बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।

हक़ पर होने के बावजूद झगड़ा छोड़ने की फज़ीलत – Sunan Abu Dawood 4800 Ki Tafseer

जानिए हदीस Sunan Abu Dawood 4800 Ki Tafseer, जिसमें रसूलुल्लाह ﷺ ने हक़ पर होने के बावजूद झगड़ा छोड़ने की अहमियत बताई। कुरआन और हदीस की रोशनी में झगड़े से बचने और जन्नत में मकान पाने की फज़ीलत जानें।

Aaj Ki Hadees

Hadees In English

Me Us Shakhs Ko Jannat Ka Adna Darje Me Ek Gher Ki Zamanat Deta Hoon Jo Haq Per Hone Ke Bawjood Jhagda Chord De

Hadees In Hindi

में उस शक्श को जन्नत का अदना दर्जे में एक घर की जमानत देता हूं जो हक पर होने के बावजूद झगड़ा छोड़ दे।

(Sunan Abu Daud – 4800)

इस हदीस की तफसीर और सीख

1. हक पर होने के बावजूद झगड़ा क्यों छोड़ना चाहिए?

इस हदीस से हमें यह सबक मिलता है कि इंसान को सच्चाई पर होने के बावजूद बेकार की बहस और झगड़े से बचना चाहिए। अगर सामने वाला अपनी ज़िद पर अड़ा हुआ है और हक को मानने को तैयार नहीं है, तो बहस को खत्म करना ही बेहतर है।

कुरआन में भी फरमाया गया है:

और जब जाहिल (नासमझ) लोग उनसे (मुसलमानों से) बात करते हैं, तो वे सलाम (शांति) कहकर अलग हो जाते हैं।

(Surah Al-Furqan 25:63)

इस आयत का मतलब यह है कि जब कोई बहस करने पर अड़ जाए और उसका मकसद सिर्फ झगड़ा हो, तो हमें शांति से अलग हो जाना चाहिए।

2. जन्नत में मकान की जमानत का मतलब

नबी ए करीम ﷺ ने इस हदीस में फरमाया कि जो शख्स झगड़ा छोड़ देगा, उसे जन्नत में एक घर मिलेगा। इसका मतलब यह है कि अल्लाह तआला ऐसे लोगों के लिए जन्नत में खास इनाम रखेगा, क्योंकि वे तक़वा (परहेज़गारी – खुदा से डरने वाला व्यवहार) और अख़लाक़ (अच्छे व्यवहार) को अपनाते हैं।

एक दूसरी हदीस में आता है कि अच्छे अख़लाक वाले लोग जन्नत में रसूलुल्लाह ﷺ के सबसे करीब होंगे।

(Sunan Tirmidhi, Hadith 2018)

यानी जो इंसान गुस्से को रोकता है, सब्र से काम लेता है और झगड़े से बचता है, अल्लाह उसे जन्नत में ऊंचा मकाम (मर्तबा – दर्जा) देगा।

3. गुस्से और बहस से बचना क्यों जरूरी है?

बहस और झगड़ा इंसान के अंदर गुस्से को बढ़ाता है, जिससे गलत फैसले होते हैं और रिश्ते खराब होते हैं। इसलिए नबी (ﷺ) ने फरमाया:

गुस्सा मत करो।

(Sahih Bukhari, Hadith 6116)

गुस्सा करने से:

✅ दिल में नफरत बढ़ती है।

✅ रिश्तों में दरार आती है।

✅ सही सोचने-समझने की ताकत कम हो जाती है।

✅ दिल और दिमाग पर बुरा असर पड़ता है।

इसलिए नबी ﷺ ने हुक्म दिया कि अगर गुस्सा आए, तो:

✅ अगर खड़े हो तो बैठ जाओ।

✅ अगर बैठा हो तो लेट जाओ।

✅ गुस्सा दूर करने के लिए वुज़ू (अब्दस्त – पवित्रता) कर लो।

✅ “अउज़ु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम” पढ़ लो, यानी अल्लाह से शैतान से पनाह मांगो।

इस हदीस पर अमल कैसे करें?

✅ जब भी कोई बहस हो और सामने वाला ज़िद करे, तो लड़ाई छोड़ दें।

✅ अपने अहंकार (ego) को खत्म करें और धैर्य से काम लें।

✅ गुस्से को कंट्रोल करें और अच्छे अख़लाक से पेश आएं।

✅ माफ करने और झगड़ा टालने की आदत डालें।

एक सच्ची कहानी से सीख

हज़रत अली रज़ि. के पास एक बार एक आदमी आया और कहने लगा कि मैं बहस में हमेशा जीतना चाहता हूँ।

हज़रत अली ने फरमाया: “अगर तुम सही हो, फिर भी बहस छोड़ दो, क्योंकि सच्चा इंसान बहस से नहीं, बल्कि अच्छे अख़लाक़ से पहचाना जाता है।”

नतीजा (Conclusion)

इस हदीस से हमें सीख मिलती है कि सिर्फ सही होने से कुछ नहीं होता, बल्कि सही तरीके से पेश आना भी जरूरी है। हक पर होते हुए भी अगर झगड़ा हो रहा है, तो उसे छोड़ देना ही बेहतर है। ऐसा करने वाले के लिए जन्नत में एक घर की जमानत है, जो एक बहुत बड़ा इनाम है।

अल्लाह हमें अच्छे अख़लाक़ और झगड़े से बचने की तौफीक़ दे, आमीन!

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