बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
पैसे होते हुए भी कर्ज अदा न करे – इस्लामी नजरिया, सजा और नुकसान | Sahih Bukhari 2400 की तफसीर
इस्लाम में कर्ज़ अदा करना फर्ज़ है। जो पैसे होने के बावजूद कर्ज़ नहीं चुकाता, उसके लिए क्या सजा है? जानिए Sahih Bukhari 2400 की तफसीर, इस्लामी नजरिया और नुकसान, सिर्फ़ क़ुरआन और हदीस की रौशनी में।
भूमिका
इस्लाम में हर इंसान के हक़ को सुरक्षित रखने की हिदायत दी गई है। अगर कोई किसी से कर्ज़ ले और पैसे होने के बावजूद वापस न करे, तो यह इस्लामी शिक्षाओं के खिलाफ़ है।
रसूलअल्लाह (ﷺ) ने कर्ज़ चुकाने में टालमटोल करने वाले को ज़ालिम कहा है। इस आर्टिकल में हम Sahih Bukhari 2400 की हदीस की तफसीर के साथ-साथ कर्ज़ न चुकाने के दुनिया और आख़िरत में होने वाले नुकसान पर चर्चा करेंगे।
Sahih Bukhari 2400 की हदीस
इस्लाम में कर्ज (क़र्ज़) को एक गंभीर ज़िम्मेदारी माना गया है। अगर किसी व्यक्ति ने कर्ज लिया है और उसके पास पैसे होने के बावजूद उसे अदा नहीं करता, तो यह न केवल अन्याय है बल्कि बड़ा गुनाह भी है। यह अमल समाज में बेइमानी, फितना और बदअमनी को जन्म देता है। इस लेख में हम इस्लाम के अनुसार कर्ज न चुकाने के अंजाम, कुरान और हदीस की रोशनी में इसकी गंभीरता और इससे बचने के तरीके पर चर्चा करेंगे।
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कोई शक्श कर्ज अदायगी पर ताकत रखने के बावजूद ताल मतोल करना जुल्म है।
नोट – पैसे ना देना जुल्म है और यह ऐसा जुल्म है की तुम अभी जानते नही हो। और अल्लाह ने इस जुल्म की सजा भी बताई है। और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस पर जोर भी डाला है।
(Sahih Bukhari 2400)
इस्लाम में कर्ज़ अदा करना क्यों जरूरी है?
1. कुरआन में कर्ज़ अदा करने का हुक्म
“ऐ ईमानवालों! जब तुम किसी को उधार दो, तो उसे लिख लिया करो।”
हदीस की तफसीर:
1. और अगर तुम कर्ज लेते हो और नियत नही है तो अल्लाह तुम्हे तबाह कर देगा।
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2. कर्ज ना देना तो शहादत वाले को भी माफ नही है तो तुम अपने आप को क्या समझ के बेटे हो।
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नोट – हमे चाहिए की हम कर्ज लेने से बचे हालाकि कर्ज लेना जायज है मगर किसी से कर्ज ले तो उसका कर्ज उतर दे और अगर जायदा हो तो घर वालो को बोल दे की अगर में नही उतर पाया तो आप उतर देना।
कर्ज़ अदा न करने के अंजाम और नुकसान
1. दुनिया में नुकसान
✅ लोग भरोसा करना छोड़ देते हैं।
✅ कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
✅ समाज में इज्जत खराब हो जाती है।
2. आखिरत में नुकसान
⚠️ कर्ज़ अदा न होने तक रूह परेशान रहेगी।
⚠️ क़यामत के दिन हिसाब बहुत सख्त होगा।
⚠️ अल्लाह की नाराज़गी का सामना करना पड़ेगा।
कर्ज़ अदा करने के लिए इस्लामी तरीके
1. नियत को सही करें
कर्ज़ लेने के वक्त ही यह पक्का इरादा करें कि इसे समय पर लौटा देंगे।
2. कर्ज़ उतारने की दुआ पढ़ें
रसूलअल्लाह (ﷺ) ने एक दुआ सिखाई है, जो कर्ज़ उतारने में मदद करती है:
اللهم اكفني بحلالك عن حرامك وأغنني بفضلك عمن سواك
“ऐ अल्लाह! मुझे हलाल रोज़ी से हराम से बचा और अपने फज़ल से दूसरों से बेनियाज़ कर।”
(तिर्मिज़ी: 3563)
3. जल्दी अदा करने की कोशिश करें
अगर पैसे कम भी हों, तो धीरे-धीरे ही सही, लेकिन कर्ज़ चुकाने की नीयत से आगे बढ़ें।
निष्कर्ष
इस्लाम में कर्ज़ अदा करना बहुत जरूरी है। Sahih Bukhari 2400 की हदीस बताती है कि जो इंसान पैसे होते हुए भी कर्ज़ न लौटाए, वह जालिम है। उसे दुनिया और आख़िरत दोनों में नुकसान होगा।
इसलिए, अगर हमने कर्ज़ लिया है, तो इसे समय पर अदा करने की पूरी कोशिश करें।
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