बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
सीरत-उन-नबी (भाग 4): वही की शुरुआत और अल्लाह का हुक्म
पिछले भाग (Seerat Un Nabi In Hindi – Part 3) में हमने शादी और नबूवत मिलने तक का सफर के बारे में जाना। अब हम इस लेख में वही (ईश्वरीय संदेश) की शुरुआत और नबी बनने की घटना पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
अगर आपने भाग 3 (शादी और नबूवत मिलने तक का सफर) नहीं पढ़ा है, तो पहले उसे जरूर पढ़ें:
➡️ सीरत-उन-नबी (भाग 3): शादी और नबूवत मिलने तक का सफर
नबूवत मिलने तक की यात्रा
1. ग़ारे हिरा में तन्हाई और इबादत
रसूलुल्लाह ﷺ का स्वभाव बचपन से ही गहरी सोच-विचार करने वाला था। जब आप ﷺ मक्का की ग़लत रस्मों और शिर्क (मूर्तिपूजा) को देखते, तो परेशान हो जाते।
अक्सर तन्हाई में सोचते:
“ये चाँद-सितारे, ये ज़मीन-आसमान, इंसान और सारी मख़लूक़त (सृष्टि) क्यों बनी? इनका कोई मालिक होना चाहिए।”
“हमारा इस दुनिया में आने का असल मक़सद क्या है?”
इसी सोच के साथ आप ग़ारे हिरा में इबादत करने लगे।
ग़ारे हिरा, मक्का के पास जबल-ए-नूर नामक पहाड़ पर स्थित एक छोटी गुफा थी।
यहाँ आप ﷺ कई-कई दिनों तक रहकर तन्हाई में अल्लाह की याद में मग्न रहते थे।
खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा आपके लिए खाना-पानी पहुँचाया करती थीं।
(अल-बिदाया वान-निहाया, इब्न कसीर, खंड 2, पृष्ठ 295)
2. पहली वही का नाज़िल होना
जब नबी ﷺ 40 साल के हुए, तो रमज़ान की एक रात ग़ार-ए-हिरा में जिब्रील (अ.) आए और कहा:
“इक़रा” (पढ़िए!)
नबी ﷺ ने जवाब दिया: “मैं पढ़ा हुआ नहीं हूँ।”
जिब्रील अलैहिस्सलाम ने फिर दोबारा कहा: “इक़रा” और आपको ज़ोर से दबोचा।
यह सिलसिला तीन बार हुआ।
फिर जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कहा, “मेरे साथ दोहराओ और याद रखो।”
फिर जिब्रील अलैहिस्सलाम ने अल्लाह का पहला संदेश सुनाया:
“पढ़ो अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया।
जिसने इंसान को जमे हुए ख़ून (अलक़) से पैदा किया।
पढ़ो, और तुम्हारा रब बड़ा करम वाला है।
जिसने क़लम के ज़रिए (इल्म) सिखाया।
इंसान को वो सिखाया जो वह नहीं जानता था।”
(सूरह अल-अलक़ 96:1-5)
(सहीह बुख़ारी 3, हदीस 4953)
2. नबी ﷺ की हालत और घबराहट
पहली वही के बाद नबी ﷺ घबरा गए और तुरंत घर लौटे।
उन्होंने खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से कहा:
“मुझे चादर उढ़ा दो, मुझे चादर उढ़ा दो!”
जब घबराहट थोड़ी कम हुई, तो आपने खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को पूरा वाक़िया सुनाया।
(सहीह बुख़ारी 3, हदीस 4953)
3. खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा का तसल्ली देना
खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने आपको दिलासा देते हुए कहा:
“अल्लाह की कसम! अल्लाह आपको कभी रुसवा नहीं करेगा।”
“आप हमेशा सच बोलते हैं, रिश्तों को निभाते हैं, गरीबों की मदद करते हैं, और हर अच्छे काम में आगे रहते हैं।”
(सहीह बुख़ारी 3, हदीस 4953)
4. वरक़ा बिन नवफ़ल के पास जाना
खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा आपको अपने चाचा वरक़ा बिन नवफ़ल के पास लेकर गईं।
वरक़ा एक बुजुर्ग थे, जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था और तौरात व इंजील के विद्वान थे।
जब उन्होंने पूरी बात सुनी, तो कहा:
“यह तो वही फ़रिश्ता है, जो मूसा अलैहिस्सलाम पर आया करता था।”
“काश! मैं उस समय ज़िंदा रहूँ, जब आपकी क़ौम आपको मक्का से निकाल देगी।”
नबी ﷺ ने हैरानी से पूछा: “क्या वे मुझे मक्का से निकाल देंगे?”
वरक़ा ने जवाब दिया: “हाँ, क्योंकि जब भी कोई नबी आता है, तो उसकी क़ौम उससे दुश्मनी करने लगती है।”
(सहीह बुख़ारी 3, हदीस 4953)
5. कुछ समय के लिए वही का बंद होना
पहली वही आने के बाद कुछ समय तक कोई नई वही नहीं आई।
इस दौर को “फ़तरतुल वही” (यानी वही का ठहराव) कहा जाता है।
इसका मक़सद यह था कि नबी ﷺ पहले वाली वही को गहराई से समझ लें और अगली वही के लिए तैयार हो जाएँ।
6. दूसरी वही का आना और नबूवत का हुक्म
कुछ दिनों बाद, जब नबी ﷺ एक बार फिर जबल-ए-नूर के पास गए, तो वही का सिलसिला दोबारा शुरू हुआ।
फिर जिब्रील अलैहिस्सलाम ने नबी ﷺ को आवाज़ लगाई।
नबी ﷺ ने दाएँ देखा तो कोई नहीं था, बाएँ देखा तो कोई नहीं था, आगे देखा तो कोई नहीं था, पीछे देखा तो कोई नहीं था। फिर जब आसमान की तरफ़ देखा, तो वही फ़रिश्ता जिब्रील अलैहिस्सलाम आसमान और ज़मीन के बीच बैठे नज़र आए।
आप ﷺ डर से फिर घर लौटे और खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से चादर उढ़ाने की फ़रमाइश की।
अल्लाह का नया हुक्म आया
फिर जिब्रील अलैहिस्सलाम ने अल्लाह का नया हुक्म सुनाया:
“ऐ कंबल ओढ़ने वाले!”
“उठो और लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाओ।”
“अपने रब की बड़ाई बयान करो।”
“अपने कपड़े पाक रखो।”
“बुरी बातों से दूर रहो।”
(सूरतुल-मुद्दस्सिर 74:1-5)
(सहीह बुख़ारी 4954)
7. छुपकर दावत का सिलसिला शुरू हुआ
अब आप ﷺ ने धीरे-धीरे अपने करीबियों को इस्लाम की दावत देनी शुरू की।
जो लोग मानते, वे छुपकर इबादत करते।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं:
“फिर वही का सिलसिला लगातार चलता रहा, और नबी ﷺ ने सबसे पहले अपने परिवार और करीबी दोस्तों को इस्लाम की दावत दी। इस्लाम को अपनाने वाले सबसे पहले लोग ये थे:”
1. हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा – पहली मुस्लिम जिन्होंने बिना किसी झिझक के इस्लाम स्वीकार किया।
2. हज़रत अली बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु – पहले लड़के जिन्होंने इस्लाम कबूल किया।
3. हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु – पहले पुरुष जिन्होंने इस्लाम स्वीकार किया और नबी ﷺ के सबसे करीबी साथी बने।
4. हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु – पहले गुलाम जिन्होंने इस्लाम अपनाया।
(सहीह बुख़ारी हदीस 4957)
निष्कर्ष
इस भाग में हमने देखा कि वही का पहला अनुभव नबी ﷺ के लिए कितना कठिन था।
खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने नबी ﷺ को दिलासा दिया और वरक़ा बिन नवफ़ल ने भविष्यवाणी की कि आपकी क़ौम आपको मक्का से निकाल देगी।
पहली वही के बाद कुछ समय तक वही का सिलसिला बंद रहा, और फिर दूसरी वही आई जिसमें दावत का हुक्म दिया गया।
अब नबी ﷺ ने छुपकर लोगों को इस्लाम की दावत देना शुरू कर दिया।
अगला भाग:
Seerat Un Nabi In Hindi – Part 5 में हम जानेंगे कि नबी ﷺ ने किस तरह इस्लाम की तालीम देना शुरू किया और मक्का में क्या हालात बने।
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