शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
Kisi Ko Kafir Bolna Kaisa Hai – Sahih Muslim 217 की तफ्सीर
इस्लाम में तकफीर (किसी को काफिर कहने) का मामला बहुत गंभीर है। बहुत से लोग बिना इल्म और तहकीक के किसी मुसलमान को काफिर करार देने की गलती कर बैठते हैं, जबकि इस बारे में नबी-ए-करीम ﷺ की तालीमात बहुत वाज़ेह (स्पष्ट) हैं।
Aaj Ki Hadees
Hadees In English
Nabi Sallallahu Alaihi Wasallam Ne Farmaya Jis Shakhs Ne Kisi Ko Kafir Kaha Halaki Vo Aisa Nahi Hai To Ye Ilzaam Usi Ki Taraf Lout Jata Hai Jisne Kaafir Kaha
Hadees In Hindi
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिस शक्श ने किसी को काफिर कहा हालाकि वो ऐसा नहीं है तो ये इल्जाम उसी की तरफ लौट जाता है जिसने काफिर कहा।
(Sahih Muslim – 217)
इस हदीस की तफ्सीर
1. तकफीर करने की गंभीरता
इस्लाम में तकफीर (किसी को काफिर कहना) एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है। अगर कोई किसी मुसलमान को बिना सही दलील के काफिर कहता है, और वह व्यक्ति वास्तव में काफिर नहीं है, तो यह इल्जाम खुद कहने वाले पर वापस आ जाता है।
इमाम नववी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं:
“अगर किसी ने किसी मुसलमान को काफिर कहा और वो वाकई में काफिर नहीं था, तो यह गुनाह कहने वाले पर पलट जाता है।”
2. तकफीर का हक़ सिर्फ़ उलमा और शरीअत को है
कोई आम इंसान यह फैसला नहीं कर सकता कि कौन मुसलमान है और कौन काफिर। यह सिर्फ़ उलमा-ए-हक़ और शरीअत का हक़ है।
कुरआन में अल्लाह फरमाता है:
“और जो कोई इस्लाम के अलावा किसी और दीन को पसंद करेगा, तो वह उससे कबूल न किया जाएगा और वह आखिरत में नुकसान उठाने वालों में से होगा।”
(सूरह आले-इमरान 3:85)
3. तकफीर से बचने का हुक्म
तकफीर का दरवाजा खोलने से उम्मत में फितना पैदा होता है। लोग छोटी-छोटी बातों पर एक-दूसरे को काफिर कहने लगते हैं, जिससे समाज में नफरत बढ़ती है।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:
“जो किसी को काफिर कहे और वो ऐसा न हो, तो यह लफ्ज़ कहने वाले की तरफ लौट जाता है।”
(सहीह बुखारी 6103)
कुरआन और तकफीर पर कुछ अहम आयतें
1. बिना दलील के इल्जाम लगाना हराम है
ऐ ईमान वालो! जिस चीज़ का तुम्हें इल्म नहीं, उसके पीछे न पड़ो। बेशक कान, आंख और दिल—हर एक से हिसाब लिया जाएगा
(सूरह इसरा 17:36)
2. किसी के इमान का फैसला सिर्फ अल्लाह करेगा
“कई लोग ज़ाहिरी तौर पर मुसलमान दिखते हैं, लेकिन उनके दिलों का हाल सिर्फ़ अल्लाह जानता है।”
(सूरह तौबा 9:101)
3. तकफीर करने से पहले तहकीक जरूरी है
“अगर कोई फ़ासिक तुम्हारे पास कोई खबर लाए, तो उसकी जांच-पड़ताल कर लिया करो।”
(सूरह हुजुरात 49:6)
तकफीर के गलत इस्तेमाल से क्या नुकसान होता है?
✔ उम्मत में फूट और नफरत – जब लोग एक-दूसरे पर काफिर होने के इल्जाम लगाने लगते हैं, तो समाज में बिखराव और दुश्मनी बढ़ती है।
✔ गुनाह का बोझ – बिना सही दलील के किसी को काफिर कहने वाला खुद बड़े गुनाह में पड़ जाता है।
✔ तकफीर की लानत – अगर कोई गलत तकफीर करता है, तो यह लानत उसी पर वापस आ जाती है।
सही तरीका: किसी को काफिर कहने से पहले क्या करें?
✅ इल्म हासिल करें – पहले कुरआन और हदीस की सही समझ हासिल करें।
✅ उलमा से मशविरा लें – अगर किसी के बारे में शंका हो, तो किसी आलिम-ए-दीन से पूछें।
✅ हुस्न-ए-ज़न (अच्छा गुमान) रखें – इस्लाम सिखाता है कि हमें दूसरों के बारे में अच्छा सोचना चाहिए।
✅ गुफ्तगू का सही तरीका अपनाएं – किसी की गलती देख कर उसे समझाने की कोशिश करें, न कि फौरन तकफीर कर दें।
नतीजा (Conclusion)
तकफीर करना एक बड़ा और नाजुक मामला है। अगर कोई गलती से किसी मुसलमान को काफिर कहता है और वह असल में काफिर नहीं होता, तो यह गुनाह उसी पर पलट जाता है।
इस्लाम में तहकीक के बिना किसी पर इल्ज़ाम लगाना हराम है।
तकफीर का हक सिर्फ इल्म रखने वाले उलमा को है, आम आदमी को नहीं।
हमें चाहिए कि हम कुरआन और सुन्नत के मुताबिक दूसरों के बारे में अच्छा सोचें और तकफीर से बचें।
अल्लाह हमें तकफीर से बचने और सही इस्लामी अक़ीदा अपनाने की तौफ़ीक़ दे, आमीन!
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