शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
नबी ﷺ पर ईमान न लाने वालों का अंजाम – Surah Al Muzzammil 73 Ki Aayat 17 Or 19 Ki Tafseer
इस्लाम में ईमान (आस्था) का सबसे अहम हिस्सा यह है कि हम अल्लाह के भेजे हुए आखिरी नबी हज़रत मुहम्मद ﷺ पर पूरी तरह ईमान लाएँ और उनकी हर बात को मानें। कुरआन और हदीस में बार-बार इस बात को ज़ोर देकर बताया गया है कि जो लोग नबी ﷺ पर ईमान नहीं लाएँगे, उनका अंजाम बहुत ख़तरनाक होगा।
Surah Al Muzzammil 73 Ki Aayat 17 Or 19 Ki Tafseer में अल्लाह तआला ने उन लोगों को चेतावनी दी है जो नबी ﷺ पर ईमान लाने से इंकार करते हैं। आइए, इस आयत की तफ़सीर (विस्तार से समझ) करते हैं।
Aaj Ki Aayat
Hadees In English
Agar Tum Nabi Ko Nahi Manoge To Us Din Se Kaise Bachoge Jo Bacho Ko Budda Kar Dega Jis Din Aasman Fat Jayega Or Ye Wada Pura Ho Kar Rahega Beshak Ye To Nashihat Hai To Jo Shaks Chahe Apne Parvdigaar Ki Rah Akhtiyaar Kare
Hadees In Hindi
फिर अगर तुम नबी ﷺ को नहीं मानोगे, तो उस दिन से कैसे बचोगे जो बच्चों को बूढ़ा कर देगा? जिस दिन आसमान फट पड़ेगा, और अल्लाह का यह वादा पूरा होकर रहेगा। बेशक, यह (कुरआन) एक नसीहत है, तो जो चाहता है, वह अपने रब की राह अपना ले।”
(सूरह अल-मुज़म्मिल 73:17-19)
इन आयतों की तफ़सीर
1. क़यामत का ख़ौफ़नाक दिन
अल्लाह तआला इस आयत में क़यामत के दिन का एक बहुत ही डरावना मंज़र बयान कर रहे हैं। वह दिन इतना भयानक होगा कि छोटे-छोटे मासूम बच्चे तक डर के मारे बूढ़े हो जाएँगे। उस दिन आसमान फट पड़ेगा, ज़मीन हिल उठेगी, और हर चीज़ उलट-पलट हो जाएगी।
कुरआन में दूसरी जगह भी बताया गया है:
“जिस दिन आसमान तांबे की तरह और पहाड़ रंगी ऊन की तरह हो जाएँगे।”
(सूरह अल-मआरिज 70:8-9)
इससे मालूम होता है कि क़यामत का दिन इंसान के लिए बहुत ही कठिन होने वाला है।
2. सिर्फ़ अल्लाह को मानना काफ़ी नहीं – नबी ﷺ पर ईमान ज़रूरी है
आज बहुत से लोग मानते हैं कि अगर वे सिर्फ़ “एक ख़ुदा” को मान लें, तो उनकी आख़िरत संवर जाएगी। लेकिन कुरआन बार-बार यह कहता है कि जब तक इंसान अल्लाह के भेजे हुए आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद ﷺ को नहीं मानेगा, उसका ईमान अधूरा रहेगा।
जो रसूल की इताअत (आज्ञा पालन) करता है, उसने अल्लाह की इताअत की।
(सूरह अन-निसा 4:80)
जो लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान नहीं लाते, हमने उनके लिए भड़कती हुई आग तैयार कर रखी है।
(सूरह अल-फत्ह 48:13)
(A) ईसाई (ईसाई धर्म) और यहूदी (यहूदियत) का ग़लत दावा
➡ यहूदी मानते हैं कि वे सिर्फ़ मूसा (Moses) अलैहिस्सलाम को मानते हैं और ईसा (Jesus) और मुहम्मद ﷺ को नहीं मानते।
➡ ईसाई सिर्फ़ ईसा (Jesus) को अल्लाह का बेटा मानकर मुहम्मद ﷺ की नबूवत का इंकार करते हैं।
लेकिन कुरआन साफ़ कहता है कि अगर वे मुहम्मद ﷺ पर ईमान नहीं लाते, तो उनका ईमान भी अधूरा है।
और जिन्होंने कहा कि हम अल्लाह पर और उस चीज़ पर जो हमारी तरफ़ उतारी गई और जो पहले उतारी गई ईमान लाए, लेकिन वे रसूल को नहीं मानते, वे हक़ीक़त में काफ़िर हैं।
(सूरह अन-निसा 4:150-151)
3. इनकार करने वालों के लिए जहन्नम तय है
जो लोग नबी ﷺ की बात को नहीं मानेंगे, उनके लिए जहन्नम तैयार की गई है।
कुरआन में आता है:
“जो लोग हमारी आयतों को झुठलाते हैं, उन्हें हम आग में झोंक देंगे।”
(सूरह अन-निसा 4:56)
और जिसने हमारे नबी की मुख़ालिफ़त की, हमने उसके लिए सख़्त अज़ाब तैयार कर दिया है।
(सूरह अल-फत्ह 48:16)
यह आयत हमें बताती है कि जिन लोगों ने नबी ﷺ की नबूवत को नहीं माना – चाहे वह यहूदी, ईसाई, या दूसरे लोग हों – उनके लिए जहन्नम निश्चित है, जब तक वे ईमान नहीं लाते।
4. हिदायत उन्हीं के लिए है जो ईमान लाएँ
अल्लाह तआला ने आख़िर में यह भी कहा कि कुरआन एक नसीहत (समझाने वाली चीज़) है, और जो चाहे, वह अल्लाह का रास्ता अपना सकता है।
कुरआन में आता है:
“इसमें शक नहीं कि यह (कुरआन) परहेज़गारों के लिए हिदायत है।”
(सूरह अल-बक़रा 2:2)
मतलब, अगर कोई शख़्स हिदायत चाहता है और सच्चाई को अपनाना चाहता है, तो उसे अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की बात माननी होगी।
5. क्यों नबी ﷺ की बात मानना ज़रूरी है?
कुछ लोग कहते हैं कि “हम सिर्फ़ अल्लाह को मानते हैं, नबी को मानने की कोई ज़रूरत नहीं।” लेकिन यह सोच पूरी तरह ग़लत है। अगर किसी ने अल्लाह को माना लेकिन नबी ﷺ को न माना, तो वह भी गुमराह और काफ़िर कहलाएगा।
जो नबी की नाफरमानी करेगा, वह गुमराही में बहुत दूर चला जाएगा।
(सूरह अन-निसा 4:115)
जो नबी का इंकार करेगा, उसके लिए हमने जहन्नम तैयार की है।
(सूरह अल-अहज़ाब 33:64-66)
इन आयतों से हमें क्या सीख मिलती है?
✅ 1. सिर्फ़ अल्लाह को मानना काफ़ी नहीं, नबी ﷺ को भी पूरी तरह मानना होगा।
✅ 2. नबी ﷺ की हर बात को मानना ज़रूरी है, वरना इंसान क़यामत के दिन अल्लाह के अज़ाब से नहीं बच सकता।
✅ 3. यहूदी, ईसाई और दूसरे सभी लोगों को नबी ﷺ पर ईमान लाना अनिवार्य है।
✅ 4. क़यामत का दिन बहुत ही ख़तरनाक होगा, इसलिए हमें अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की बात मानकर अपनी आख़िरत को संवारना चाहिए।
जिसने इस्लाम के अलावा किसी और धर्म को अपनाया, वह हरगिज़ क़ुबूल नहीं किया जाएगा।
(सूरह आले-इमरान 3:85)
आख़िरी नसीहत
आज बहुत से लोग सिर्फ़ अल्लाह को मानते हैं लेकिन नबी ﷺ की बात को पूरी तरह नहीं मानते। कोई कहता है कि “हम सिर्फ़ कुरआन को मानते हैं,” और हदीस को छोड़ देते हैं, तो कोई नबी ﷺ की कुछ बातें मानकर कुछ को छोड़ देता है।
लेकिन अल्लाह तआला ने साफ़-साफ़ बता दिया कि अगर कोई रसूल ﷺ को नहीं मानेगा, तो क़यामत के दिन उसे अल्लाह के अज़ाब से बचाने वाला कोई नहीं होगा।
इसलिए हमें चाहिए कि हम पूरे दिल से नबी ﷺ की बात को मानें और उनके बताए रास्ते पर चलें।
इसमें शक नहीं कि यह (कुरआन) परहेज़गारों के लिए हिदायत है।
(सूरह अल-बक़रा 2:2)
अल्लाह हमें सही समझ और अमल की तौफ़ीक़ दे। आमीन!
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