बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
सीरत-उन-नबी (भाग 8): हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का इस्लाम क़बूल करना
इस्लाम के शुरुआती दौर में मुसलमान बहुत कमज़ोर और मजलूम थे। क़ुरैश के सरदार मुसलमानों पर तरह-तरह के ज़ुल्म ढा रहे थे। हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु के इस्लाम लाने के बाद उम्मत को थोड़ी हिम्मत मिली, लेकिन फिर भी छुपकर इबादत की जाती थी। ऐसे में हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु का इस्लाम लाना इस्लाम की ताक़त को कई गुना बढ़ा देने वाला वाक़िया साबित हुआ।
अगर आपने भाग 7 (हब्शा की पहली हिजरत) नहीं पढ़ा है, तो पहले उसे जरूर पढ़ें:
➡️ सीरत-उन-नबी ﷺ (भाग 7): हब्शा की पहली हिजरत
हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु कौन थे?
1. इस्लाम से पहले हज़रत उमर (रज़ि0) मक्का के सबसे ताक़तवर, बहादुर और असरदार लोगों में से थे।
2. उनका ख़ानदान क़ुरैश के मशहूर और इज़्ज़तदार घरानों में से था।
3. वो बुद्धिमान, साफ़गो और तेज़ फैसले लेने वाले इंसान माने जाते थे।
4. इस्लाम के कट्टर विरोधी थे और मुसलमानों को सख़्त नुक़सान पहुँचाने की नीयत रखते थे।
5. रसूलुल्लाह ﷺ ने अल्लाह से दुआ की थी
“ऐ अल्लाह! उमर बिन ख़त्ताब या अबू जहल — इनमें से किसी एक को इस्लाम की हिदायत दे दे।”
(तफ्सीर इब्न कसीर)
इस्लाम के ख़िलाफ़ उमर (रज़ि0) का ग़ुस्सा
हज़रत उमर (रज़ि0) इस्लाम के फैलने से इतने नाराज़ थे कि उन्होंने रसूलुल्लाह ﷺ को क़त्ल करने का इरादा कर लिया। एक दिन तलवार लेकर चल पड़े कि नबी ﷺ को मार डालें।
रास्ते में नुआयम बिन अब्दुल्लाह मिले। उन्होंने पूछा:
“उमर! कहाँ जा रहे हो?”
उमर बोले: “मुहम्मद (ﷺ) को ख़त्म करने!”नुआयम ने कहा:
“पहले अपने घर की ख़बर लो! तुम्हारी बहन फातिमा और बहनोई सईद बिन ज़ैद पहले ही मुसलमान हो चुके हैं।”यह सुनकर उमर (रज़ि0) आग बबूला हो गए और सीधे अपनी बहन के घर पहुँच गए।
बहन और बहनोई का ईमान
हज़रत उमर (रज़ि0) ने देखा कि उनकी बहन और बहनोई घर में कुछ पढ़ रहे हैं — यह क़ुरआन की आयतें थीं। जब उन्होंने इस्लाम कबूल करने की बात मानी, तो उमर ने ग़ुस्से में उन्हें मारना शुरू कर दिया। बहन का चेहरा लहूलुहान हो गया।
लेकिन उनकी बहन ने डटकर कहा:
“उमर! तू मार सकता है, लेकिन हमारे दिल से इस्लाम को नहीं निकाल सकता!”ये अल्फ़ाज़ उमर (रज़ि0) के दिल को छू गए।
क़ुरआन की आयतों से दिल का पिघलना
उमर (रज़ि0) ने कहा:
“जो तुम पढ़ रहे थे, मुझे भी दिखाओ।”
उनकी बहन ने कहा:
“तुम नापाक हो, पहले ग़ुस्ल करो।”ग़ुस्ल करने के बाद उमर ने जो आयतें पढ़ीं, वो सूरह ताहा की थीं:
“ताहा! हमने ये क़ुरआन तुम्हारे लिए इसलिए नहीं उतारा कि तुम परेशानी में पड़ो, बल्कि ये उन लोगों के लिए नसीहत है जो डरते हैं।”
(सूरह ताहा: 1-3)
इन आयतों ने उमर (रज़ि0) के दिल को नर्म कर दिया। उन्होंने कहा:
“ये किसी इंसान की बात नहीं हो सकती, ये तो हक़ है!”रसूलुल्लाह ﷺ के पास जाना और इस्लाम क़बूल करना
इसके बाद उमर (रज़ि0) सीधा रसूलुल्लाह ﷺ के पास पहुँचे। वहाँ हज़रत हम्ज़ा (रज़ि0) ने तलवार खींच ली, लेकिन नबी ﷺ ने कहा:
“उमर को अंदर आने दो।”जैसे ही उमर (रज़ि0) अंदर गए, बोले:
“या रसूलल्लाह! मैं इस्लाम लाना चाहता हूँ।”रसूलुल्लाह ﷺ ने “अल्लाहु अकबर!” कहकर तकबीर बुलंद की और वहाँ मौजूद सभी मुसलमानों ने ख़ुशी से नारा लगाया।
हज़रत उमर (रज़ि0) के इस्लाम लाने के फ़ायदे
1. इस्लाम की ताक़त बढ़ी – मुसलमान अब छिपकर नहीं, बल्कि खुलेआम नमाज़ पढ़ने लगे।
2. दीन की इज़्ज़त में इज़ाफ़ा हुआ – अब काफ़िर मुसलमानों को छेड़ने से डरने लगे।
3. मक्के की गलियों में तकबीर गूंजने लगी – पहली बार मुसलमान काबा में जमाअत से नमाज़ अदा करने लगे।
नतीजा
हज़रत उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) का इस्लाम लाना इस्लाम की फतह की तरफ़ पहला बड़ा क़दम था। इसके बाद इस्लाम और तेज़ी से फैला। लेकिन क़ुरैश ने मुसलमानों पर नए नए ज़ुल्म ढाने शुरू कर दिए — नतीजा हुआ दूसरी हब्शा की हिजरत और फिर ताइफ़ का सफ़र।
अगले भाग में पढ़िए:
1. दूसरी हब्शा की हिजरत – मुसलमानों को दोबारा हिजरत क्यों करनी पड़ी?
2. ताइफ़ का सफ़र – जब रसूलुल्लाह ﷺ दावत के लिए ताइफ़ गए तो वहाँ क्या हुआ?