन कोई खास रस्में या कर्मकांड करने चाहिए?
❌ 1. कोई खास नमाज पढ़ना? – नहीं!
❌ 2. कोई खास दुआ पढ़ना? – नहीं!
❌ 3. गुलाब जल या शरबत बांटना? – नहीं!
❌ 4. ढोल-ताशे बजाना या मातम करना? – नहीं!
हदीस से सिर्फ रोजा रखना साबित है। बाकी रस्में खुद से जोड़ना बिदअत (नया ईजाद किया गया काम) होगा।
निष्कर्ष (Conclusion)
10 मोहर्रम का रोजा बहुत फज़ीलत वाला है।
यहूदी भी इस दिन रोजा रखते थे, इसलिए नबी (ﷺ) ने भी इसे रखा और हमें भी हुक्म दिया।
यह दिन मूसा (अ.) को फिरौन से निजात मिलने का दिन है।
इस दिन का रोजा पिछले 1 साल के गुनाहों का कफ्फारा बनता है।
9-10 या 10-11 मोहर्रम का रोजा रखना सबसे बेहतर है।
अल्लाह हमें इस फज़ीलत वाले रोजे को रखने और इस दिन को सही तरीके से गुजारने की तौफीक दे। आमीन!
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