बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।

Rajab Ka Mahina Or Uski Biddat – रजब का महीना और उसकी बिदअत

राजब का महीना इस्लामी कैलेंडर के चार अश्हुर-ए-हराम (मुकर्रम महीनों) में से एक है, जिनमें लड़ाई-झगड़ा और खून-खराबा हराम कर दिया गया है। यह महीना इस्लाम में एक मुक़द्दस महीना है, लेकिन इसके साथ कुछ ऐसी बिदअतें (नवाचार) जुड़ गई हैं जो इस्लामी शिक्षाओं के खिलाफ हैं।

1. माहे राज़ब:

क़बरपरस्ती

इस महीने में अजमेर में 10 दिन का उर्स लगता है। पूरे हिंदुस्तान से लोग अजमेर आते हैं ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी की दरगाह पर चादर चढ़ाने (इस अमल को उर्स कहते हैं)। उर्स उस दिन होता है जिस दिन अल्लाह के wali की वफ़ात होती है। इस वफ़ात को वफ़ात न मानकर एक बातिल और कुफ़्रीआ एकीदा बनाया गया है जिसमें कहा जाता है कि अल्लाह के wali मरते नहीं, बल्कि अल्लाह से मुलाकात करने जाते हैं। तो उनकी वफ़ात के दिन को उर्स का दिन बनाया जाता है।

नोट – अगर यह एकीदा सही होता, तो सहाबा ने रसूलुल्लाह ﷺ की वफ़ात पर उर्स बनाया होता। मगर सहाबा ने कभी ऐसा नहीं किया। अगर यह जायज़ होता तो कायनात के सबसे बड़े wali मोहम्मद रसूलुल्लाह ﷺ की वफ़ात के बाद किसी सहाबी ने कोई उर्स नहीं बनाया। वो सहाबी जो नबी ﷺ पर अपनी जान क़ुर्बान करने के लिए तैयार रहते थे, तो क्या वो नबी ﷺ की खुशी नहीं मना सकते थे, जबकि अल्लाह रब्बुल आलमीन से मोहम्मद रसूलुल्लाह ﷺ की मुलाकात हुई थी। इसलिए यह सब सही नहीं है और इस्लाम में उर्स की कोई हकीकत नहीं है। यह एक खुली बिदात है।

क़बरों पर चादर चढ़ाना

इस्लाम क़बरपरस्ती को लेकर बहुत सख्त है। इस्लाम में क़बर पर चादर चढ़ाना तो दूर, क़बर को पक्का करना भी हराम है। यहां तक कि नबी ﷺ ने अपने आखिरी समय में भी यह अल्फाज फरमाए थे:

हदीस: “यहूद और नसराह पर अल्लाह की लानत हो, उन्होंने अपने अंबिया की क़बरों को सजदा-गाह बना लिया।”

(बुख़ारी 3453, मुस्लिम 529)

नोट: अल्लाह रब्बुल आलमीन ही जाने कि ऐसी कौन सी हदीस है और कहां से आई है। ये बातें तुम सही हदीस के बजाय, जईफ़ हदीस ही ला दो जिसमें लिखा हो कि नबी ﷺ ने कहा हो कि क़बर को पक्का करो, यहां तक कि क़बर के आगे झुकना वगैरा, वो भी नबी की क़बरों पर झुकना जैसा कि यहूद और नसराह ने किया। इस पर लानत की गई है, तो फिर पीरों की क्या हैसियत है।

क़बरों को मस्जिद का दर्जा देना

हदीस: “लोगों में सबसे बत्तर वो होंगे जिन पर क़यामत आएगी और वो भी सबसे बत्तर हैं जो क़बरों को मस्जिद का दर्जा देते हैं।”

(रवायत अहमद 1653, इब्ने ख़ुज़ैमा 789)

नोट: आजकल के लोग किसी काम या बीमारी वगैरा के लिए मस्जिद नहीं जाते, बल्कि दरगाह वगैरा जाते हैं। ऐसे लोगों को बत्तर कहा गया है।

नबी की क़बरों को इबादतगाह बनाना

हदीस: अल्लाह के नबी ﷺ ने फरमाया: “ख़बरदार! तुमसे पहले लोग अंबियाओं की क़बरों को सजदा-गाह बना लेते थे। ख़बरदार, तुम क़बरों को सजदा-गाह न बना लेना, मैं तुम्हें इससे मना करता हूं।”

(मुस्लिम 532)

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नोट: अल्लाह के नबी ने अपनी उम्मत को बार-बार क़बरपरस्ती से मना किया और उससे बचने की ताखीद की। हर बार नबी ने अंबियाओं की क़बरों को इस्लाम में सजदा करना जायज़ नहीं माना। इस हदीस से यह साबित होता है कि अंबियाओं की क़बरों के आगे भी सजदा करना जायज़ नहीं है। जैसे कि इस हदीस में आता है कि क़बरपरस्ती बिदात के साथ-साथ शिर्क-ए-अकबर भी है। क़बरपरस्ती इस्लाम में एक बड़ा गुनाह है, क्योंकि अल्लाह रब्बुल आलमीन ने कुरआन में फरमाया:

कुरआन: “बेशक अल्लाह रब्बुल आलमीन अपने साथ शरीक ठहराने को माफ नहीं करता।”

(सूरह निसा: 48)

एक और हदीस में आता है:

हदीस: “या अल्लाह! मेरी क़बर को बुत न बनाना, जिसे लोग पूजने लगें। उन लोगों पर अल्लाह का सख्त अज़ाब और कहेर नाज़िल हो जो अंबियाओं की क़बरों को इबादतगाह बना लिए थे।”

(रवायत मलिक फिल मुआत्ता, किताबुस्सलात, हदीस 261, वल मुसन्नफ ली इब्न एबी शैबा 3/345)

नोट: जिस तरह से अंबियाओं की वफ़ात के बाद उनकी क़ौम के लोगों ने उनकी क़बरों को सजदा-गाह बना लिया था, उसी तरह का डर हमारे नबी ﷺ को भी था। इसलिए अल्लाह के नबी ﷺ दुआ किया करते थे। इस हदीस से यह साबित होता है कि बुत (मूर्ति) सिर्फ वो नहीं जो मंदिरों में रखी होती हैं, बल्कि हर वह क़बर बुत है जिसके सामने सजदा किया जाए, जिसकी इबादत की जाए। (दलील ऊपर वाली हदीस है)।

पक्की क़बर को गिराने का हुकुम और बुत को तोड़ने का हुकुम

हद तक कि नबी ﷺ को पक्की क़बर से इतनी नफरत थी कि हदीस में आता है:

हदीस: हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु को एक मिशन पर भेजा गया। वो मिशन था कि रास्ते में जो भी पक्की क़बर और बुत मिले, उन्हें गिरा दो।

(मुस्लिम 969)

नोट: मगर अफसोस कि जिस क़ौम के पैगंबर को क़बरपरस्ती से इतनी नफरत हो, आज उस क़ौम के मुसलमान क़बरपरस्ती को इस्लाम का सबसे अहम हिस्सा समझ कर अंजाम दे रहे हैं। मुसलमानों, अपनी आख़िरत सुधारने के लिए तौहीद को जानो, और उसे अपनी ज़िन्दगी में लागू करो। अल्लाह न करे, अगर कोई शख्स जहन्नम में चला जाए, फिर भी सज़ा मिलने के बाद वहाँ से निकलने के मौके होंगे, अगर वो शख्स तौहीद पर मौत पाता है। कोई इंसान ज़ानी, चोर, क़ातिल, नाफ़रमान वगैरा हो सकता है, वो सब सज़ा के लिए जहन्नम में जाएगा और जलेगा, लेकिन अल्लाह की रहमत से वह एक दिन जन्नत में भी आ सकता है, अगर वो इंसान तौहीद पर मरा हो। तौहीद जन्नत में जाने की पहली शर्त है।

क़बरों को कच्चा बनाने का हुकुम

इस्लाम में कच्ची क़बर बनाने का ही तसव्वुर है, पक्की क़बर की कोई हकीकत नहीं है और इसकी कोई दलील नहीं है। अल्लाह के नबी ﷺ ने किसी भी सहाबी की वफ़ात पर ऐसा नहीं कहा कि इनकी क़बर पक्की बनाई जाए, ये बहुत नेक इंसान थे। इसके उलट, अल्लाह के नबी ﷺ ने कच्ची क़बर बनाने का हुकुम दिया है।

हदीस: जाबिर रज़ी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के नबी ﷺ ने क़बरों को पक्का करने, उन पर बैठने और उन पर इमारत (बिल्डिंग) बनाने से मना फरमाया है।

(मुस्लिम 2245)

नोट: आजकल लोग क़बरों को पक्की कर लेते हैं और जब उनसे कहा जाता है तो कहते हैं कि हम तो करेंगे ताकि बारिश से बचती है और यादगार भी रहती है।

दरगाहों की ज़ियारत करने जाना

हदीस: अल्लाह के नबी ﷺ ने एक हदीस में फरमाया है कि बस 3 मस्जिदें ऐसी हैं जिनकी ज़ियारत करना जायज़ है, यानी जिनकी ज़ियारत सवाब की नीयत से की जा सकती है।

(बुख़ारी 1189)

नोट: इनके अलावा किसी और मस्जिद की ज़ियारत सवाब की नीयत से करना जायज़ नहीं है। लिहाज़ा, जब नबी ﷺ मस्जिदों की ज़ियारत से मना फरमाते हों, तो दरगाहों की ज़ियारत की तो कोई हैसियत नहीं है।

7 औरतों का दरगाहों पर जाना

जिन इंसानों की ज़िन्दगी से सुन्नत निकल जाए, फिर उनका हर अमल सुन्नत के खिलाफ हो जाता है और सुन्नत के खिलाफ अमल उन्हें दीने का हिस्सा नज़र आता है। और दीने का हिस्सा उनका गलत नज़र आता है। यह बिदाती लोगों की दुनियावी सजा है।

हदीस: अल्लाह के नबी ﷺ ने फरमाया: “अगर तुम्हारी औरतें मस्जिद जाने की इजाज़त मांगें तो उन्हें मत रोको।”

(बुख़ारी 865)

नोट: अब इस हदीस के खिलाफ क़बरपरस्त मौलवी का फ़तवा है कि औरत मस्जिद में नहीं जा सकती, क्योंकि फ़ितना फैलेगा। उन्होंने मस्जिद में जाने की सुन्नत से औरतों को रोका, अल्लाह ने उनकी ज़िन्दगी में वो काम नफीस कर दिया जिससे नबी ﷺ ने रोका था। क़बरपरस्त मौलवी औरतों को पर्दे की हालत में मस्जिद जाने से रोक देंगे, लेकिन आज तक उर्स में लगने वाले मेलों में तैयार होकर आने वाली औरतों को नहीं रोक सके। और अल्लाह की क़स्म, मस्जिद जैसी पाक जगह में औरत जाए तो कोई फ़ितना नहीं है, लेकिन क़बरों पर लगने वाले मेले ज़िना का अड्डा हैं, मैं दावे के साथ कहता हूं ये।

औरतों का मेलों में जाना

हदीस: ऐसी औरतों के बारे में इब्ने अब्बास से मर्वी है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने बेहयाई का मरकज़ होने के क़बरों पर जाने वाली औरतों पर लानत फरमाई है और आप ने उन लोगों को भी मलून क़रार दिया जो क़बरों पर मस्जिद बनाते और चिराग़ाँ करते हैं।

(तिरमिज़ी 320)

नोट: तो आपने यह समझ ही लिया है कि राजब के महीने में यह सब करना बिदात और शिर्क है। चलिए अब हम 2 बिदात की तरफ़ बढ़ते हैं।

2. माहे राज़ब:

राज़ब के कुंडे

यह बिदत करी तो अहले बैत की मुहब्बत के नाम पर है लेकिन दरहकीकत यह बिदत करी जाती है अमीरुल मोमिनीन सैयदना मविया बिन अबू सुफयान र.अ की शहादत की खुशी में आई यह इस पर रोशनी डालते हैं और इसकी हकीकत जानते हैं।

कहानी: राज़ब को इमाम जाफर सादिक के नाम के कुंडे बनाए जाते हैं बाज़ार से कुंडे खरीद कर लाकर उसमें मिठाइयाँ भरकर लड्डू रखकर वह बांटे जाते हैं और यह सब इमाम जाफर की मिलाद (जन्मदिन) की खुशी में किया जाता है और इसके लिए एक झूठी कहानी बयान की जाती है कि “एक लकड़हारा था बहुत परेशान था, उसकी बीवी किसी महल में सफाई का काम करती थी तो एक दिन उस पर इमाम जाफर की नज़र पड़ी, उन्होंने पूछा क्यों इतना परेशान है? उसने कहा बहुत गरीब हूँ तो इमाम जाफर ने कहा कि देखो राज़ब का महीना आने वाला है 22 राज़ब को बाज़ार से नए कुंडे खरीदो, उसमें मिठाइयाँ रखो और मेरे नाम के वसीले से अल्लाह से दुआ करो” लेकिन जब तहकीकात की गई तो पता चला कि इमाम जाफर की पैदाइश राज़ब में हुई ही नहीं, उनकी पैदाइश रमज़ान की 8 तारीख को हुई थी, लिहाज़ा यह कहानी झूठी और फ़र्ज़ी है जिसका इमाम जाफर से कोई लेना-देना नहीं है!

राज़ब के कुंडे इजात करने की वजह

नोट: हकीकत में 22 राज़ब को अमीरुल मोमिनीन सैयदना मविया बिन अबू सुफ्यान र.अ का वफ़ात हुआ था और हमारे दरमियान ज़मीन के सबसे बदतर फिर्के, सबसे जाहिल क़ौम काफिर राफ़िदा वो सबसे ज़्यादा नफ़रत मविया र.अ से ही करते हैं, इस लिए उन लोगों को हज़रत मविया की वफ़ात पर खुशी हुई थी, लेकिन उनकी वफ़ात की खुशी को ओपनली नहीं मना सकते थे, तो यह झूठी कहानी का इस्तेमाल करके इमाम जाफर का नाम लेकर मविया र.अ की वफ़ात की खुशी मनाना शुरू किया और बदकिस्मती से यह जाहलत और बिदत हमारे नाम के सुन्नी भाईयों (बरेलवी) में भी आ गई, आज वो भी बिना जाने इस बिदत में पूरे जोश के साथ हिस्सा लेते हैं और याद रहे ऐसा ही होता है जब इंसान सुनतों के खिलाफ चलता है तो बिदतों को अपना लेता है, फिर उसकी ज़िन्दगी में 9 दलील नाम की चीज़ निकल जाती है, उसे हर बात इस्लाम के नाम पर क़बूल होती है, इस लिए हमारे बरेलवी भाई इस बिदत में भी गिर गए क्योंकि दलील से उनका कोई लेना-देना नहीं है (अल्लाह हिदायत दे) और यही वजह से अहलुल हदीथ हर बिदत से दूर है क्योंकि हम लोग मुइताज़ है दलील के, हम लोग दलील देते हैं और दलील माँगते हैं, बिना दलील के हम किसी की बात पर लब्बैक नहीं कहते, अलहम्दुलिल्लाह अल्लाह से दुआ है कि मौत तक हमें अहलुल हदीथ के मनहज पर ही रखे, आमीन।

सवाल: अमीर मविया र.अ से राफ़िदा क्यों नफ़रत करते हैं?

जवाब: क्योंकि अमीरुल मोमिनीन सैयदना मविया बिन अबू सुफयान र.अ के दौर-ए-खिलाफत में ख़ारिजियों/बिदती/यहूदियों का जीना मुश्किल हो चुका था। हज़रत मविया के लश्करों ने काफिरों से जंगें की, बहुत सी फतहें हासिल हुईं, अफ्रीका में इस्लाम का परचम लहराया और तरह-तरह की कामयाबी उम्मत को अमीरुल मोमिनीन सैयदना मविया बिन अबू सुफ्यान र.अ के दौर-ए-खिलाफत में हासिल हुईं, तो अब जाहिर सी बात है क्या कोई दुश्मन-ए-इस्लाम ऐसी अज़ीम शख्सियत से खुश हो सकता है, बिलकुल नहीं। वो काफिर/मुनाफिक तो नफ़रत ही करेगा और दरहकीकत राफ़िदा यहूदियों के घड़े हैं जैसे कि शेखुल इस्लाम इमाम इब्ने तैमिया फरमाते हैं, इस लिए यहूदियों के साथ-साथ राफ़िदा को भी इस अज़ीम हस्ती से नफ़रत है!

Rajab Ka Mahina Or Uski Biddat

अमीरुल मोमिनीन सय्यदना मविया बिन अबू सुफ़यान की फ़ज़ीलत में कुछ

A. एक बार इमाम अब्दुर्रहमान बिन इब्राहीम दुहेम रहिमाहुल्लाह के सामने कहा गया कि बग़ी जमात से मुराद अहले शाम है, तो उस पर इमाम ने कहा, “नहीं, जो ये बात करे वह तवाइफ़ की औलाद है।”

[तारीख़ उल शिकत पृष्ठ संख्या: 287]

B. “अब्दुर्रहमान अबी हुमैरा फ़र्माते हैं कि नबी ने मविया के हक़ में दुआ की थी, ‘अल्लाह इसे हिदायत याफ्ता बना और इसके जरिए लोगों को हिदायत देने वाला बना दे।'”

[तिरमिज़ी 3842]

C. “सआद बिन अबी वक़ास रा. फ़र्माते हैं कि मैंने उस्मान रा. के बाद इस दरवाजे वाले से बढ़कर हक के साथ फ़ैसला करने वाला नहीं देखा और इशारा था मविया रा. के दरवाजे की तरफ।”

[तारीख़ इब्ने कसीर जिल्द संख्या 8 पृष्ठ संख्या 989]

D. नबी ने मविया रा. के लिए दुआ की थी, “अल्लाह मविया को किताब, हिसाब सिखा दे और अज़ाब से बचा दे।”

[सही इब्ने हब्बान 7210]

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नोट – ऐसे कई उक़वाला हैं जो मविया रा. की शान में बयान किए जा सकते हैं।

चलिए अब हम बात करते हैं इस महीने के बारे में कि हमें क्या करना चाहिए और हमारे लिए किस चीज़ का हुक्म है।

क़ुरआन: “बेशक अल्लाह रब्बुल आलमीन के यहां महीनों की गिनती 12 महीने है और उसी दिन से जब अल्लाह ने ज़मीन और आसमान को पैदा किया, उनमें से 4 महीने हुरमत वाले हैं (धुल क़ायदा, धुल हिज्जा, मुहर्रम, राजब)। और यही सीधा दीन है और इन महीनों में अपने ऊपर जुल्म ना करो (यानि कि इन महीनों में थोड़ा गुनाह से परहेज़ करो)।”

(सूरह अत-तौबा 9:36)

नोट – मालूम हुआ कि राजब का महीना भी हुरमत वाला महीना है, यानी हमें इस महीने में नेकी के काम करने चाहिए और गुनाहों से बचना चाहिए, लेकिन लोगों ने इस महीने में कुछ ऐसी चीजें कर दीं और उसको नेकी का नाम दिया, जिसका इस महीने से कोई लेना-देना नहीं था। तो हम आज उन बातों को देखेंगे।

इस महीने में होने वाली बिद्दत, जिसे दीन समझकर किया जाता है, जैसे कि एक खास नमाज़ पढ़ना, खास तरह का रोज़ा रखना, और 27 तारीख को रात जागना और इस महीने में ज्यादा उमरा करने जाना, ये सभी चीज़ों पर आज हम नज़र डालेंगे।

राजब के महीने का रोज़ा और रातों में क़ायम करना

खासकर राजब के रोज़े रखने में सारी हदीसें जईफ़ हैं, बल्कि मऊज़ू हैं, अहले इल्म इनमें से किसी पर भी तामद नहीं करते।

(मजलमूल फ़तावा 25/90)

राजब के रोज़े और उसकी रातों में क़ायम के मुतालिक जितनी भी हदीसें बयान की जाती हैं, वो सारी की सारी जईफ़ हैं।

(अल मैनारुल मुनीफ/96)

खास समझकर 27 राजब का रोज़ा रखना और उस रात क़ायम करना बिद्दत है और हर बिद्दत गुम्राही है।

(मजलमूल फ़तावा इब्ने उथैमीन 20/440)

सवाल: क्या राजब अल्लाह रब्बुल आलमिन का महीना है?

जवाब: मुहर्रम अल्लाह का महीना है।

(सही मुस्लिम 1163)

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अल्लाह ताला हमें इन तमाम बिद्दतों/गुम्राहियों से पाक रखे और तमाम सहाबा से मुहब्बत करने की तौफ़ीक़ दे, याद रहे जो किसी एक सहाबी से भी नफरत करता हो, वह मुसलमान नहीं हो सकता है!!

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