बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
सीरत-उन-नबी (भाग 5): इस्लाम की पहली दावत
पिछले भाग (Seerat Un Nabi In Hindi – Part 4) में हमने जाना कि नबी ﷺ को पहली वही कैसे नाज़िल हुई और उन्होंने कैसे इस नए अनुभव का सामना किया। अब इस भाग में हम देखेंगे कि नबी ﷺ ने इस्लाम की दावत (प्रचार) कैसे शुरू की, पहले मुस्लिम कौन थे और शुरुआती दिनों में इस्लाम कैसे फैला।
अगर आपने भाग 4 (वही की शुरुआत और अल्लाह का हुक्म) नहीं पढ़ा है, तो पहले उसे जरूर पढ़ें:
➡️ Seerat Un Nabi (भाग 4) – वही की शुरुआत और अल्लाह का हुक्म
इस्लाम की गुप्त दावत का दौर
(तीन साल तक नबी ﷺ ने छुपकर दावत दी)
अब उन्हें अल्लाह के संदेश को फैलाना है। लेकिन उन्होंने शुरुआत में इसे छुपकर किया, क्योंकि मक्का के लोग बहुत ज़्यादा मुश्रिक (मूर्तिपूजक) थे और वे नए धर्म को स्वीकार नहीं करते।
(सीरत इब्न हिशाम, 1/262)
1. क्यों गुप्त रूप से प्रचार किया गया?
मक्का में इस्लाम का ज़ोरदार विरोध हो सकता था।
पहले ऐसे लोगों को तैयार करना ज़रूरी था, जो इस्लाम को दिल से अपनाएं और इस मिशन में मदद करें।
इस्लाम के दुश्मनों से बचाव करना ज़रूरी था।
2. पहले मुसलमान कौन थे?
नबी ﷺ ने सबसे पहले अपने करीबी और भरोसेमंद लोगों को इस्लाम की दावत दी। इस्लाम कबूल करने वालों की लिस्ट इस प्रकार है:
(A) सबसे पहले इस्लाम स्वीकार करने वाले
1. हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा – पहली मुस्लिम महिला।
“सबसे पहले इस्लाम कबूल करने वाली उम्मुल मोमिनीन हज़रत खदीजा थीं।”
(मुस्नद अहमद, हदीस 26652)
2. हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु – पहले पुरुष और नबी ﷺ के सबसे करीबी दोस्त।
“हर शख्स जिसे मैंने इस्लाम की दावत दी, उसने कुछ न कुछ सोच-विचार किया, सिवाय अबू बक्र के, उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के इस्लाम स्वीकार कर लिया।”
(सुनन तिर्मिज़ी, हदीस 3657)
3. हज़रत अली बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु – पहले लड़के जिन्होंने इस्लाम कबूल किया।
“अली पहले शख्स हैं जिन्होंने नबी ﷺ के साथ नमाज़ अदा की।”
(मुस्नद अहमद, हदीस 840)
4. हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु – पहले गुलाम जिन्होंने इस्लाम अपनाया।
“ज़ैद बिन हारिसा ने इस्लाम स्वीकार किया और नबी ﷺ ने उन्हें अपना दत्तक पुत्र बना लिया।”
(सीरत इब्न हिशाम, 1/266)
फिर हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने दोस्तों को इस्लाम की दावत दी, जिससे कई प्रतिष्ठित लोग मुसलमान हुए:
5. हज़रत उस्मान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु
6. हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु
7. हज़रत साद बिन अबी वक़्कास रज़ियल्लाहु अन्हु
8. हज़रत जुबैर बिन अल-अव्वाम रज़ियल्लाहु अन्हु
9. हज़रत तल्हा बिन उबेदुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु
इन सभी लोगों ने इस्लाम को अपनाया और गुप्त रूप से अल्लाह की इबादत करने लगे।
“अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने छह लोगों को इस्लाम में बुलाया, और वे सभी जन्नत की खुशखबरी पाने वालों में शामिल हो गए।”
(तारीख़ अत्तबरी, 2/60)
3. दारुल-अरकम: पहला इस्लामिक सेंटर
जब इस्लाम मानने वालों की संख्या बढ़ने लगी, तो नबी ﷺ ने एक गुप्त जगह चुनी, जहां लोग इकट्ठा होकर इबादत कर सकें और इस्लाम की शिक्षा ले सकें।
स्थान: यह मकान अल-अरकम बिन अबी अल-अरकम नामक सहाबी का था।
स्थान: यह सफा पहाड़ी के पास स्थित था।
नाम: इसे दारुल-अरकम (अरकम का घर) कहा जाने लगा।
दारुल-अरकम का महत्व
✅ पहला इस्लामिक स्कूल, जहां नबी ﷺ इस्लाम सिखाते थे।
✅ मुसलमानों के लिए सुरक्षित स्थान, जहां वे नमाज़ पढ़ सकते थे।
✅ नए मुसलमानों की ट्रेनिंग सेंटर, जहां उन्हें इस्लामिक दावत देने की शिक्षा दी जाती थी।
“हम अल्लाह के रसूल ﷺ के साथ दारुल-अरकम में गुप्त रूप से रहते थे, जब तक कि इस्लाम खुलकर जाहिर नहीं हुआ।”
(मुसनद अहमद, हदीस 357)
इमाम इब्न कसीर लिखते हैं:
“दारुल-अरकम पहला केंद्र था, जहां इस्लाम का ज्ञान दिया जाता था और यहीं पर कई सहाबा ने इस्लाम कबूल किया।”
(अल-बिदाया वन्निहाया, 3/29)
इस्लाम की खुली दावत का आदेश
तीन साल तक इस्लाम गुप्त रूप से फैलाया गया। फिर अल्लाह ने नबी ﷺ को आदेश दिया कि अब इस्लाम को खुले तौर पर फैलाया जाए:
“तो जो हुक्म आपको दिया गया है, उसे साफ-साफ बयान कर दीजिए और मुशरिकों की परवाह न कीजिए।”
(सूरह अल-हिज्र 15:94)
“और अपने नज़दीकी रिश्तेदारों को सचेत कर दो, और जो लोग ईमान लाए हैं उनके लिए विनम्र बनो, लेकिन यदि वे अवज्ञा करें तो कह दो कि मैं उन कामों से बरी हूँ जो तुम करते हो।”
(सूरह अश-शुअरा 26:214)
यह आयत इस्लाम की दावत को खुले तौर पर पेश करने का सीधा आदेश था।
अब नबी ﷺ ने खुले तौर पर इस्लाम की दावत देने का फैसला किया।
1. सबसे पहला खुला भाषण
नबी ﷺ सफा पहाड़ी पर चढ़े और कुरैश के लोगों को बुलाया। जब सब लोग इकट्ठा हो गए, तो आपने कहा:
“अगर मैं कहूं कि इस पहाड़ी के पीछे एक दुश्मन की फ़ौज छुपी है, तो क्या तुम मेरी बात मानोगे?”
सबने कहा: “हाँ, क्योंकि हमने आपको हमेशा सच्चा पाया है।”
फिर नबी ﷺ ने कहा:
“तो सुनो! मैं तुम्हें अल्लाह के एकत्व (तौहीद) की दावत देता हूँ। अगर तुमने इसे न माना, तो अल्लाह का अज़ाब तुम्हारे लिए तय है!”
यह सुनते ही अबू लहब ने गुस्से में कहा:
“क्या इसी के लिए तूने हमें बुलाया था?” और गुस्से में चला गया।
इस घटना के बाद अल्लाह ने सूरह अल-मसद नाज़िल की:
“अबू लहब के दोनों हाथ तबाह हो जाएं और वह खुद भी तबाह हो जाए।”
कुरैश का विरोध और मुसलमानों पर जुल्म
नबी ﷺ ने अब खुलकर इस्लाम की दावत देनी शुरू की। आप लोगों को उनके घरों में जाकर, बाज़ारों में और हज के मौसम में इस्लाम की दावत देते थे।
जब मक्का के लोग समझ गए कि इस्लाम का प्रचार तेज़ी से बढ़ रहा है, तो उन्होंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया।
1. मक्का के सरदारों की रणनीति:
नबी ﷺ का मज़ाक उड़ाना: उन्हें “मजज़ून” (पागल) कहा जाने लगा।
मुसलमानों को तंग करना: उन्हें गालियाँ दी जातीं, उनका बहिष्कार किया जाता।
(सीरत इब्न हिशाम, 1/293)
2. मुसलमानों पर अत्याचार
(A) हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु
उन्हें उनके मालिक उमय्या बिन ख़लफ़ ने तपती हुई रेत पर लिटाकर उनकी छाती पर बड़ा पत्थर रख दिया।
लेकिन वे लगातार कहते रहे: “अहद, अहद” (अल्लाह एक है, अल्लाह एक है)।
(सुनन इब्न माजा, हदीस 150)
(B) यासिर और सुमैय्या रज़ियल्लाहु अन्हुमा
ये इस्लाम में शहीद होने वाले पहले व्यक्ति थे।
अबू जहल ने सुमैय्या रज़ियल्लाहु अन्हा को भाले से शहीद कर दिया।
(मुस्तदरक हाकिम, हदीस 5684)
3. अबू तालिब की मदद
नबी ﷺ के चाचा अबू तालिब ने आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी ली, जिससे कुरैश के लोग आपको सीधे नुकसान नहीं पहुँचा सके।
(सीरत इब्न हिशाम, 1/298)
निष्कर्ष
नबी ﷺ ने पहले तीन साल इस्लाम को गुप्त रूप से फैलाया।
दारुल-अरकम पहला इस्लामिक सेंटर बना।
फिर अल्लाह ने आदेश दिया कि इस्लाम को खुले तौर पर फैलाया जाए।
कुरैश के लोग इस्लाम के विरोध में उतर आए और मुसलमानों पर जुल्म शुरू हो गया।
अगला भाग:
➡️ Seerat Un Nabi In Hindi – Part 6 में हम जानेंगे कि मक्का में इस्लाम किस तरह तेजी से फैला और इस्लाम की खुली दावत देने के बाद क्या-क्या हालात पेश आए।
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