बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
Qarz Na Dena Kabira Gunna Hai | हदीस 4691 के अनुसार इस्लाम में अंजाम और तफसीर
इस्लाम में कर्ज़ अदा करना बेहद ज़रूरी है। सुन्नन अन-निसाई हदीस 4691 के अनुसार, कर्ज़ न चुकाने वाला शहीद होने के बावजूद जन्नत में नहीं जा सकता। जानिए Qarz Na Dena Kabira Gunna Hai कुरआन-हदीस के हुक्म और इसकी तफसीर।
हदीस
रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
“उस जात की कसम, जिसके हाथ में मेरी जान है! अगर कोई व्यक्ति अल्लाह की राह में शहीद किया जाए, फिर जिंदा किया जाए, फिर शहीद किया जाए, फिर जिंदा किया जाए, फिर शहीद किया जाए और उस पर कर्ज़ हो, तो वह जन्नत में दाखिल नहीं होगा जब तक कि उसका कर्ज़ अदा न कर दिया जाए।”
📖(सुन्नन अन-निसाई: हदीस 4691)
👉 यह हदीस कर्ज़ की गंभीरता को दर्शाती है और हमें सिखाती है कि आखिरत (परलोक) में भी इसका हिसाब होगा।
हदीस की व्याख्या (तफसीर)
सुन्नन अन-निसाई हदीस 4691 में यह साफ़ बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति अल्लाह की राह में शहीद भी हो जाए, लेकिन अगर उस पर कर्ज़ बाकी हो, तो वह जन्नत में दाखिल नहीं होगा जब तक कि उसका कर्ज़ चुका न दिया जाए।
इस हदीस की गहराई से समझ
1. शहीद का बड़ा दर्जा लेकिन कर्ज़ की रुकावट
इस्लाम में शहीद का बहुत ऊँचा मुकाम (दर्जा) है।
शहीद के सभी गुनाह माफ कर दिए जाते हैं, लेकिन अगर किसी का हक़ बाकी है (जैसे कर्ज़), तो उसे माफ़ नहीं किया जाएगा जब तक कि वह चुका न दिया जाए।
यह साबित करता है कि अल्लाह के हुक़ूक़ (इबादत) से भी ज्यादा इंसानों के हुक़ूक़ (हक़ अदा करना) का महत्व है।
2. कर्ज़ दुनिया और आखिरत दोनों में असर डालता है
कर्ज़ केवल इस दुनिया का मामला नहीं है, बल्कि मरने के बाद भी इंसान पर इसका असर रहता है।
अगर किसी पर कर्ज़ बाकी है, तो उसकी रूह (आत्मा) भी रोकी जा सकती है, जैसा कि एक दूसरी हदीस में आता है:
रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
“मुसलमान की रूह तब तक रोकी रहती है जब तक उसका कर्ज़ चुका न दिया जाए।”
👉 यानी मरने के बाद भी कर्ज़ अदा न होने पर इंसान को सुकून नहीं मिलता।
3. कर्ज़ चुकाने की नीयत का महत्व
अगर कोई व्यक्ति सच्चे दिल से कर्ज़ चुकाने की नीयत रखता है, लेकिन किसी मजबूरी की वजह से चुका नहीं पाता, तो अल्लाह उसकी मदद करेगा।
लेकिन अगर कोई कर्ज़ लेकर उसे लौटाने की नीयत ही न रखे, तो वह गुनहगार होगा।
रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
“जिस व्यक्ति की नीयत कर्ज़ लौटाने की नहीं होती, वह चोर की तरह है।”(इब्न माजा: 2410)
👉 यानी जो जानबूझकर कर्ज़ नहीं लौटाता, वह गुनाहगार और धोखेबाज है।
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कुरआन में कर्ज़ अदा करने का हुक्म
कुरआन में कर्ज़ को सही तरीके से अदा करने के लिए साफ़ हुक्म दिया गया है।
अल्लाह तआला फरमाते हैं:
“और अगर कोई तंगहाली में हो, तो उसे राहत मिलने तक मोहलत दो, लेकिन यदि तुम माफ कर दो तो यह तुम्हारे लिए और भी बेहतर है, अगर तुम जानते हो।”
(सूरह अल-बक़रह 2:280)
👉 इस आयत से क्या सीख मिलती है?
अगर किसी ने कर्ज़ लिया है, तो उसे जल्द से जल्द लौटाना चाहिए।
अगर कर्ज़दार (उधार लेने वाला) परेशान है, तो उसे कुछ समय देना चाहिए।
अगर माफ कर सकते हो, तो माफ करना एक बहुत बड़ा सवाब (पुण्य) है।
कर्ज़ न चुकाने के दुष्परिणाम
1. दुआएं कुबूल नहीं होतीं
जो व्यक्ति कर्ज़ लेकर लौटाने की नीयत नहीं रखता, उसकी दुआ कुबूल नहीं होती।
2. अख़लाकी (नैतिक) गिरावट होती है
कर्ज़ न चुकाने वाले को समाज में भरोसेमंद नहीं माना जाता।
अगर इंसान किसी और का हक़ मारता है, तो अल्लाह उसे दुनिया में भी ज़लील कर सकता है।
3. मौत के बाद भी सज़ा
अगर कोई कर्ज़ चुका कर नहीं मरा, तो कयामत के दिन उसके नेकियों (अच्छे कर्मों) से वह रकम चुका दी जाएगी।
अगर नेकियाँ खत्म हो गईं, तो कर्ज़दार के गुनाह इसे चुकाने वाले को दे दिए जाएंगे।
✅ कर्ज़ लेने और देने के सही तरीके
कर्ज़ लेने वाले के लिए हिदायतें
✔ जरूरत हो तभी कर्ज़ लें, शौक के लिए नहीं।
✔ जितनी जल्दी हो सके, कर्ज़ चुका दें।
✔ अगर किसी कारण से समय पर अदा नहीं कर सकते, तो कर्ज़ देने वाले से मोहलत मांगें।
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कर्ज़ देने वाले के लिए हिदायतें
✔ जरूरतमंद को बिना सूद (ब्याज) के कर्ज़ दें।
✔ अगर सामने वाला तंगहाली में है, तो उसे कुछ समय की मोहलत दें।
✔ अगर माफ कर सकते हैं, तो माफ कर दें, इसका बहुत बड़ा सवाब है।
निष्कर्ष
इस्लाम में इंसानों के आपसी हुक़ूक़ (अधिकार) को बहुत महत्व दिया गया है। किसी का हक़ मारना या किसी के पैसे लेकर वापस न करना एक बहुत बड़ा गुनाह (कबीरा गुनाह) माना जाता है। यही वजह है कि कर्ज़ (उधार) लेने और उसे समय पर चुकाने पर इस्लाम में बहुत ज़ोर दिया गया है।
इस्लाम में कर्ज़ लेना और उसे समय पर लौटाना बहुत महत्वपूर्ण है। अगर कोई कर्ज़ लेकर उसे वापस नहीं करता, तो वह गुनाहगार होता है। हदीस 4691 हमें बताती है कि शहीद होने के बावजूद भी कर्ज़ अदा किए बिना जन्नत में जाना मुमकिन नहीं है।
👉 इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि अगर उसने किसी से कर्ज़ लिया है, तो उसे ईमानदारी से लौटाने की पूरी कोशिश करे।
📢 अल्लाह हमें कर्ज़ लेने से बचने और अगर ले लिया हो, तो उसे सही समय पर लौटाने की तौफीक़ (सामर्थ्य) दे, आमीन!
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