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Qarz Ada Na Karne Ki Saza : सुन्न इब्न माजा 2410 की हदीस और तफ़सीर | Punishment for Not Paying Debt in Islam
Qarz Ada Na Karne Ki Saza – इस्लाम में क़र्ज़ अदा करने की एहमियत क्या है? सुन्न इब्न माजा 2410 की हदीस के मुताबिक़ जो शख़्स क़र्ज़ अदा नहीं करता, उसका अंजाम क्या होगा? जानिए इस हदीस की तफ़सीर और इस्लामी तालीमात।
मुक़द्दिमा
इस्लाम में क़र्ज़ (ऋण) को बहुत एहमियत दी गई है। अगर कोई शख़्स मजबूरी में क़र्ज़ लेता है, तो उस पर उसे अदा करना वाजिब (ज़रूरी) होता है। रसूलुल्लाह ﷺ ने इस्लामी मुआशरे में अमानतदारी और दीانتदारी पर ज़ोर दिया है। इसी सिलसिले में सुन्न इब्न माजा की हदीस नंबर 2410 हमें यह समझाने के लिए काफी है कि Qarz Ada Na Karne Ki Saza(क़र्ज़ अदा न करने का अंजाम)कितना संगीन हो सकता है।
हदीस:
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिस शक्श ने किसी से कर्ज लिया फिर उसकी नियत कर्ज अदा करने की ना हो और अगर वो जिंदगी में कर्ज अदा ना करा हो तो अल्लाह से चोर की हालत में मिलेगा।
(सुन्न इब्न माझा – 2410)
इस हदीस की तफ्सीर और सबक़
1. क़र्ज़ अदा करने की अहमियत
इस हदीस से साफ़ ज़ाहिर होता है कि इस्लाम में क़र्ज़ अदा करना कितना ज़रूरी है। अगर कोई शख़्स क़र्ज़ लेकर जान-बूझकर उसे अदा न करने का इरादा रखता है, तो वह गुनहगार होगा और क़यामत के दिन उसकी हालत बहुत बुरी होगी।
2. Qarz Ada Na Karne Ki Saza(क़र्ज़ न चुकाने वाले की सज़ा)
रसूलुल्लाह ﷺ ने ऐसे शख़्स को “चोर” कहा, क्योंकि वह दूसरों का हक़ नाजायज़ तरीके से इस्तेमाल कर रहा होता है। क़यामत के दिन अल्लाह तआला ऐसे इंसान से सख़्ती से हिसाब लेगा।
3. क़र्ज़ लेने और देने के इस्लामी आदाब
इस्लाम में क़र्ज़ लेने और देने से मुताल्लिक़ कुछ अहम उसूल बताए गए हैं:
➡ क़र्ज़ लेने वाले को यह नीयत रखनी चाहिए कि वह जल्द से जल्द उसे अदा करेगा।
➡ क़र्ज़ देने वाले को नर्मी और सहूलत से पेश आना चाहिए।
➡ लिखित दस्तावेज़ (एग्रीमेंट) बनाना बेहतर होता है ताकि बाद में कोई झगड़ा न हो।
➡ गवाह रखना भी सुन्नत तरीका है, जैसा कि कुरआन में फ़रमाया गया है:
📖 “ऐ ईमान वालो! जब आपस में क़र्ज़ का कोई मामला करो तो उसे लिख लिया करो…”
(सूरह अल-बक़रह: 2:282)
4. ईमानदारी और ज़िम्मेदारी
जो शख़्स दूसरों के साथ अमानतदारी से पेश आता है, उसे अल्लाह दुनिया और आख़िरत दोनों में कामयाबी अता करता है।
हदीस:
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
📖 “अमानतदार ताजिर क़यामत के दिन अंबिया, सिद्दीक़ीन और शुहदा के साथ होगा।”
(सुन्न इब्न माजा, हदीस: 2139)
5. क़र्ज़ देने वाले को आसानी पैदा करनी चाहिए
📖 “अगर (मक़रूज़) तंगी में हो, तो उसे आसानी तक मोहलत देना चाहिए, और अगर तुम (क़र्ज़) माफ़ कर दो, तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है, अगर तुम जानो।”
(सूरह अल-बक़रह: 2:280)
🔹 इस आयत से यह मालूम होता है कि अगर क़र्ज़दार तंगी में है, तो उसे रियायत देना चाहिए और अगर मालिक उसे माफ कर दे, तो यह सबसे बेहतर है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
1. क्या इस्लाम में क़र्ज़ लेना जायज़ है?
✅ हां, अगर किसी को ज़रूरत है और वह इमानदारी से उसे अदा करने का इरादा रखता है, तो इस्लाम में क़र्ज़ लेना जायज़ है।
🚫 लेकिन अगर कोई धोखेबाज़ी और बेईमानी के इरादे से क़र्ज़ लेता है, तो यह हराम (नाजायज़) है।
2. अगर कोई शख़्स मर जाए और उसका क़र्ज़ बाकी हो?
🔹 अगर कोई शख़्स मर जाता है और उसका क़र्ज़ बाकी होता है, तो उसकी जायदाद (प्रॉपर्टी) से पहले क़र्ज़ अदा किया जाएगा, फिर वारिसों को हिस्सा मिलेगा।
क़र्ज़ और क़यामत का हिसाब
क़यामत के दिन सबसे पहले जिन मुआमलात का हिसाब लिया जाएगा, उनमें से एक क़र्ज़ भी होगा।
📖 “हर गुनाह को माफ़ किया जा सकता है, सिवाय क़र्ज़ के, जब तक कि वह अदा न किया जाए।”
(सहीह मुस्लिम: 2581)
📖 “नबी ﷺ से पूछा गया: क्या शहीद का भी क़र्ज़ माफ़ होगा? आपने फ़रमाया: नहीं! क़र्ज़ क़यामत तक बाकी रहेगा।”
(सहीह मुस्लिम: 1885)
📌 इसलिए हर मुसलमान को क़र्ज़ लेने और देने में बहुत एहतियात बरतनी चाहिए।
📌 क़र्ज़ लेने और देने के इस्लामी उसूल
इस्लाम में क़र्ज़ से मुताल्लिक़ कुछ ज़रूरी उसूल दिए गए हैं, जो हर मुसलमान को जानना चाहिए:
✅ क़र्ज़ देने वाले को चाहिए कि वह नर्मी और रहमदिली से पेश आए।
✅ क़र्ज़ लेने वाला ईमानदारी से नियत करे कि वह समय पर अदा करेगा।
✅ अगर कोई तंगी में है, तो क़र्ज़ देने वाले को मोहलत देनी चाहिए।
✅ बिना ज़रूरत के क़र्ज़ लेना सही नहीं है।
नतीजा (निष्कर्ष)
इस हदीस से यह बात साफ़ हो जाती है कि क़र्ज़ लेना हलाल (जायज़) है, लेकिन उसे अदा करना वाजिब है। अगर कोई शख़्स क़र्ज़ लेकर धोखा देता है या उसे लौटाने की नीयत नहीं रखता, तो वह आख़िरत में सख़्त अजाब का सामना करेगा। इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि वह क़र्ज़ लेने और देने में ईमानदारी और ज़िम्मेदारी से काम ले।
✅ इसलिए हमें चाहिए कि:
1️⃣ बिना ज़रूरत क़र्ज़ न लें।
2️⃣ क़र्ज़ लेने के बाद उसे ईमानदारी से चुकाएं।
3️⃣ अगर कोई तंगी में हो, तो उसे मोहलत दें या माफ कर दें।
4️⃣ क़र्ज़ का सही रिकॉर्ड रखें और दस्तावेज़ी सबूत बनाएं।
🔹 अगर हम इन इस्लामी उसूलों पर अमल करें, तो हमारा मुआशरा (समाज) बेहतर बनेगा और हम अल्लाह की बारगाह में सरख़रू होंगे।
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