रिबात की फज़ीलत – जामिया तिरमिज़ी हदीस 1665 की तफ़सीर

इस लेख में, जामिया तिरमिज़ी हदीस 1665 के ज़रिये रिबात (सरहद की हिफाज़त) की फज़ीलत और उसके रूहानी फ़ायदों को समझाया गया है। रिबात करने वाले की क़ब्र और आमाल से जुड़ी हिदायतें भी दी गई हैं।

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हदीस का मुतन:

सलमान अल-फ़ारसी (रज़ि.) बयान करते हैं कि उन्होंने शुहरहबील बिन अस-सिम्त से कहा:

“मैंने रसूलुल्लाह ﷺ से सुना कि: ‘अल्लाह के रास्ते में एक दिन के लिए सरहदों की हिफ़ाज़त (रिबात) करना एक महीने के रोज़े और रात की इबादत से बेहतर है। और जो इस हालात में वफ़ात पा जाता है, उसे क़ब्र की आज़माइशों से बचा लिया जाता है, और उसके आमाल क़ियामत के दिन तक बढ़ते रहते हैं।'”

(जामिया तिरमिज़ी 1665, सही हदीस)

तफ़सीर और तशरीह

1. रिबात का मतलब और इस्लाम में अहमियत

इस हदीस में “रिबात” (رباط) का तज़किरा किया गया है। रिबात से मुराद वो अमल है जिसमें मुसलमान सरहदों की हिफ़ाज़त और हिफाज़ती चौकसी करते हैं। इस्लाम में यह अमल इंतिहाई अज्र व सवाब वाला माना गया है क्योंकि यह उम्मत की हिफ़ाज़त से वाबस्ता है।

2. कब्र के अज़ाब से निजात

इस हदीस से हमें ये मालूम होता है कि अल्लाह की राह में सरहद की हिफ़ाज़त करने वाला शख्स अगर वफ़ात पा जाए, तो उसे क़ब्र के अज़ाब से महफ़ूज़ कर दिया जाता है। यानी मरने के बाद उसकी रूह किसी सख़्ती में नहीं डाली जाती, बल्के उसे आराम और सकून दिया जाता है।

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3. आमाल जारी रहने की नेमत

हदीस में बताया गया कि रिबात करने वाले के आमाल क़यामत तक बढ़ते रहते हैं। आम तौर पर जब इंसान का इंतेक़ाल हो जाता है, तो उसके आमाल रुक जाते हैं, मगर शहीद और रिबात करने वाले को ये ख़ुसूसी नेमत दी जाती है कि उसके नेक आमाल का सिलसिला जारी रहता है।

इस हदीस से हमें क्या सीख मिलती है?

✅ अल्लाह की राह में दी गई कुर्बानी बेकार नहीं जाती।

✅ रिबात करना सिर्फ एक जहादी अमल नहीं, बल्के उम्मत की हिफ़ाज़त और इमान की ताक़त का हिस्सा है।

✅ इस्लाम में सरहदों की हिफ़ाज़त करना सिर्फ दीन की नहीं, बल्के दुनिया की भी हिफाज़त करना है।

✅ जो लोग अल्लाह की राह में अपनी जिंदगी लगाते हैं, उनकी मौत भी बारकत वाली होती है।

ख़ात्मा

ये हदीस हमें बताती है कि जो शख्स उम्मत की हिफ़ाज़त और इस्लाम की सरहदों की निगरानी करता है, वो न सिर्फ इस दुनिया में अज्र पाता है, बल्कि उसकी मौत के बाद भी उसके आमाल लिखे जाते रहते हैं। इस्लाम हमें अल्लाह की राह में जद्दोजहद और क़ुर्बानी की अहमियत सिखाता है, और रिबात इसका बेहतरीन नमूना है।

📖 हवाला: जामिया तिरमिज़ी 1665 (सही)

इस्लामी परिभाषा में “रिबात” का मतलब:

1. अल्लाह के रास्ते में सरहदों (बॉर्डर) की हिफ़ाज़त करना:

वो मुसलमान जो इस्लामिक सरहदों की निगरानी और रक्षा करते हैं ताकि दुश्मन अचानक हमला न कर सके।

यह काम जिहाद फी सबीलिल्लाह (अल्लाह के रास्ते में जिहाद) के तहत आता है।

2. अल्लाह की राह में हमेशा दीन की हिफ़ाज़त और इबादत में लगे रहना:

कुछ विद्वानों के अनुसार, इसमें वो लोग भी शामिल हैं जो हमेशा इबादत, इल्म और तक़वा में लगे रहते हैं और इस्लाम की हिफ़ाज़त करते हैं।

क़ुरआन में “रिबात” का ज़िक्र

अल्लाह तआला फरमाते हैं:

“और जितनी ताक़त और घुड़सवारों की फ़ौज तुमसे हो सके तैयार रखो, जिससे तुम अल्लाह के दुश्मन और अपने दुश्मनों को डराओ…”

📖 (सूरह अल-अंफ़ाल 8:60)

रिबात का फ़ज़ीलत और आज के दौर में इसकी अहमियत

यह सिर्फ़ जंग के मैदान तक सीमित नहीं, बल्कि दीन की हिफ़ाज़त करने, इस्लामी तालीमात को फैलाने और हक़ के लिए खड़े रहने को भी “रिबात” माना जाता है।

जो लोग इस्लाम की हिफ़ाज़त और इल्म-ए-दीन को ज़िंदा रखते हैं, वो भी “रिबात” की नेकी में शामिल हो सकते हैं।

नतीजा:

“रिबात” का मतलब इस्लामिक सरहदों और दीन की हिफ़ाज़त करना है, चाहे वो जंग में हो, इल्म में हो या अल्लाह के रास्ते में इबादत के ज़रिए हो।

Conclusion :

रिबात की फज़ीलत सिर्फ जंग तक सीमित नहीं, बल्कि हर वो शख्स जो इस्लाम की हिफ़ाज़त और दीन की तालीम में लगा रहता है, वह रिबात की बरकत में शामिल है। इस हिदायत को अपनी ज़िन्दगी में अपनाकर हम अपनी रूहानी और दुनियावी सफलता की तरफ बढ़ सकते हैं।”

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