भारत की मुस्लिम हुकूमत का प्रारंभ: Mohammad Bin Qasim (Part-1)

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।

भारत की मुस्लिम हुकूमत का प्रारंभ: Mohammad Bin Qasim (Part-1)

जब भी भारत में मुस्लिम शासन के इतिहास की बात होती है, तो अधिकतर लोग दिल्ली सल्तनत या मुगल साम्राज्य को याद करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में इस्लामी हुकूमत की शुरुआत मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में हुई थी?

मोहम्मद बिन कासिम (Mohammad Bin Qasim) वह पहले मुस्लिम सेनापति थे जिन्होंने सिंध और मुल्तान (आज का पाकिस्तान) को 712 ईस्वी में जीतकर इस्लामी शासन की नींव रखी। लेकिन इतिहास को अक्सर तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है, खासतौर पर मीडिया में।

आइए, जानते हैं मोहम्मद बिन कासिम का असली इतिहास, उनकी जीत की रणनीति, और यह भी कि कैसे कुछ लोग उनके बारे में गलत धारणाएं फैलाते हैं।

कौन थे मोहम्मद बिन कासिम?

मोहम्मद बिन कासिम अरब के ताइफ (Taif) शहर में पैदा हुए थे। उनके पिता का जल्दी इंतिकाल हो गया था, इसलिए उनकी परवरिश और शिक्षा उनके चाचा कासिम बिन यूसुफ ने की।

उस समय उम्मयद खिलाफत इस्लामी दुनिया की सबसे ताकतवर सल्तनत थी, जिसकी हुकूमत अफ्रीका से लेकर मकरान (Baluchistan) तक फैली हुई थी। मकरान से आगे सिंध की सीमा शुरू होती थी, जहां राजा दाहिर (Raja Dahir) की हुकूमत थी।

भारत पर हमला क्यों हुआ? राजा दाहिर और मुस्लिम खलीफा का टकराव

1. मुसलमानों के ख़िलाफ़ राजा दाहिर की साजिश

राजा दाहिर ने हमेशा मुस्लिम शासन के खिलाफ ईरानियों का साथ दिया। जब मुसलमानों और ईरानियों के बीच जंग हुई, तो राजा दाहिर ने ईरानियों को सेना और हाथी देकर मदद की।

2. अरब व्यापारियों के जहाजों की लूट

711 ईस्वी में श्रीलंका के राजा ने खलीफा वलीद बिन अब्दुल मलिक और इराक के गवर्नर हज्जाज बिन यूसुफ को तोहफे भेजे। इन तोहफों के साथ कुछ मुस्लिम औरतें, बच्चे और व्यापारी भी थे।

लेकिन राजा दाहिर के सैनिकों ने सिंध के बंदरगाह ‘देबल’ पर इन जहाजों को लूट लिया और मुसलमानों को क़ैद कर लिया।

जब उमय्यद खिलाफत के गवर्नर हज्जाज बिन यूसुफ़ (Hajjaj bin Yusuf) ने राजा दाहिर से जवाब मांगा, तो उसने मना कर दिया कि उसके सैनिकों ने कोई हमला नहीं किया।

इसके बाद, उमय्यद खिलाफत ने सिंध पर हमले का फैसला किया।

इस ज़ुल्म के खिलाफ अरब खलीफा को युद्ध के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा।

मोहम्मद बिन कासिम की फतेह (विजय) की कहानी

1. पहली दो लड़ाइयों में अरब हार गए

पहले दो हमलों में उबेदुल्लाह बिन नहमान और बुदेल बिन ताहफा की सेनाएँ नाकाम रहीं।

इससे हज्जाज बिन यूसुफ बहुत गुस्से में था और उसने फैसला किया कि अब केवल सबसे योग्य और बहादुर सेनापति ही सिंध को फतेह कर सकता है।

इसके बाद, हज्जाज बिन यूसुफ़ ने 17 वर्षीय मोहम्मद बिन कासिम को जिम्मेदारी दी, जिन्होंने सिंध को फतेह करने के लिए एक बेहतरीन योजना बनाई।

2. 17 साल के सेनापति की एंट्री!

इसके बाद हज्जाज ने मात्र 17 साल के मोहम्मद बिन कासिम को सेनापति बनाकर भेजा। उन्होंने 15,000 सैनिकों, 6,000 ऊंटों और शक्तिशाली मंगनक (Catapult) मशीनों के साथ देबल (Sindh) पर हमला किया।

3. सिंध पर मुस्लिम विजय (20 जून, 712 ई.)

(A) दिबल (Debal) का युद्ध

मोहम्मद बिन कासिम ने सबसे पहले दिबल के किले पर हमला किया, जहाँ राजा दाहिर के बेटे की सेना मौजूद थी।

जब इस्लामी सेना ने हमला किया और अल्लाहु अकबर का नारा गूंजा, तो राजा का बेटा भाग खड़ा हुआ और राजा दाहिर के पास चला गया।

मुसलमानों ने दिबल फतेह कर लिया और क़ैदियों को रिहा कर दिया।

मोहम्मद बिन कासिम ने वहाँ के प्रशासन में एक हिंदू पंडित को हाकिम बना दिया, यह दिखाने के लिए कि इस्लामी शासन केवल न्याय और इंसाफ़ पर आधारित था।

(B) राजा दाहिर से सीधी जंग

राजा दाहिर को एक अंतिम चेतावनी दी गई—या तो वह आत्मसमर्पण कर दे या युद्ध के लिए तैयार हो जाए।

राजा दाहिर ने जंग का रास्ता चुना।

राजा को भरोसा था कि सिंधु नदी के कारण मुस्लिम सेना पार नहीं कर पाएगी।

लेकिन मुस्लिम सेना ने उस्ताद रणनीति से नदी पार कर ली और युद्ध में राजा दाहिर की सेना को हरा दिया।

राजा दाहिर ने अंतिम लड़ाई लड़ी, लेकिन मोहम्मद बिन कासिम के एक सैनिक ‘उमर बिन खलीफा’ ने राजा दाहिर को मार गिराया।

भारत में मुस्लिम शासन की नींव

20 जून, 712 ईस्वी को सिंध फतेह हुआ और मुस्लिम शासन की नींव भारत में पड़ी।

क्या मोहम्मद बिन कासिम ने ज़ुल्म किया? मीडिया की झूठी कहानियां

1. मीडिया द्वारा फैलाए गए गलत नजरिए

आज, कई पश्चिमी इतिहासकार और भारतीय मीडिया इस्लामी फतेह को गलत तरीके से पेश करते हैं। वे यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि:

❌ मुस्लिम शासक जबरदस्ती इस्लाम फैलाते थे।

❌ हिंदुओं पर अत्याचार किया गया।

❌ मंदिरों को ध्वस्त किया गया।

हकीकत क्या है?

किसी भी ऐतिहासिक इस्लामी दस्तावेज़ में यह नहीं लिखा गया कि मोहम्मद बिन कासिम ने हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाया।

उन्होंने हर मजहब को अपने धर्म का पालन करने की पूरी आज़ादी दी।

हिंदुओं को “जज़िया कर” (Tax) देने का विकल्प दिया गया, जो कि इस्लाम में गैर-मुस्लिमों के लिए टैक्स का सामान्य नियम था।

सिंध के शासक पद पर एक हिंदू ब्राह्मण को रखा गया, जबकि उसने पहले मुसलमानों पर अत्याचार किए थे।

अगर जबरन इस्लाम फैलाया गया होता, तो आज भारत में 80% हिंदू नहीं होते।

मोहम्मद बिन कासिम की मौत – एक राजनीतिक साजिश

714 ई. में हज्जाज बिन यूसुफ का इंतकाल हो गया।

715 ई. में खलीफा वलीद बिन अब्दुल मलिक की मौत हो गई और नया खलीफा सुलेमान बिन अब्दुल मलिक बना।

सुलेमान, हज्जाज बिन यूसुफ से नफरत करता था।

उसने मोहम्मद बिन कासिम को गिरफ्तार करवा दिया और अमानवीय यातनाएं देकर मार डाला।

अगर मोहम्मद बिन कासिम जिंदा रहते, तो शायद चीन और जापान तक इस्लामी फतेह का परचम लहरा देते।

निष्कर्ष (Conclusion)

मोहम्मद बिन कासिम ने सिर्फ 17 साल की उम्र में वह कर दिखाया, जिसे बड़े-बड़े बादशाह नहीं कर पाए। उन्होंने भारत में मुस्लिम हुकूमत की नींव रखी, लेकिन कुछ लोग उनके बारे में झूठ फैलाते हैं।

क्या आपने पहले इस असली इतिहास को पढ़ा था?

अगर नहीं, तो इसे शेयर करें और सही जानकारी फैलाएं।

यह भारत में मुस्लिम हुकूमत की शुरुआत का पहला भाग (Part-1) था। इसमें हमने जाना कि कैसे मोहम्मद बिन कासिम ने 17 साल की उम्र में भारत को फतेह किया और एक न्यायपूर्ण शासन की नींव रखी।

आगे क्या? (Next Part)

अगले भाग में, हम जानेंगे कि इसके बाद भारत में मुस्लिम शासन कैसे आगे बढ़ा।

भारत की मुस्लिम हुकूमत का Part – 2: महमूद ग़ज़नवी

भारत की मुस्लिम हुकूमत का Part – 3: मोहम्मद गौरी

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