बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है

Roza Rakhne Ka Sahi Tarika – इस्लामिक नियम और सुन्नत के अनुसार

जानें Roza Rakhne Ka Sahi Tarika, इस्लामिक नियम, सुन्नत तरीक़े, और आम ग़लतियाँ जो रोज़े को तोड़ सकती हैं। क़ुरआन और हदीस के मुताबिक़ रोज़े की फ़ज़ीलत और सही तरीका जानें।

Table of Contents

रमज़ान का रोज़ा इस्लाम के पाँच बुनियादी स्तंभों (अर्कान-ए-इस्लाम) में से एक है। रोज़ा सिर्फ़ भूखा-प्यासा रहने का नाम नहीं, बल्कि यह तहक़्वा (परहेज़गारी), सब्र (धैर्य) और अल्लाह की इबादत का ज़रिया है।

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1. रमज़ान के रोज़े फ़र्ज़ क्यों हैं?

❝ मुमिनों! तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किए गए हैं, जैसे तुमसे पहले लोगों पर फ़र्ज़ किए गए थे, ताकि तुम परहेज़गार बनो। ❞

(सूरह अल-बक़राह 2:183)

✅ रोज़ा हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है और यह पहले की उम्मतों पर भी फ़र्ज़ था।

✅ रोज़ा रखने से इंसान बुरे कामों से बचता है और तक़वा (परहेज़गारी) हासिल करता है।

✅ यह हमें सब्र, सहनशीलता और अल्लाह की दी हुई नेमतों का एहसास कराता है।

➡ रमज़ान का रोज़ा सिर्फ़ भूखा-प्यासा रहने के लिए नहीं, बल्कि अपनी रूह को पाक करने और अल्लाह के क़रीब होने का ज़रिया है।

रोज़ा क्यों फ़र्ज़ है?: Musalman Roza Kyu Rakhte Hain – रमजान की सच्चाई

2. कुरान किस महीने में नाज़िल हुआ?

❝ रमज़ान का महीना वह है, जिसमें कुरआन नाज़िल किया गया, जो लोगों के लिए हिदायत है और इसमें रहनुमाई और हक़ की स्पष्ट निशानियाँ हैं। इसलिए तुम में से जो इस महीने को पाए, वह रोज़ा रखे। और जो बीमार हो या सफ़र में हो, तो वह बाद के दिनों में इसकी गिनती पूरी करे। अल्लाह तुम्हारे लिए आसानी चाहता है और कठिनाई नहीं चाहता, ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो। ❞

(सूरह अल-बक़राह 2:185)

✅ कुरआन, जो अल्लाह का कलाम है, रमज़ान के मुबारक महीने में नाज़िल हुआ।

✅ इसमें इंसान के लिए रहनुमाई और सच्चाई की स्पष्ट निशानियाँ हैं।

✅ जो कोई इस महीने को पाए, उसे रोज़ा रखना चाहिए, चाहे वह कहीं भी हो।

✅ अल्लाह इंसान के लिए आसानी चाहता है, इसलिए जो बीमार हो या सफ़र में हो, वह बाद में रोज़े पूरे कर सकता है।

3. रमज़ान में खोल दिए जाते हैं जन्नत के दरवाज़े

नबी ﷺ ने फ़रमाया:

❝ जब रमज़ान का महीना आता है, तो जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं, जहन्नम के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं और शैतानों को ज़ंजीरों में जकड़ दिया जाता है। ❞

(सहीह बुख़ारी 1898-1899, जामिअ तिर्मिज़ी 682)

✅ जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं – ताकि बंदों के लिए अल्लाह की रहमत आसान हो जाए।

✅ जहन्नम के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं – ताकि इंसान बुराई से बचे और नेकियों की तरफ़ बढ़े।

✅ शैतान को जंजीरों में जकड़ दिया जाता है – ताकि वह इंसानों को गुमराह न कर सके।

4. रोज़ा नफसानी ख्वाहिश को तोड़ देता है

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ रोज़ा उसकी नफसानी ख्वाहिश को तोड़ देता है। ❞

(सहीह बुख़ारी 5066)

रोज़ा और नफसानी ख्वाहिश:

✅ रोज़ा हमें उन चीज़ों से रोकता है, जिनकी हमें ख्वाहिश होती है, लेकिन वे हमारे लिए सही नहीं होतीं।

✅ यह इंसान के सब्र, तक़वा और खुद पर क़ाबू पाने की ताक़त को बढ़ाता है।

✅ रोज़ा सिर्फ भूखा-प्यासा रहने का नाम नहीं, बल्कि अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की तर्बियत है।

✅ यह शैतान के बहकावे से बचाने और अल्लाह की रहमत हासिल करने का बेहतरीन ज़रिया है।

हमें क्या करना चाहिए?

✔️ रोज़े को सिर्फ़ पेट और गले का नहीं, बल्कि अपनी नज़रों, ज़ुबान और दिल का भी रोज़ा बनाएं।

✔️ ग़लत ख्वाहिशों से बचें और नेकी की तरफ़ बढ़ें।

✔️ सब्र और अल्लाह की रहमत की तलाश में रहें।

5. रोज़ा क्या है?

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ रोज़ा गुनाहों और जहन्नम की आग से बचाने वाली एक ढाल है। ❞

(सहीह बुख़ारी 1904, मुस्नद अहमद 14699)

✅ रोज़ा हमें गुनाहों से बचाता है और जहन्नम से सुरक्षा देता है।

✅ अल्लाह से दुआ करें कि वह हमें इस ढाल का सही इस्तेमाल करने की तौफ़ीक़ दे।

6. रमज़ान में जहन्नम से लोग आज़ाद होते हैं और दुआ क़ुबूल की जाती है

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ रमज़ान में हर दिन और हर रात अल्लाह तआला जहन्नम से लोगों को आज़ाद करता है, और हर मुसलमान की दुआ दिन और रात में क़ुबूल की जाती है। ❞

(मुस्नद अहमद 7450)

रमज़ान – मग़फ़िरत और रहमत का महीना

✅ हर दिन और रात में जहन्नम से आज़ादी के फ़ैसले होते हैं।

✅ रमज़ान में अल्लाह अपने बंदों की दुआ क़ुबूल करता है।

✅ यह अपने गुनाहों की मग़फ़िरत माँगने और अल्लाह की रहमत हासिल करने का सबसे बेहतरीन वक़्त है।

हमें क्या करना चाहिए?

✔️ रमज़ान के हर लम्हे की क़द्र करें और अल्लाह से दुआ करें।

✔️ इस्तग़फ़ार (गुनाहों की माफ़ी) और तौबा में वक़्त गुज़ारें।

✔️ अपने लिए, अपने घरवालों और पूरी उम्मत के लिए दुआ करें।

7. दिखावे का रोज़ा और नमाज़ शिर्क है

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ जो शख़्स दिखावे के लिए रोज़ा रखता है, तो उसने शिर्क किया, और जो दिखावे के लिए नमाज़ पढ़ता है, तो उसने शिर्क किया। ❞

(मिश्कात 5331)

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रोज़ा और नमाज़ – सिर्फ़ अल्लाह के लिए

✅ इबादत का मक़सद सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा होनी चाहिए।

✅ रोज़ा और नमाज़ में दिखावा करना शिर्क के करीब ले जाता है।

✅ अल्लाह सिर्फ़ उसी इबादत को क़ुबूल करता है जो दिल से और ख़ालिस नीयत के साथ की जाए।

हमें क्या करना चाहिए?

✔️ रोज़ा और नमाज़ को सिर्फ़ अल्लाह के लिए रखें, न कि लोगों को दिखाने के लिए।

✔️ अपने दिल को साफ़ करें और इख़लास (खालिस नीयत) के साथ इबादत करें।

✔️ दिखावे से बचें, क्योंकि अल्लाह नीयत को देखता है, ना कि बाहरी अमल को।

8. Roza Rakhne Ka Sahi Tarika – इस्लामिक नियम और सुन्नत के अनुसार

1. कुरआन में रोज़े के नियम

❝ गिनती के कुछ दिनों के रोज़े रखने हैं, फिर तुम में से कोई बीमार हो या सफ़र में हो, तो बाकी दिनों में उसकी गिनती पूरी कर ले। और जो रोज़ा रखने की ताकत रखते हैं लेकिन रखते नहीं, तो वे एक मिस्कीन को खाना खिला दें। और जो कोई अपनी मर्जी से ज़्यादा नेकी करे, तो यह उसके लिए बेहतर है। और अगर तुम समझो, तो रोज़ा रखना ही तुम्हारे लिए अधिक (Haq) अच्छा है। ❞

(Surah Al Barqha 2:184)

✅ बीमार या सफ़र में हो – तो रोज़े बाद में पूरे कर सकते हैं।

✅ जो रोज़ा नहीं रख सकता – वह एक गरीब को खाना खिलाए।

✅ जो चाहें तो अधिक नेकी करें – यह उनके लिए और भी अच्छा है।

✅ रोज़ा रखना ही बेहतरीन है – क्योंकि इससे तक़वा (परहेज़गारी) बढ़ती है।

2. सेहरी करने का सही तरीका

(A) नापाकी की हालत में सेहरी करना जायज़ है

हज़रत आयशा (रज़ि.) बयान करती हैं:

❝ रमज़ान में फजर के वक़्त नबी ﷺ एहतलाम (स्वप्नदोष) की वजह से नहीं, बल्कि अपनी अज़वाज (अहलिया) के साथ सोहबत करने की वजह से जुनूबी (नापाक) होते थे। फिर आप सेहरी कर लेते और उसके बाद ग़ुस्ल फरमाते थे। ❞

(सहीह बुखारी 1926, 1930, 1931 | सहीह मुस्लिम 2590)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ नापाकी (जुनूबी) की हालत में सेहरी करना जायज़ है।

✅ रोज़े की नियत से पहले ग़ुस्ल करना ज़रूरी नहीं है, बल्कि सेहरी करने के बाद भी ग़ुस्ल किया जा सकता है।

✅ इस्लाम सहूलत का मज़हब है और रोज़े में बेवजह की सख़्ती नहीं है।

हमें क्या करना चाहिए?

✔️ अगर जुनूबी हालत में हैं, तो घबराने की ज़रूरत नहीं, पहले सेहरी कर सकते हैं और फिर ग़ुस्ल कर लें।

✔️ नमाज़ के लिए पाक-साफ़ होना ज़रूरी है, इसलिए फ़जर से पहले ग़ुस्ल कर लें।

✔️ इस्लामी अहकाम को सही तरीके से समझें और बेवजह की मुश्किलात न बनाएं।

3. रोज़े की हालत में क्या नहीं करना चाहिए?

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ जो शख़्स रोज़े की हालत में झूठ बोलना, धोखा देना और जाहिलों जैसी बातें करना न छोड़े, तो अल्लाह को उसकी कोई ज़रूरत नहीं कि वह सिर्फ़ खाना-पीना छोड़ दे। ❞

(सहीह बुखारी 6057, 1903)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ रोज़ा सिर्फ़ भूखा-प्यासा रहने का नाम नहीं, बल्कि गुनाहों से बचने का एक ज़रिया है।

✅ झूठ, धोखा, ग़ीबत और फुज़ूल बातें करने से रोज़े का मक़सद ख़राब हो जाता है।

✅ रोज़ा रखते हुए हमें अपने अख़लाक़ (चरित्र) को बेहतर बनाना चाहिए।

हमें क्या करना चाहिए?

✔️ झूठ, धोखा और बेहूदा बातों से बचें।

✔️ सब्र और अच्छे अख़लाक़ का मज़ाहिरा करें।

✔️ रोज़े को सिर्फ़ अल्लाह के लिए रखें और अपने हर अमल को पाक-साफ़ बनाएं।

4. क्या यात्रा (सफ़र) में रोज़ा रखना हराम है?

हज़रत जाबिर (रज़ि.) बयान करते हैं:

❝ नबी ﷺ सफर में थे। आपने देखा कि एक शख़्स पर लोगों ने छाया कर रखी है। आपने पूछा: क्या बात है? लोगों ने कहा: यह रोज़ेदार है। इस पर आपने फरमाया: सफर में रोज़ा रखना कोई नेकी का काम नहीं है। ❞

(सहीह बुखारी 1946 | सहीह मुस्लिम 2612)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ इस्लाम ने सफर में रोज़ा छोड़ने की इजाज़त दी है।

✅ अगर सफर में रोज़ा रखना मुश्किल हो, तो इसे बाद में पूरा किया जा सकता है।

✅ रोज़ा छोड़ना हराम नहीं है, बल्कि सहूलत दी गई है ताकि बंदा परेशानी में न पड़े।

हमें क्या करना चाहिए?

✔️ अगर सफर आसान है और कोई तकलीफ नहीं होती, तो रोज़ा रखा जा सकता है।

✔️ अगर सफर में कमजोरी, बीमारी या तकलीफ हो, तो रोज़ा छोड़कर बाद में पूरा करना बेहतर है।

✔️ इस्लाम सहूलत का मज़हब है, इसमें जबरदस्ती नहीं।

5. सवाब की नीयत से रोज़ा रखना

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ जिसने ईमान के साथ और सवाब (अल्लाह की रज़ा) की नीयत से रोज़े रखे, तो उसके तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं। ❞

(सुनन इब्न माजा 1641 | सहीह बुखारी 38)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ रोज़ा सिर्फ़ अल्लाह के लिए रखना चाहिए, न कि दिखावे के लिए।

✅ अगर रोज़ा इख़लास (खालिस नीयत) और अल्लाह की रज़ा के लिए रखा जाए, तो सारे गुनाह माफ़ हो जाते हैं।

✅ सिर्फ़ भूखा-प्यासा रहना ही रोज़ा नहीं, बल्कि नीयत का भी अहम किरदार है।

हमें क्या करना चाहिए?

✔️ हर इबादत की तरह रोज़े की भी सही नीयत होनी चाहिए।

✔️ रोज़े के दौरान अच्छे अख़लाक़ अपनाएं और गुनाहों से बचें।

✔️ रोज़ा सिर्फ़ एक रस्म या मजबूरी नहीं, बल्कि अल्लाह की रहमत और मग़फिरत पाने का ज़रिया है।

6. शव्वाल के रोज़े की फज़ीलत

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ जो शख़्स रमज़ान के रोज़े रखे और फिर उसके बाद शव्वाल के छह (6) रोज़े रखे, तो उसे हमेशा रोज़े रखने का सवाब मिलेगा। ❞

(सहीह मुस्लिम 2758, 1164 | इब्न माजा 1715 | अबू दाऊद 2433 | मुसनद अहमद 3660)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ शव्वाल के 6 रोज़े रखना बहुत बड़ी नेकी है।

✅ रमज़ान के रोज़ों के साथ अगर शव्वाल के 6 रोज़े भी रखे जाएं, तो ऐसा सवाब मिलता है जैसे पूरी ज़िंदगी रोज़े रखे हों।

✅ यह रोज़े फर्ज़ नहीं हैं, लेकिन इनका बहुत बड़ा अज्र (सवाब) है।

हमें क्या करना चाहिए?

✔️ रमज़ान के बाद शव्वाल में 6 रोज़े रखने की कोशिश करें।

✔️ इन रोज़ों को लगातार या अलग-अलग दिनों में भी रखा जा सकता है।

✔️ रोज़े के साथ-साथ अच्छे अमल और इबादत को जारी रखें।

7. रोज़ा और क़ुरआन सिफारिश करेंगे

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ रोज़ा और क़ुरआन बंदे के लिए सिफ़ारिश करेंगे।

रोज़ा कहेगा: ऐ मेरे रब! मैंने इसे दिन के वक्त खाने, पीने और ख्वाहिशात से रोके रखा, इसलिए मेरी सिफ़ारिश क़ुबूल फ़रमा।

क़ुरआन कहेगा: मैंने इसे रात के वक्त सोने से रोके रखा, इसलिए मेरी सिफ़ारिश क़ुबूल फ़रमा।

अल्लाह तआला दोनों की सिफ़ारिश को क़ुबूल फ़रमाएगा। ❞

(मुसनद अहमद 8324)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ रोज़ा और क़ुरआन क़यामत के दिन इंसान के लिए गवाही देंगे।

✅ जो शख्स रोज़े की हिफ़ाज़त करता है और क़ुरआन की तिलावत करता है, उसके लिए रोज़ा और क़ुरआन सिफ़ारिश करेंगे।

✅ रोज़ा सिर्फ़ भूखा-प्यासा रहने का नाम नहीं, बल्कि बुरी आदतों और नफ़्स से भी बचाने वाला है।

हमें क्या करना चाहिए?

✔️ रोज़े की हिफ़ाज़त करें और इसे सही नीयत से रखें।

✔️ क़ुरआन की तिलावत करें और उसके अहकामात पर अमल करें।

✔️ रोज़ा और क़ुरआन को अपनी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बनाएं ताकि क़यामत के दिन यह हमारी सिफ़ारिश करें।

8. रोज़ेदार को इफ्तार कराने का सवाब

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ जो कोई किसी रोज़ेदार को इफ्तार करा दे, तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब मिलेगा, और रोज़ेदार के सवाब में से कोई कमी नहीं होगी। ❞

(सुन्नन इब्न माजा 1746)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ इफ्तार करवाना बहुत बड़ा नेकी का काम है।

✅ अगर आप किसी रोज़ेदार को इफ्तार कराते हैं, तो आपको भी उतना ही सवाब मिलेगा जितना रोज़ेदार को मिलता है।

✅ अल्लाह तआला ने हमें ऐसे आसान तरीके दिए हैं जिनसे हम बेहिसाब सवाब कमा सकते हैं।

हमें क्या करना चाहिए?

✔️ रमज़ान में रोज़ेदारों को इफ्तार कराने की कोशिश करें।

✔️ इफ्तार छोटी से छोटी चीज़ से भी कराना काफी है, चाहे खजूर या पानी ही क्यों न हो।

✔️ दावत देने से पहले नियत सही रखें और दिखावे से बचें।

9. अय्याम ए बीज़ के रोज़ों की फज़ीलत

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ हर महीने की 13, 14 और 15 तारीख़ के रोज़े रखा करो, क्योंकि इसका सवाब पूरे साल रोज़े रखने के बराबर है। ❞

(सुन्नन अबू दाऊद 677)

अय्याम ए बीज़ क्या हैं?

✅ हर इस्लामी महीने की 13, 14 और 15 तारीख़ को ‘अय्याम ए बीज़’ कहा जाता है।

✅ ये तीन दिन चाँद की रोशनी सबसे ज़्यादा होती है, इसलिए इन्हें ‘सफेद रातें’ भी कहा जाता है।

✅ इन दिनों में रोज़ा रखना बहुत फज़ीलत वाला अमल है।

इन रोज़ों की अहमियत क्यों है?

✔️ इसका सवाब पूरे साल रोज़े रखने के बराबर मिलता है।

✔️ ये नफ़ली (सुन्नत) रोज़े हैं, जो नबी ﷺ की सुन्नत भी हैं।

✔️ ये रोज़े नफ्स की इस्लाह करते हैं और गुनाहों से बचाते हैं।

10. इफ्तार करने में जल्दी करो

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ मेरी उम्मत हमेशा भलाई में रहेगी, जब तक वे इफ्तार में जल्दी करेंगे, क्योंकि यहूदी देर से रोज़ा खोलते हैं। ❞

(सहिह बुखारी 1957, इब्न माजा 1698)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ इफ्तार करने में देरी नहीं करनी चाहिए, बल्कि सूरज डूबते ही जल्दी इफ्तार कर लेना चाहिए।

✅ यहूदी और दूसरे ग़ैर-मुस्लिम इफ्तार करने में देर करते हैं, जबकि हमें उनकी मुखालफ़त करते हुए जल्दी इफ्तार करना चाहिए।

✅ जल्दी इफ्तार करने से अल्लाह की रहमत और बरकत नसीब होती है।

हमें क्या करना चाहिए?

✔️ मगरीब की अज़ान सुनते ही बिना देरी किए इफ्तार कर लेना चाहिए।

✔️ खजूर या पानी से इफ्तार करना सुन्नत है।

✔️ इफ्तार के समय दुआ कबूल होती है, इसलिए इफ्तार से पहले अल्लाह से अपने लिए और दूसरों के लिए दुआ करें।

11. क्या रोज़े की नीयत करना ज़रूरी है?

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ जिसने फज्र से पहले रोज़े की नीयत नहीं की, उसका रोज़ा नहीं हुआ। ❞

(अबू दाऊद 682)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ रोज़ा रखने से पहले नीयत करना ज़रूरी है।

✅ नीयत दिल से करनी होती है, ज़ुबान से कहना जरूरी नहीं।

✅ अगर किसी ने बिना नीयत किए सुबह कर ली, तो उसका रोज़ा नहीं माना जाएगा।

रोज़े की नीयत कैसे करें?

✔️ नीयत यह सोचकर करें कि मैं अल्लाह के लिए रोज़ा रख रहा हूँ।

✔️ नीयत से मतलब इरादा करना है, इसका कोई ख़ास शब्द नहीं है।

✔️ सहरी के वक्त उठना और खाने की तैयारी करना भी नीयत में शामिल माना जाता है।

12. पैदाइश के दिन रोज़ा रखना

नबी ﷺ से पूछा गया:

❝ आप सोमवार के दिन रोज़ा क्यों रखते हैं? ❞

तो आप ﷺ ने फरमाया:

❝ इस दिन मैं पैदा हुआ था और इसी दिन मुझ पर वह़ी (इलाही संदेश) नाज़िल हुई थी। ❞

(सहीह मुस्लिम 2750)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ सोमवार के दिन रोज़ा रखना एक मुस्तहब (पसंदीदा) अमल है।

✅ यह रोज़ा नबी ﷺ की सुन्नत है, जिसे अपनाने पर सवाब मिलेगा।

✅ सोमवार को रोज़ा रखने की एक वजह यह भी है कि इसी दिन अल्लाह की वह़ी नाज़िल हुई थी।

13. पीर और जुमेरात के रोज़े की फज़ीलत

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ पीर और जुमेरात के दिन बंदों के आमाल (अच्छे-बुरे काम) अल्लाह की बारगाह में पेश किए जाते हैं। और मुझे यह पसंद है कि जब मेरे आमाल पेश किए जाएँ, तो मैं रोज़े की हालत में रहूँ। ❞

(जामिअ तिर्मिज़ी 725)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ पीर और जुमेरात के दिन रोज़ा रखना सुन्नत है।

✅ इन दिनों में आमाल अल्लाह की बारगाह में पेश किए जाते हैं, इसलिए रोज़े की हालत में रहना फज़ीलत वाला अमल है।

✅ नबी ﷺ की इस मुबारक सुन्नत को अपनाने से अल्लाह की रहमत और बख़्शिश (माफी) हासिल होती है।

14. अरफ़ा के रोज़े की फज़ीलत – (Youm E Arfa Ka Roza)

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ जिसने अरफ़ा (9 ज़ुल-हिज्जा) के दिन रोज़ा रखा, उसके एक साल पिछले और एक साल अगले गुनाह माफ़ कर दिए जाएंगे। ❞

(सुनन इब्न माजा 1730, 1731 | सहीह मुस्लिम 1162)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ अरफ़ा का रोज़ा बहुत बड़ा अज्र (सवाब) रखने वाला अमल है।

✅ यह रोज़ा दो साल के गुनाहों की माफी का ज़रिया बनता है।

✅ अरफ़ा का दिन हज के सबसे अहम दिनों में से एक है, इसलिए इस दिन रोज़ा रखने की खास फज़ीलत है।

15. रोज़ा क़ज़ा करने का हुक्म – (Roza Qaza Karne Ka Hukum)

हज़रत आयशा (र.अ) से पूछा गया:

❝ हायज़ (मासिक धर्म) वाली औरत रोज़े की क़ज़ा करती है, लेकिन नमाज़ की क़ज़ा नहीं करती, इसका क्या मामला है? ❞

हज़रत आयशा (र.अ) ने फरमाया:

❝ हम नबी ﷺ के ज़माने में हायज़ होती थीं, तो हमें रोज़े की क़ज़ा करने का हुक्म दिया जाता था, लेकिन नमाज़ की क़ज़ा करने का हुक्म नहीं दिया जाता था। ❞

(सहीह बुख़ारी 763 | सुनन इब्न माजा 1670, 787)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ अगर किसी औरत का रोज़ा हायज़ (माहवारी) की वजह से छूट जाए, तो उसे बाद में उसकी क़ज़ा करनी होगी।

✅ नमाज़ की क़ज़ा करने का हुक्म नहीं दिया गया, क्योंकि नमाज़ दिन में कई बार होती है, और उसकी क़ज़ा देना मुश्किल होता।

✅ इस्लाम हमें आसान और मुनासिब हुक्म सिखाता है, ताकि अमल में कोई मुश्किल न हो।

16. रमज़ान का आख़िरी अशरा – (Ramzan Ka Akhri Ashra Ki Fazilat)

हज़रत आयशा (र.अ) बयान करती हैं:

❝ नबी ﷺ रमज़ान के आख़िरी 10 दिनों में इतनी मेहनत (इबादत) करते थे, जितनी आम दिनों में नहीं करते थे। ❞

(सहीह मुस्लिम 2788)

आख़िरी अशरे की फज़ीलत और अहम् अमल

✅ इबादत में इज़ाफ़ा: इस अशरे में नबी ﷺ ने इबादत, तिलावत और ज़िक्र को बढ़ा दिया था।

✅ एतकाफ़: नबी ﷺ आख़िरी 10 दिनों में मस्जिद में एतकाफ़ करते थे, ताकि खुद को अल्लाह की इबादत में पूरी तरह मशगूल कर सकें।

✅ शब-ए-क़द्र की तलाश: इसी अशरे में शब-ए-क़द्र (लैलतुल-क़द्र) आती है, जो हज़ार महीनों से बेहतर है।

✅ गुनाहों की माफी: यह अशरा जहन्नम से निजात (मुक्ति) का है, इसलिए ज़्यादा से ज़्यादा दुआ और तौबा करनी चाहिए।

17. रोज़े की हालत में भूलकर खा लेना – (Roze Ki Halat Me Bhul Chuk Me Kha Lena)

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ जब कोई रोज़ेदार भूलकर कुछ खा ले या पी ले, तो उसे चाहिए कि अपना रोज़ा पूरा करे, क्योंकि उसे अल्लाह तआला ने खिलाया और पिलाया। ❞

(सहीह बुखारी 1933)

इस हदीस से क्या सबक मिलता है?

✅ भूलकर खाने से रोज़ा नहीं टूटता: अगर कोई शख्स रोज़े की हालत में भुलक्कड़पन में कुछ खा-पी ले, तो उसका रोज़ा सही रहेगा।

✅ रोज़ा जारी रखना: अगर किसी को याद आ जाए कि वह रोज़े से था, तो उसे तुरंत खाना-पीना छोड़ देना चाहिए और अपना रोज़ा पूरा करना चाहिए।

✅ अल्लाह की रहमत: यह अल्लाह की मेहरबानी है कि अगर कोई ग़लती से खा-पी ले, तो उस पर कोई पकड़ नहीं होती।

18. रोज़े का सवाब अल्लाह क़यामत के दिन देगा – (Roze Ka Sawab Allah Qayamat Ke Din Dega)

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ अल्लाह तआला फरमाते हैं कि रोज़ा मेरे लिए है और मैं ही उसका बदला दूँगा। ❞

(सहीह बुखारी 5927, मुस्नद अहमद 14699)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ रोज़े की खास अहमियत: अल्लाह ने रोज़े को अपने लिए खास किया और इसका सवाब खुद देने का वादा किया।

✅ रोज़े की अनोखी फज़ीलत: यह एक इबादत है जिसमें इंसान सिर्फ अल्लाह के लिए अपनी ख्वाहिशात को छोड़ देता है।

✅ सबसे बड़ा इनाम: रोज़ा रखने वालों को क़यामत के दिन अल्लाह खुद अपने ख़ज़ाने से सवाब देगा, जो किसी भी दूसरे अमल से ज़्यादा होगा।

19. सहेरी अच्छे से खाना चाहिए – (Sheri Achee Se Khana Chahiye)

नबी ﷺ ने फरमाया:

❝ सेहरी खाओ क्योंकि सेहरी में बरकत होती है। ❞

(सहीह बुखारी 1923)

इस हदीस से क्या सीख मिलती है?

✅ सेहरी की अहमियत: यह सिर्फ खाना नहीं, बल्कि एक इबादत है जिसमें अल्लाह ने बरकत रखी है।

✅ सेहरी छोड़ना नहीं चाहिए: कुछ लोग सुस्ती या देर से उठने की वजह से सेहरी नहीं खाते, लेकिन नबी ﷺ ने इसे खाने की तागीद (ज़ोर) दी है।

✅ सेहरी में आसानी और रहमत: सेहरी खाने से रोज़े के दौरान ताकत बनी रहती है, और यह अल्लाह की दी हुई नेमतों में से एक है।

20. शाबान के महीने की फज़ीलत – (Shaban Ke Mahine Ki Fazilat)

हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा बयान करती हैं:

❝ मैंने रमज़ान को छोड़कर नबी ﷺ को किसी भी महीने के पूरे नफ़िल रोज़े रखते हुए नहीं देखा, और मैंने यह भी नहीं देखा कि आप किसी महीने में शाबान से ज़्यादा रोज़े रखते हों। आप फ़रमाते थे कि यह वह महीना है जिसमें आमाल (अच्छे-बुरे काम) अल्लाह की तरफ़ पेश किए जाते हैं, तो मैं चाहता हूँ कि जब मेरे आमाल पेश किए जाएँ तो मैं रोज़े की हालत में रहूँ। ❞

(सहीह बुखारी 1969, सहीह मुस्लिम 2726, सुनन नसाई 2356, 2352, सुनन इब्न माजा 1651)

शाबान के महीने में क्या करना चाहिए?

✅ शाबान में सबसे ज्यादा रोज़े रखना: नबी ﷺ रमज़ान के बाद सबसे ज़्यादा रोज़े शाबान के महीने में रखते थे।

✅ 15 तारीख तक रोज़े रखने की इजाज़त: नबी ﷺ ने उम्मत को 15 शाबान तक ही रोज़े रखने का हुक्म दिया, ताकि रमज़ान के रोज़ों के लिए ताकत बची रहे।

✅ अल्लाह के सामने आमाल पेश किए जाते हैं: इस महीने में आमाल अल्लाह के सामने पेश किए जाते हैं, इसलिए नबी ﷺ रोज़े से रहना पसंद करते थे।

✅ दीन में सख्ती नहीं: नबी ﷺ ने बताया कि दीन में ज़रूरत से ज़्यादा सख्ती नहीं करनी चाहिए, इसलिए पूरे महीने रोज़े रखना ज़रूरी नहीं है।

21. आशूरा का रोज़ा कब रखना चाहिए? – (Ashura Ka Roza Kab Rakhna Hai?)

नबी ﷺ ने फ़रमाया:

❝ आशूरा (10 मुहर्रम) का रोज़ा पिछले साल के गुनाहों का कफ्फ़ारा (मिटाने वाला) है। ❞

(सहीह मुस्लिम 2747, जामिअ तिर्मिज़ी 752, सहीह मुस्लिम 2755)

जब नबी ﷺ से पूछा गया कि यहूदी और ईसाई भी 10 तारीख़ को रोज़ा रखते हैं, तो आप ﷺ ने फ़रमाया:

❝ इंशा अल्लाह, अगले साल हम 9 तारीख़ का भी रोज़ा रखेंगे। ❞ लेकिन अगले साल आने से पहले ही आप ﷺ इस दुनिया से रुख़सत हो गए।

(सहीह मुस्लिम 2666)

10 मुहर्रम को रोज़ा रखने की फज़ीलत:

✅ इसलिए 9 और 10 मुहर्रम दोनों का रोज़ा रखना सुन्नत है।

✅ कुछ उलमा के मुताबिक़, 10 और 11 मुहर्रम का रोज़ा भी रखा जा सकता है।

✅ गुज़रे हुए साल के गुनाह माफ़ होते हैं।

✅ रमज़ान के बाद सबसे अफ़ज़ल (बेहतर) रोज़ा यही है।

✅ यह एक बहुत बड़ा नेकी का अमल है।

22. अल्लाह की राह में रोज़ा रखना – (Allah Ki Rah Me Roza Rakhna)

नबी ﷺ ने फ़रमाया:

❝ जो शख़्स अल्लाह की राह में एक दिन रोज़ा रखता है, अल्लाह तआला उसके चेहरे को जहन्नम (दोज़ख़) से 70 साल की दूरी तक दूर कर देता है। ❞

(सहीह मुस्लिम 2713, 1153)

अल्लाह की राह में रोज़ा रखने की फज़ीलत:

✅ जहन्नम से बचाव का ज़रिया है।

✅ यह रोज़ा रखने वाले को अल्लाह के क़रीब कर देता है।

✅ शैतान से बचने का बेहतरीन तरीका है।

✅ इसका अज्र (सवाब) बहुत बड़ा है, जिसे अल्लाह ही अता करेगा।

23. 2 दिन के रोज़ ऐसे हैं जिनसे मना फ़रमाया गया है – (Do Din Ke Roze Jinse Mana Farmaya Gaya Hai)

नबी ﷺ ने फ़रमाया:

❝ दो दिन के रोज़े रखने से मना किया गया है: एक ईद-उल-फ़ित्र और दूसरा ईद-उल-अज़हा। ❞

(सहीह मुस्लिम 2676)

ईद के दिन रोज़ा रखना क्यों मना है?

✅ ईद के दिन अल्लाह की दी हुई नेमतों का शुक्र अदा करने का दिन होता है।

✅ ईद-उल-फ़ित्र के दिन अल्लाह ने खाने-पीने की इजाज़त दी है, इसलिए इस दिन रोज़ा रखना मना है।

✅ ईद-उल-अज़हा के दिन क़ुर्बानी की जाती है, जो कि हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की सुन्नत है, इसलिए इस दिन भी रोज़ा नहीं रखा जाता।

इससे हमें क्या सीख मिलती है?

➖ इस्लाम में कोई सख़्ती नहीं है, बल्कि यह एक रहमत भरा दीन है।

➖ ईद के दिन खुशी मनाने और अल्लाह की दी हुई नेमतों का लुत्फ़ उठाने का हुक्म दिया गया है।

➖ हमें अल्लाह की बनाई हुई हदों (सीमाओं) का एहतराम करना चाहिए।

24. रोज़ा इफ्तार में क्या खाना चाहिए? – (Roza Iftar Me Kya Khana Chahiye)

नबी ﷺ ने फ़रमाया:

❝ जब तुम में से कोई रोज़ा इफ्तार करे तो खजूर से इफ्तार करे, क्योंकि यह बरकत वाली चीज़ है। और अगर खजूर न मिले तो पानी से इफ्तार करे, क्योंकि पानी पाक करने वाला है। ❞

(सुनन इब्न माजा 1699)

इफ्तार में खजूर और पानी क्यों पसंद किया गया?

✅ खजूर खाने से फौरन एनर्जी मिलती है और यह सेहत के लिए भी फायदेमंद है।

✅ खजूर पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ की पसंदीदा चीज़ों में से एक है।

✅ अगर खजूर न मिले तो पानी से इफ्तार करना चाहिए, क्योंकि पानी सबसे ज्यादा पाक (पवित्र) और ताजगी देने वाला होता है।

रमज़ान में इफ्तार के सही तरीके

✔ इफ्तार में जल्दबाजी करें और देर न करें।

✔ पहले खजूर या पानी से रोज़ा खोलें, फिर हल्का खाना खाएं।

✔ ज्यादा तली-भुनी और भारी चीजें खाने से बचें।

✔ इफ्तार के वक्त दुआ करें, क्योंकि यह कबूल होने का वक्त होता है।

25. इफ्तार के वक्त रोज़ेदार की दुआ रद नहीं होती – (Iftaar Ke Waqt Rozedaar Ki Dua Rad Nahi Hoti)

नबी ﷺ ने फ़रमाया:

❝ इफ्तार के वक्त रोज़ेदार की दुआ रद नहीं होती ❞

(Sunan Ibn Majah 1753)

हमें क्या करना चाहिए?

✅ इफ्तार के समय अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए।

✅ अपनी और अपने घरवालों की बेहतरी के लिए दुआ करनी चाहिए।

✅ दुआ करते समय अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिए, क्योंकि वही दुआ को कबूल करने वाला है।

✅ मोमिनों को चाहिए कि इफ्तार के वक्त खास दुआ किया करें, क्योंकि यह वक्त दुआ के क़बूल होने का है।

26. क्या कोई रोज़ा रखने की दुआ साबित है?

❌ नहीं

क्योंकि सही हदीस और क़ुरआन की रौशनी में रोज़ा रखने की कोई दुआ साबित नहीं है, जैसा कि आप मेरे इस आर्टिकल में जाकर देख सकते हैं। जो दुआ प्रचलित है, वह सही नहीं है।

Roza Rakhne Ki Niyat – Roza Rakhne Ki Dua

27. क्या रोज़ा खोलने की कोई दुआ साबित है?

✅ हाँ

रोज़ा खोलने की दुआ सही हदीस से साबित है, जैसा कि आप इस आर्टिकल में देख सकते हैं।

Also Read: Roza Kholne Ki Dua : रोजा खोलने की दुआ

Conclusion

Roza Rakhne Ka Sahi Tarika – इस्लामिक नियम और सुन्नत के अनुसार
1फज्र से पहले रोज़े की नीयत करना ज़रूरी है – नीयत दिल से करनी होती है, ज़ुबान से कहना जरूरी नहीं।
2सहेरी अच्छे से खाना चाहिए – सेहरी में बरकत होती है
3दिखावे का रोज़ा शिर्क है – रोज़ा और सिर्फ़ अल्लाह के लिए रखें।
4रोज़े की हालत में क्या नहीं करना चाहिए? – झूठ, धोखा, ग़ीबत और फुज़ूल बातें करने से रोज़े का मक़सद ख़राब हो जाता है। रोज़ा रखते हुए हमें अपने अख़लाक़ (चरित्र) को बेहतर बनाना चाहिए

5इफ्तार करने में जल्दी करो – यहूदी और दूसरे ग़ैर-मुस्लिम इफ्तार करने में देर करते हैं, जबकि हमें उनकी मुखालफ़त करते हुए जल्दी इफ्तार करना चाहिए।
6यात्रा (सफ़र) में रोज़ा रखना – अगर सफर में रोज़ा रखना मुश्किल हो, तो इसे बाद में पूरा किया जा सकता है।
7क्या कोई रोज़ा रखने की दुआ साबित है? – ❌ नहीं
8क्या रोज़ा खोलने की कोई दुआ साबित है? – ✅ हाँ
9फ़र्ज़ रोज़ा क़ज़ा करने का हुक्म – अगर किसी औरत का रोज़ा हायज़ (माहवारी) की वजह से छूट जाए, तो उसे बाद में उसकी क़ज़ा करनी होगी।
Roza Rakhne Ka Sahi Tarika

अल्लाह का मक़सद:

✅ अल्लाह हमे इतना बड़ा अज्र इसलिए देना चाहता है ताकि हम हिदायत पर आ जाएं और सच्चे मोमिन बन जाएं।

✅ जो अल्लाह की राह में रोज़ा रखता है, वह शैतान से दूर हो जाता है और अल्लाह की रहमत में आ जाता है।

✅ हमें चाहिए कि अल्लाह की राह में रोज़ा रखें और उसकी रज़ा (ख़ुशी) को हासिल करें।

✅ रोज़ा सिर्फ़ भूखा-प्यासा रहने का नाम नहीं, बल्कि अल्लाह की इबादत, सब्र, और तक़्वा का इम्तिहान है। हमें रोज़े की सुन्नत, फराइज़, और मकरूहात का ध्यान रखना चाहिए ताकि रोज़ा क़बूल (मंज़ूर) हो सके।

✅ इस आर्टिकल में रोज़ा रखने का सही तरीका, सुन्नत, आम गलतियाँ, और इस्लामिक नियम को कवर किया गया है। अगर आपको यह जानकारी फायदेमंद लगी तो इसे दूसरों तक ज़रूर पहुँचाएँ!

अल्लाह हमें सही तरीके से रोज़े रखने की तौफ़ीक़ दे! आमीन!

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