शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है
Musalman Roza Kyu Rakhte Hain – रमज़ान की सच्चाई, इस्लामी और वैज्ञानिक नजरिए से
Musalman Roza Kyu Rakhte Hain – जानिए रमज़ान में रोज़ा रखने का सही मकसद, कुरआन और हदीस से इसके फायदे, और वैज्ञानिक शोध (तहकीक़) जो इसे स्वास्थ्य (तंदुरुस्ती) के लिए भी फायदेमंद बताते हैं।
Musalman Roza Kyu Rakhte Hain
रमज़ान का महीना इस्लाम में बहुत अहम माना जाता है। इस दौरान मुसलमान सहरी (Sehri) से लेकर इफ़्तार (Iftar) तक बिना कुछ खाए-पिए रोज़ा रखते हैं। लेकिन क्या रोज़ा सिर्फ़ भूखे-प्यासे रहने के लिए रखा जाता है? इसका असली मकसद क्या है? रमजान के रोजे क्यों फर्ज है Musalman Roza Kyu Rakhte Hain क्यों ये तकलीफ हम उठाए अल्लाह हमसे क्या कहना चाहता है कुछ गैर मुस्लिम के भी सवाल होते है Musalman Roza Kyu Rakhte Hain इस्लाम में अल्लाह तुमे रोजा रखा कर भूखा क्यों रखता है क्या अल्लाह के पास रिज्क की कमी है
इस लेख में हम इस्लामी, वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टि (नज़र) से रोज़े की हकीकत को समझेंगे।
1. रोज़े का हुक्म कुरआन में
अल्लाह तआला फ़रमाते हैं:
“ऐ ईमान वालों! तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किए गए हैं, जैसे तुमसे पहले लोगों पर फ़र्ज़ किए गए थे, ताकि तुम तक़वा (परहेज़गारी)(अल्लाह का दर) इख़्तियार करो।”
📖 (कुरआन, सुरह अल-बक़रा 2:183)
✅ इस आयत से यह पता चलता है कि रोज़ा सिर्फ़ इस्लाम में नहीं, बल्कि पहले के उम्मतों पर भी फ़र्ज़ था।
✅ इसका असली मकसद तक़वा (संयम, खुदा का डर) हासिल करना है।
✅रोज़ा इंसान को बुरे कामों से रोकता है और उसकी नफ़्सानी ख़्वाहिशों पर काबू पाने में मदद करता है।
2. रोज़ा रखने की सहूलत और अल्लाह की रहमत
📖 कुरआन में अल्लाह फ़रमाते हैं:
“गिनती के चंद दिन रोज़े रखने हैं, तो तुम में से जो बीमार हो या सफर में हो, तो वह बाकी दिनों में रोज़े पूरे कर ले। और जिसको रोज़ा रखने की ताक़त नहीं, तो वह एक मिस्कीन को खाना खिला दे। और जो कोई अपनी मर्ज़ी से ज़्यादा नेकी करे, तो यह उसके लिए बेहतर है। और अगर तुम समझो, तो रोज़ा रखना ही तुम्हारे लिए बेहतर है।”
✅ इस आयत से अल्लाह की रहमत का पता चलता है कि रोज़े सिर्फ़ चंद दिनों के लिए फ़र्ज़ किए गए हैं।
✅ अगर कोई बीमार हो या सफर में हो, तो वह बाद में रोज़े पूरे कर सकता है।
✅ अगर कोई रोज़ा न रख सके, तो वह एक मिस्कीन को खाना खिला सकता है।
✅ जो ज्यादा नेकी करेगा, उसे ज्यादा सवाब मिलेगा।
✅ यानी इस्लाम एक आसान और रहमदिल मज़हब है, जो इंसान की तकलीफों का ख्याल रखता है।
3. रोज़े का मकसद – तक़वा और अल्लाह का डर
रोज़े का असली मकसद तक़वा (अल्लाह का डर) पैदा करना है। जब इंसान रोज़ा रखता है, तो वह:
✅ बुरे कामों से बचता है।
✅ अपने नफ़्स (ख्वाहिशों) पर कंट्रोल करता है।
✅ गरीबों की भूख-प्यास को महसूस करता है।
✅ नेक आमाल (इबादत, तिलावत, सदक़ा) करने की आदत डालता है।
📖 हदीस:
“रोज़ा एक ढाल है, जो इंसान को जहन्नम से बचाती है।”
(📖 सहीह बुखारी: 1894, सहीह मुस्लिम: 1151)
✅ यानी रोज़ा इंसान को बुराई से रोकता है और उसकी आत्मा को पाक करता है।
2. रोज़े की फज़ीलत हदीस में
✅ रोज़ेदार के लिए जन्नत में एक खास दरवाज़ा
“जन्नत में एक दरवाजा है जिसका नाम ‘रय्यान’ है। इस दरवाजे से सिर्फ रोज़ेदार ही दाखिल होंगे।”
📖 (सहीह बुखारी 1896, सहीह मुस्लिम 1152)
✅ रोज़ा गुनाहों का कफ्फारा (प्रायश्चित) है
“जो रमज़ान के रोज़े ईमान और सवाब की नीयत से रखे, उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाएंगे।”
📖 (सहीह बुखारी 38, सहीह मुस्लिम 760)
✅ रोज़ा और सब्र का संबंध
“रोज़ा आधा सब्र है।”
📖 (इब्न माजा 1745)
✅ रोज़े की फज़ीलत
हदीस – नबी सल्लाहू अलेई वसल्लम ने फरमाया अल्लाह फरमाते है की रोजे मेरे लिए है और में ही उसका बदला दूंगा
(सही भुकारी 5927)
(मुस्नद अहमद 14699)
✅ जो लोग रोजा रखते है उनके लिए यही काफी है की अल्लाह ने उनके रोजे के सवाब की जिमेदारी ली है जो सारे जहां का रब है
“मालूम हुआ कि रोज़ा रखने के फायदे भी हैं। अगर आप और भी ज़्यादा फायदे जानना चाहते हैं और इसे सही तरीके से रखने के नियमों के बारे में समझना चाहते हैं, तो यह आर्टिकल ज़रूर पढ़ें: रोज़ा रखने का सही तरीका – रोज़ा रखने का नियम।”
3. रमज़ान – कुरआन के नुज़ूल का महीना
कुरान – रमजान के महीने में कुरान नाजिल किया गया जो लोगो का रहनुमा है और उसमे लोगो की रहनुमाई और हक की निशानियां है मोमिनों तुम इस महीने में किसी भी जगह पे हो रोजा रखे खुदा तो तुमको सही रास्ते पे लाना चाहता है ताकि तुम सुकर गुजर बनो
(सुरह अल बकरा 2:185)
✅ रमज़ान सिर्फ़ रोज़े का महीना नहीं, बल्कि यह वही पाक महीना है जिसमें अल्लाह ने अपनी किताब कुरआन नाजिल की।
✅ इसलिए यह महीना बेहद मोबारक और मोहतर्म है।
4. रमज़ान – जन्नत के दरवाज़े खुलते हैं
हदीस – जब रमजान का महीना आता है तो जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते है और जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिए जाते है और सयातीन को जंजीरों में जाखड़ लिया जाता है
(सही बुखारी 1898-1899)
(जामिया त्रिमधी 682)
✅ अल्लाह की रहमत देखिए! इस महीने में जन्नत के दरवाज़े खुल जाते हैं और शैतान को कैद कर दिया जाता है, ताकि हम बहकें नहीं। हमें चाहिए कि इस मोबारक महीने में ज्यादा से ज्यादा नेक अमल करें।
5. रोज़ेदार को इफ्तार कराने का सवाब
हदीस – जो किसी रोजेदार को इफ्तार करा दे तो उसे रोजेदार के बराबर सवाब मिलेगा और रोजेदार के सवाब में से कोई कमी नहीं होगी
(सुन्नु इब्न मजहा 1746)
✅ अल्लाह की रहमत देखें! जो किसी रोज़ेदार को इफ्तार कराएगा, उसे उतना ही सवाब मिलेगा जितना रोज़ेदार को, और रोज़ेदार के सवाब में भी कोई कमी नहीं होगी। यह रमज़ान की बड़ी नेमत है।
6. रोज़े से गुनाहों की माफी
हदीस – जिसने ईमान के साथ सवाब की नियत से रोजे रखे तो उसके सारे गुना माफ कर दिए जाते है
( सुन्नु इब्न मजहा 1641)
(सही बुखारी 38)
✅ अल्लाह हमारे दिखावे से नहीं, बल्कि हमारी नीयत से आजमाता है। जो सच्चे दिल से रोज़ा रखता है, अल्लाह उसके पिछले सारे गुनाह माफ कर देता है।
7. हमेशा के रोज़े का सवाब
हदीस – जो रमजान के रोजे रखे और उसके बाद 6 रोजे शव्वाल के भी रखे तो उसको हमेशा के रोजे का सवाब मिलेगा
(सही मुस्लिम 2758,1164)
(सुन्नु इब्न मजहा 1715)
(अबू दाऊद 2433)
(मुस्नद अहमद 14302)
✅ अल्लाह इतना रहम वाला है कि सिर्फ 6 अतिरिक्त रोज़े रखने से हमें हमेशा के रोज़ों का सवाब मिल जाता है। यह उन रोज़ों की भरपाई भी कर सकता है जो किसी वजह से छूट गए हों।
8. क़यामत के दिन रोज़ा और क़ुरआन की सिफारिश
हदीस – रोजा और कुरान बंदे के लिए सिफारिश करेंगे रोजा अर्ज करेगा या रब मैं दिन के वक्त खाना पीना और नफशानी ख्वाहिश से इसे रोका इसके मुत्तलिब मेरी सिफारिश कबूल फरमा और कुरान अर्ज करेगा मैने इसे रात के वक्त सोने से रोके रखा इसके मुत्तलिब मेरी सिफारिश कबूल फरमा फिर दोनो की सिफारिस कबूल की जाएगी
(मुस्नद अहमद 8324)
✅ रोज़ा और क़ुरआन क़यामत के दिन हमारे हक़ में गवाही देंगे, इसलिए हमें इन्हें अपनाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।
9. लैलातुल क़द्र में इबादत का इनाम
हदीस – जो लोग ईमान के साथ अपना जायजा लेते होए लैलातुल कद्र में इबादत करे उसके तमाम पिछले गुना माफ कर दिए जाते है
(सही बुखारी 35,1901,2009)
✅ यह रात बहुत बरकतों वाली है, जिसमें की गई इबादत का अज्र (सवाब) हज़ार महीनों से बेहतर होता है, इसलिए हमें इसे गंवाना नहीं चाहिए।
10. अल्लाह की मेहरबानी और रमज़ान की बरकत
1. रोज़े में भी अल्लाह खिलाता है
“अगर कोई रोज़े में भूलकर खा-पी ले, तो उसे अपना रोज़ा पूरा करना चाहिए, क्योंकि अल्लाह ने उसे खिलाया और पिलाया।”
(सही बुखारी 1933)
2. रमज़ान में जहन्नम से आज़ादी और दुआ की कबूलियत
“अल्लाह रमज़ान की हर रात और दिन में लोगों को जहन्नम से आज़ाद करता है और हर मुसलमान की दुआ कबूल की जाती है।”
(मुस्नद अहमद 7450)
3. सेहरी की बरकत
“सेहरी खाओ, क्योंकि इसमें बरकत होती है।”
(सही बुखारी 1923)
✅ अल्लाह ने रमज़ान को बरकत और रहमत वाला महीना बनाया है। हमें इस महीने की कद्र करनी चाहिए और अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए कि वह हर साल हमें हिदायत और मग़फिरत का यह मौका देता है।
11. रोज़े का वैज्ञानिक लाभ (Scientific Benefits of Fasting)
✅ इस्लाम में हर हुक्म के पीछे एक हिकमत होती है। विज्ञान भी इस बात को मानता है कि रोज़ा शरीर और दिमाग़ दोनों के लिए फायदेमंद है।
1. रोज़े से शरीर की सफाई (Detoxification)
जब हम रोज़ा रखते हैं, तो शरीर ऑटोफैगी (Autophagy) प्रक्रिया से गुजरता है।
A. ऑटोफैगी क्या है?
ऑटोफैगी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें शरीर पुरानी और खराब कोशिकाओं को हटाकर नई कोशिकाएँ बनाता है।
✅ इस खोज के लिए जापानी वैज्ञानिक योशिनोरी ओहसुमी को 2016 में नोबेल पुरस्कार मिला।
2. रोज़े से दिमाग़ तेज़ होता है
✅ उपवास करने से ब्रेन डेराइव्ड न्यूरोट्रोफिक फैक्टर (BDNF) बढ़ता है, जो याददाश्त और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
📖 (Frontiers in Aging Neuroscience, 2014)
3. रोज़ा और हृदय स्वास्थ्य
✅ उपवास करने से कोलेस्ट्रॉल कम होता है और दिल की बीमारियाँ कम होती हैं।
📖 (American Journal of Clinical Nutrition, 2015)
4. रोज़ा और वजन घटाना (Weight Loss)
✅ इंटरमिटेंट फास्टिंग (Intermittent Fasting) के ज़रिए शरीर चर्बी जलाने लगता है।
📖 (Obesity Journal, 2016)
12. इतिहास में रोज़े का महत्व (Fasting in Other Religions)
✅ हिंदू धर्म: एकादशी, नवरात्रि और करवा चौथ के उपवास।
✅ ईसाई धर्म: यीशु मसीह (अ.स.) ने 40 दिन उपवास किया था।
✅ बौद्ध धर्म: बुद्ध ने आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए उपवास किया था।
📖 (Comparative Religion Studies, 2020)
✅ इससे साफ़ है कि रोज़ा सिर्फ़ इस्लाम में ही नहीं, बल्कि हर धर्म में आत्म-संयम का साधन रहा है।
4. रोज़े से जुड़ी गलतफहमियाँ (Myths vs. Reality)
❌ मिथक 1: रोज़ा सेहत के लिए नुकसानदायक है
✅ सत्य: वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि उपवास शरीर और दिमाग़ दोनों के लिए फायदेमंद है।
❌ मिथक 2: रोज़ा सिर्फ मुसलमान रखते हैं
✅ सत्य: हिंदू, ईसाई और बौद्ध धर्म में भी उपवास की परंपरा है।
❌ मिथक 3: रोज़ा सिर्फ भूखा-प्यासा रहने का नाम है
✅ सत्य: रोज़े का मकसद तक़वा, सब्र और आत्म-संयम को बढ़ाना है।
Conclusion
“रोज़ा सिर्फ़ भूखा-प्यासा रहने का नाम नहीं, बल्कि यह तक़वा, सब्र और आत्म-संयम की इबादत है, जो इंसान को अल्लाह के करीब ले जाती है और उसकी ज़िंदगी को बेहतर बनाती है।”
अल्लाह हमे नेक अमल करने की तोफिक आता फरमाए आमीन।
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