बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही

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शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।

सीरत-उन-नबी (भाग 3): अरब के हालात और नबी की तिजारत (व्यापार)

इस्लाम के आखिरी नबी हज़रत मुहम्मद ﷺ की सीरत (जीवनगाथा) सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए रहमत और रहनुमाई का जरिया है। उनके अख़्लाक़ (चरित्र), ईमानदारी और सब्र से हर इंसान सीख सकता है।

और (ऐ नबी!) हमने आपको पूरी दुनिया के लिए रहमत (दयालुता) बनाकर भेजा है।”

(21:107)

“उनका चरित्र (अख़्लाक़) क़ुरआन ही था।”

(मुसनद अहमद: 24601)

पिछले भागों में हमने नबी करीम ﷺ के विलादत (जन्म), बचपन और जवानी (युवावस्था) के शुरुआती दौर पर चर्चा की थी। अब हम उनके शादीशुदा ज़िंदगी और नबूवत मिलने तक के सफर को विस्तार से समझेंगे।

अगर आपने भाग 2 (नबी ﷺ की पैदाइश और उनकी परवरिश) नहीं पढ़ा है, तो पहले उसे जरूर पढ़ें:

➡️ सीरत-उन-नबी (भाग 2): नबी ﷺ की पैदाइश और उनकी परवरिश

पैगंबर मुहम्मद ﷺ का युवा जीवन और ईमानदारी

1. ईमानदारी और सच्चाई की पहचान

पैगंबर मुहम्मद ﷺ को बचपन से ही अमीन (अत्यंत भरोसेमंद) और सादिक़ (सत्यवादी) कहा जाता था। उनका अख़्लाक़ इतना बेहतरीन था कि हर कोई उनकी सचाई और अच्छाई का कायल था।

लोग आपको “अस-सादिक” (सच्चे) और “अल-अमीन” (अमानतदार) के नाम से पुकारते थे।

आपने कभी झूठ नहीं बोला और कभी किसी का हक़ नहीं मारा।

(सहीह बुखारी, हदीस 7, जिल्द 1)

2. व्यापारिक सफर

हज़रत मुहम्मद ﷺ का परिवार एक इज्ज़तदार क़ुरैशी खानदान से था, लेकिन ज्यादा अमीर नहीं था। जब वे छोटे थे, तो उनके पिता अब्दुल्लाह का देहांत हो गया, और फिर उनके दादा अब्दुल मुत्तलिब और चाचा अबू तालिब ने उनकी परवरिश की।

चूँकि अबू तालिब ज्यादा अमीर नहीं थे, इसलिए हज़रत मुहम्मद ﷺ ने छोटी उम्र में ही तिजारत (व्यापार) शुरू किया।

(A) सबसे पहला सफर:

जब वे 12 साल के थे, तो उनके चाचा अबू तालिब के साथ शाम (सीरिया) के सफर पर गए।

इसी सफर में ईसाई पादरी बहीरा ने उन्हें देखा और कहा:

“यह बच्चा कोई आम इंसान नहीं, बल्कि यह उम्मत का आखिरी नबी बनेगा।”

(सीरत इब्न हिशाम, खंड 1, पृष्ठ 189)

इस सफर में भी कई मौजिज़े हुए, जैसे कि:

बादल का साया

पेड़ का झुक जाना

लेकिन अबू तालिब ने यह सुनकर हज़रत मुहम्मद ﷺ को वापस भेज दिया, ताकि यहूदियों को पता न चले और वे कोई नुकसान न पहुँचाएँ।

(B) हज़रत मुहम्मद ﷺ का ईमानदार व्यापार

बड़े होने के बाद, हज़रत मुहम्मद ﷺ ने खुद व्यापार शुरू किया। वे हमेशा:

✅ ईमानदारी से काम करते।

✅ सूद (ब्याज) से बचते।

✅ धोखाधड़ी और झूठ से दूर रहते।

✅ इंसाफ़ और हलाल कमाई पर जोर देते।

इसलिए मक्का के लोग उन्हें “अल-अमीन” (भरोसेमंद) और “अस-सादिक़” (सत्यवादी) कहने लगे।

(C) हज़रत खदीजा (र.अ.) के साथ तिजारत

मक्का की सबसे बड़ी व्यापारी महिला हज़रत खदीजा (र.अ.) थी। उनके पास बहुत बड़ा कारोबार था, लेकिन वे खुद सफर नहीं कर सकती थीं। इसलिए वे हमेशा ईमानदार लोगों को अपना माल सौंपती थीं।

जब उन्होंने हज़रत मुहम्मद ﷺ की ईमानदारी सुनी, तो उन्होंने अपना व्यापार उनके हवाले किया और कहा:

“अगर आप मेरा सामान شام (सीरिया) ले जाएँगे, तो मैं आपको दोगुना मुनाफ़ा दूँगी।”

हज़रत मुहम्मद ﷺ ने यह जिम्मेदारी स्वीकार की।

(अल-बिदाया वान-निहाया, इब्न कसीर, खंड 2, पृष्ठ 272)

अब इस सफर में कई मौजिज़े (चमत्कार) हुए:

1. पत्थर का सलाम करना

जब हज़रत मुहम्मद ﷺ सफर में थे, तो मयसराह (हज़रत खदीजा के नौकर) ने देखा कि

रास्ते में पत्थर उनके पास से गुजरते हुए सलाम करता था।

“अस-सलामु अलैकुम या रसूलुल्लाह!” (हे अल्लाह के रसूल, आप पर सलाम हो)।

मयसराह यह देखकर हैरान हो गए।

(अल-बिदाया वान-निहाया, इब्न कसीर, खंड 2, पृष्ठ 272)

“मक्का में एक पत्थर था, जो मुझे नबूवत से पहले सलाम किया करता था।”

(सहीह मुस्लिम: 2277)

2. दो फरिश्तों का बादल से छाया करना

जब हज़रत मुहम्मद ﷺ दोपहर में सफर कर रहे थे, तो सूरज बहुत तेज़ था।

मयसराह ने देखा कि एक बादल हर वक्त उनके ऊपर साया किए हुए था।

यह बादल सूरज की गर्मी से उन्हें बचाता था।

यह कोई आम बात नहीं थी, बल्कि अल्लाह की तरफ से एक निशानी थी।

(अल-बिदाया वान-निहाया, इब्न कसीर, खंड 2, पृष्ठ 272)

3. पेड़ का झुक जाना

जब कारवां बुसरा (शाम का इलाका) पहुँचा, तो हज़रत मुहम्मद ﷺ एक सूखे पेड़ के नीचे आराम करने लगे।

उस समय वहाँ एक ईसाई राहिब (पादरी) बैठा था।

जब उसने देखा कि यह पेड़ खुद झुक गया ताकि नबी ﷺ को छाया मिले, तो उसने मयसराह से पूछा:

“यह आदमी कौन है?”

मयसराह ने बताया कि वे मक्का से आए हैं और हज़रत खदीजा (र.अ.) के लिए व्यापार कर रहे हैं।

राहिब ने कहा:

“यह पेड़ सिर्फ़ नबियों के लिए झुकता है।”

(सीरत इब्न हिशाम, खंड 1, पृष्ठ 189)

4. मक्का लौटने के बाद का वाकया

शाम (सीरिया) में हज़रत मुहम्मद ﷺ ने बहुत शानदार व्यापार किया और जब वे लौटे तो दोगुना मुनाफ़ा लेकर आए।

मयसराह ने हज़रत खदीजा (र.अ.) को पूरी कहानी सुनाई

पत्थरों का सलाम करना

बादल का छाया करना

राहिब की गवाही

इससे हज़रत खदीजा (र.अ.) बहुत प्रभावित हुईं और बाद में उन्होंने निकाह का प्रस्ताव भेजा।

(अल-बिदाया वान-निहाया, इब्न कसीर, खंड 2, पृष्ठ 272)

पैगंबर मुहम्मद ﷺ और हज़रत खदीजा (र.अ.) की शादी

1. हज़रत खदीजा (र.अ.) का प्रस्ताव

हज़रत खदीजा (र.अ.) मक्का की सबसे प्रतिष्ठित, बुद्धिमान और अमीर महिला थीं। वे अपने व्यापार में ईमानदार और नेक लोगों को काम पर लगाती थीं। जब उन्होंने हज़रत मुहम्मद ﷺ की सदाक़त (सच्चाई), अमानतदारी (भरोसेमंद स्वभाव) और अख़्लाक़ (उत्तम चरित्र) को देखा, तो वे बहुत प्रभावित हुईं।

हज़रत खदीजा (र.अ.) ने अपनी दोस्त हज़रत नफीसा बिन्त मुनय्या के जरिए नबी ﷺ तक निकाह का पैग़ाम भेजा।

हदीस में आता है:

“हज़रत नफीसा (र.अ.) ने नबी ﷺ से कहा: ‘ऐ मुहम्मद, आप शादी क्यों नहीं कर लेते?’

नबी ﷺ ने जवाब दिया: ‘मेरे पास शादी के लिए कुछ नहीं है।’

नफीसा ने कहा: ‘अगर आपकी चिंता बस यही है, तो हज़रत खदीजा (र.अ.) अमीर हैं और आपको पसंद करती हैं।’

नबी ﷺ ने कहा: ‘अगर वे राज़ी हैं, तो मुझे भी कोई आपत्ति नहीं।’”

(सीरत इब्न हिशाम, खंड 1, पृष्ठ 201)

नबी ﷺ ने इस प्रस्ताव पर अपने चाचा अबू तालिब से मशवरा किया।

अबू तालिब ने इस रिश्ते को इज्ज़त और बरकत का जरिया समझा और इसे मंजूर कर लिया।

फिर हज़रत खदीजा (र.अ.) के चाचा अम्र इब्न असद की मौजूदगी में निकाह पढ़ाया गया।

(अल-बिदाया वान-निहाया, इब्न कसीर, खंड 2, पृष्ठ 293)

2. निकाह और पारिवारिक जीवन

मह्र 500 दिरहम चांदी (आज के हिसाब से लगभग 1.5 लाख रुपये)।

गवाह: अबू तालिब, वरक़ा बिन नवफ़ल और मक्का के कई सम्मानित लोग।

उम्र:

हज़रत मुहम्मद ﷺ: 25 साल

हज़रत खदीजा (र.अ.): 40 साल

निकाह के बाद हज़रत खदीजा (र.अ.) ने अपनी पूरी दौलत नबी ﷺ को सौंप दी और कहा:

“या रसूलुल्लाह, अब यह सब आपका है, इसे अल्लाह के रास्ते में खर्च कीजिए।”

(सीरत इब्न कसीर, खंड 1, पृष्ठ 264)

(A) हज़रत खदीजा (र.अ.) की संतानें और उनकी ज़िंदगी
1. पहले शौहर अबू हालह से औलादें हुईं:

हिंद बिन अबू हालह

हारिस बिन अबू हालह

अबू हालह का इंतकाल हो गया, जिसके बाद हज़रत खदीजा (र.अ.) ने दूसरा निकाह किया।

2. दूसरे शौहर अतीक बिन आयध से औलादें हुईं:

हिंद बिन्त अतीक

अतीक बिन आयध का भी इंतकाल हो गया, जिसके बाद हज़रत खदीजा (र.अ.) ने तीसरा निकाह किया।

3. तीसरे शौहर हज़रत मुहम्मद ﷺ से औलादें हुईं:

1. क़ासिम

2. ज़ैनब

3. रुक़य्या

4. उम्मे कुलसूम

5. फातिमा (र.अ.)

6. अब्दुल्लाह (जिसे तायब और ताहिर भी कहा जाता है)

इनमें से अधिकतर बच्चे बचपन में ही दुनिया से चले गए।

(अल-बिदाया वान-निहाया, इब्न कसीर, खंड 2, पृष्ठ 295)

काबे की पुनर्निर्माण घटना और नबी ﷺ की हिकमत

1. काबे का पुनर्निर्माण

जब नबी ﷺ 35 वर्ष के थे, तो काबे की इमारत कमजोर हो गई थी, और इसे दोबारा बनाने की जरूरत पड़ी। क़ुरैश ने इसे फिर से बनाने का फैसला किया और निर्माण कार्य शुरू कर दिया।

(A) हजर-ए-असवद रखने पर विवाद

जब निर्माण कार्य पूरा हुआ और हजर-ए-असवद (काला पत्थर) को उसकी जगह रखने की बारी आई, तो मक्का के चारों मुख्य कबीले आपस में झगड़ने लगे। हर कबीला चाहता था कि यह इज्ज़त उन्हें मिले। मामला इतना बढ़ गया कि तलवारें तक खिंचने वाली थीं।

(B) नबी ﷺ का हिकमत भरा हल

तय किया गया कि जो भी सबसे पहले काबे के दरवाजे से आएगा, वही फैसला करेगा।

अल्लाह के हुक्म से नबी ﷺ सबसे पहले आए।

मक्का के लोगों ने कहा, “यह अल-अमीन (भरोसेमंद) हैं, हम इनका फैसला मानेंगे।”

नबी ﷺ ने एक चादर मंगवाई, उसमें हजर-ए-असवद को रखा और हर कबीले के सरदार को चादर का एक-एक किनारा पकड़ने को कहा।

जब सबने मिलकर पत्थर को उठाया, तो नबी ﷺ ने अपने हाथों से हजर-ए-असवद को उसकी जगह रख दिया।

इस तरह एक बड़े झगड़े को नबी ﷺ की हिकमत से हल कर दिया गया।

(सहीह अल-बुखारी, हदीस नंबर: 1509)

(इब्न कसीर, अल-बिदाया वान-निहाया (Al-Bidaya wa’l-Nihaya), खंड 2, पेज 293)

निष्कर्ष

नबी ﷺ का व्यापारिक जीवन उनकी ईमानदारी, सच्चाई और उच्च नैतिक मूल्यों का प्रमाण था। उनकी तिजारत में सच्चाई और भरोसेमंदी ने उन्हें “अल-अमीन” (अति विश्वासनीय) का खिताब दिलाया। इसी ईमानदार स्वभाव के कारण हज़रत खदीजा रज़ि. ने नबी ﷺ से निकाह किया। इस्लाम से पहले अरब के सामाजिक और आर्थिक हालात कठिन थे, लेकिन नबी ﷺ ने अपने चरित्र और आदर्शों से लोगों के दिलों में जगह बनाई। उनका व्यापारिक अनुभव और नैतिक मूल्यों ने आगे चलकर उनकी नबूवत की जिम्मेदारियों में भी अहम भूमिका निभाई।

अगले भाग में, वही की शुरुआत और अल्लाह का हुक्म पर चर्चा करेंगे।

अल्लाह हमें सीरत से सीखने और अमल करने की तौफीक़ दे। आमीन!

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