Hazrat Umar (R.A) Fitno Ke Aagey Darwaza Hain – Little Sign of Doomsday (3)

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।

Hazrat Umar (R.A) Fitno Ke Aagey Darwaza Hain – Little Sign of Doomsday (3)

क़यामत की निशानियों में से एक निशानी हज़रत उमर फ़ारूक़ (रज़ि.) की शहादत है।

पिछले आर्टिकल में हमने जाना था कि कैसे चाँद के दो टुकड़े हुए थे। अगर आपने वह नहीं देखा, तो इस आर्टिकल को देखें।

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इस्लाम की तारीख़ में हज़रत उमर फ़ारूक़ (रज़ि.) को एक बहुत बड़ी शख़्सियत के तौर पर जाना जाता है। उनकी इमानदारी, बहादुरी और इंसाफ़ पूरी दुनिया में मशहूर है। लेकिन एक अहम हदीस में रसूलुल्लाह ﷺ ने इशारा दिया कि हज़रत उमर (रज़ि.) इस उम्मत के लिए फ़ितनों के आगे एक दरवाज़े की तरह हैं। जब तक वह ज़िंदा हैं, बड़े-बड़े फ़ितने नहीं आएँगे, लेकिन जब उनकी शहादत होगी, तो फ़ितने तेज़ी से फैलेंगे।

आज हम इस हदीस की गहराई में जाकर समझेंगे कि हज़रत उमर (रज़ि.) इस्लाम की हिफ़ाज़त में कैसे एक मज़बूत दीवार थे, और उनकी शहादत के बाद किस तरह फ़ितनों का सिलसिला शुरू हुआ।

हदीस की रोशनी में

हज़रत हुदैफ़ा बिन यमान (रज़ि.) फ़रमाते हैं:

“हम एक बार रसूलुल्लाह ﷺ के पास बैठे थे, तो आपने फ़रमाया: ‘फ़ितने बरसात की बूँदों की तरह बरसेंगे।’ मैंने कहा: ‘या रसूलुल्लाह! क्या इस दरवाज़े के रहते हुए फ़ितने दाख़िल होंगे?’ आपने फ़रमाया: ‘नहीं, जब तक ये दरवाज़ा बंद है, फ़ितने नहीं आएँगे।’ मैंने पूछा: ‘क्या ये दरवाज़ा खोला जाएगा या तोड़ा जाएगा?’ आपने फ़रमाया: ‘तोड़ा जाएगा।’”

(सहीह बुख़ारी: 1895, सहीह मुस्लिम: 144)

👉 सहाबा ने बाद में हज़रत हुदैफ़ा (रज़ि.) से पूछा: “वो दरवाज़ा कौन है?”

उन्होंने फ़रमाया: “हज़रत उमर (रज़ि.)”

इसका मतलब यह हुआ कि जब तक हज़रत उमर (रज़ि.) इस दुनिया में मौजूद थे, इस्लाम के ख़िलाफ़ साज़िशें और फ़ितने पूरी तरह से खुलकर सामने नहीं आ सकते थे। लेकिन जैसे ही वो शहीद हुए, फ़ितनों की बाढ़ आ गई।

हज़रत उमर (रज़ि.) की शहादत और फ़ितनों की शुरुआत

जब तक हज़रत उमर (रज़ि.) ज़िंदा थे, इस्लाम मज़बूत था और फ़ितने क़ाबू में थे।

643 ईस्वी (23 हिजरी) में अबू लुलुआ फिरोज़ मजीसी (एक मजूसी गुलाम) ने उन पर हमला किया, जिससे उनकी शहादत हुई।

उनकी शहादत के बाद इस्लामी हुकूमत में फ़ितनों का दौर शुरू हुआ:

हज़रत उस्मान (रज़ि.) की शहादत – इस्लामी इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक थी।

जमल और सिफ़्फ़ीन की लड़ाइयाँ – सहाबा (रज़ि.) के बीच लड़ाइयाँ हुईं, जिससे उम्मत में दरारें पड़ गईं।

ख़वारिज का उभरना – एक चरमपंथी गिरोह जिसने इस्लामी हुकूमत को चुनौती दी।

हज़रत अली (रज़ि.) की शहादत

👉 यानी हज़रत उमर (रज़ि.) की मौजूदगी इस्लाम की मज़बूती की आख़िरी निशानी थी।

हज़रत उमर (रज़ि.) क्यों फ़ितनों के दरवाज़ा थे?

1. मज़बूत इस्लामी हुकूमत

हज़रत उमर (रज़ि.) के दौर में इस्लामी हुकूमत इतनी ताक़तवर थी कि कोई बाहरी या अंदरूनी दुश्मन इस्लाम को नुक़सान नहीं पहुँचा सकता था।

2. इनसाफ़ और सख़्ती

उन्होंने हुकूमत में ऐसा इंसाफ़ क़ायम किया कि हर कोई ख़ुद को महफ़ूज़ महसूस करता था। अगर किसी ने फ़ितना फैलाने की कोशिश की, तो उसे तुरंत रोका गया।

3. दीन की सही समझ

हज़रत उमर (रज़ि.) कुरआन और सुन्नत पर पूरी तरह से अमल करते थे और दूसरों को भी इसके मुताबिक़ हुकूमत चलाने का हुक्म देते थे।

👉 लेकिन जब वो शहीद हुए, तो ये सारी खूबियाँ धीरे-धीरे कमज़ोर होती गईं और फ़ितने हावी हो गए।

इस निशानी से हमें क्या सीख मिलती है?

1. बड़े उलमा और नेक हुक्मरानों का उठ जाना फ़ितनों की शुरुआत होती है।

2. जब दीनी रहनुमा दुनिया से चले जाते हैं, तो लोग गुमराही में पड़ जाते हैं।

3. हमें अपने ईमान को मज़बूत रखना चाहिए, क्योंकि क़यामत के क़रीब फ़ितने बढ़ते ही जाएँगे।

4. इस्लाम की सही समझ रखने वाले लीडर और उलमा की क़दर करनी चाहिए।

इस फ़ितने से बचने की दुआ

रसूलुल्लाह ﷺ ने सिखाई हुई दुआ:

“ऐ अल्लाह! मैं तुझसे ज़ाहिरी और छुपे हुए तमाम फ़ितनों से पनाह माँगता हूँ।”

(सुन्नन इब्न माजा, हदीस 3972)

👉 इस दुआ को अपनी रोज़ाना की ज़िंदगी में शामिल करें ताकि अल्लाह हमें हर क़िस्म के फ़ितनों से बचाए।

नतीजा (Conclusion)

हज़रत उमर (रज़ि.) इस्लाम की मज़बूत दीवार थे, जो फ़ितनों को रोक रही थी। उनकी शहादत के बाद इस्लामिक हुकूमत में फ़ितनों का सिलसिला शुरू हो गया, जो क़यामत तक जारी रहेगा।

अब सवाल यह है:

1. क्या हम आने वाले फ़ितनों से बचने के लिए तैयार हैं?

2. क्या हम दीनी इल्म और इस्लामी हुकूमत की सही समझ रखते हैं?

👉 हमें चाहिए कि हम अपने ईमान को मज़बूत करें, उलमा से जुड़ें और हर फ़ितने से बचने के लिए अल्लाह से दुआ करें।

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