बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
सीरत-उन-नबी (भाग 6): मुसलमानों पर अत्याचार
जब नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद ﷺ ने इस्लाम की खुली दावत दी, तो क़ुरैश के सरदारों को यह बिल्कुल पसंद नहीं आया। वे बुतपरस्ती छोड़ना नहीं चाहते थे, और इस्लाम का पैग़ाम उनके लिए एक खतरा बन गया। इस्लाम ने अमीरी-ग़रीबी, ऊँच-नीच का भेदभाव मिटाने की बात की, जिससे क़ुरैश के जालिम सरदारों को अपना रसूख़ (पावर) ख़तरे में लगने लगा।
इसके बाद उन्होंने मुसलमानों पर बहुत ज़्यादा जुल्म ढाने शुरू कर दिए। इस्लाम क़ुबूल करने की सज़ा के तौर पर उन्हें तरह-तरह की तकलीफें दी गईं। यह दौर इस्लामी तारीख़ का सबसे मुश्किल दौर था, जिसमें नबी ﷺ और उनके साथियों ने ज़बरदस्त सब्र और इस्तिक़ामत (दृढ़ता) दिखाई।
अगर आपने भाग 5 (इस्लाम की पहली दावत) नहीं पढ़ा है, तो पहले उसे जरूर पढ़ें:
➡️ सीरत-उन-नबी (भाग 5): इस्लाम की पहली दावत
मुसलमानों पर ज़ुल्म के कारण
1. इस्लाम की तालीमात से उनका असर ख़त्म हो रहा था – इस्लाम ने अल्लाह की इबादत, बराबरी और इंसाफ़ का पैग़ाम दिया, जबकि क़ुरैश अपनी ताक़त और दौलत के ज़ोर पर लोगों को दबाना चाहते थे।
2. मज़हबी असर और बुतपरस्ती को बचाना – क़ुरैश के सरदार बुतों की पूजा के ज़रिए हज के दौरान पैसा कमाते थे। इस्लाम ने बुतपरस्ती को खत्म करने की बात की, जो उनके लिए एक बड़ा नुकसान था।
3. हज़रत मुहम्मद ﷺ की बढ़ती लोकप्रियता – नबी ﷺ की सच्चाई और नेक अख़लाक़ की वजह से बहुत से लोग इस्लाम क़ुबूल कर रहे थे, जो क़ुरैश को पसंद नहीं था।
क़ुरैश का पहली बार इस्लाम का विरोध
जब नबी-ए-करीम ﷺ ने सबसे पहले अपने करीबियों को दावत दी, तो कुछ लोगों ने इसे तस्लीम कर लिया, लेकिन क़ुरैश के सरदारों ने इसे खुले तौर पर ठुकरा दिया। अबू लहब, अबू जहल और वलीद बिन मुग़ीरा जैसे लोगों ने इस्लाम को रोकने का बीड़ा उठाया।
1. अबू लहब
ये नबी ﷺ का अपना चाचा था, लेकिन इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया। इसने नबी ﷺ का मज़ाक उड़ाया और दूसरे लोगों को भी इस्लाम के खिलाफ भड़काया।
2. अबू जहल
ये इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन साबित हुआ। जब कोई ग़रीब इस्लाम कबूल करता, तो वो उसे सज़ा देता था।
3. उतबा और शैबा
ये दोनों भी इस्लाम के मुखालिफ़ थे और मुसलमानों को तकलीफ देते थे।
पहले मुसलमानों पर ज़ुल्म और सज़ाएं
जिन्होंने सबसे पहले इस्लाम कबूल किया, उन पर बहुत ज़ुल्म हुआ। क़ुरैश के सरदार चाहते थे कि ये लोग इस्लाम छोड़ दें, लेकिन मुसलमानों ने सब्र किया और अपने दीन पर क़ायम रहे।
1. हज़रत बिलाल बिन रबाह (रज़ि०)
हज़रत बिलाल رضي الله عنه, जो हब्शी गुलाम थे, जब मुसलमान हुए, तो उनके मालिक उम्मैया बिन ख़लफ़ ने उन्हें बहुत तकलीफें दीं।
उन्हें जलते हुए रेगिस्तान पर लिटाया जाता था।
उनके सीने पर बड़ा पत्थर रखा जाता था ताकि सांस न ले सकें।
उन्हें मारकर इस्लाम छोड़ने को कहा जाता था, लेकिन वे सिर्फ़ “अहद, अहद” (अल्लाह एक है) कहते रहते थे।
आख़िरकार, हज़रत अबू बक्र رضي الله عنه ने उन्हें ख़रीदकर आज़ाद कर दिया।
2. हज़रत सुमय्या (रज़ि०) – इस्लाम की पहली शहीदा
हज़रत सुमय्या (रज़ि०) पहली खातून थीं, जिन्होंने इस्लाम की राह में अपनी जान कुर्बान कर दी। अबू जहल ने उन्हें शहीद कर दिया क्योंकि उन्होंने इस्लाम से हटने से इनकार कर दिया था।
3. हज़रत यासिर (रज़ि०) और हज़रत अम्मार (रज़ि०)
हज़रत यासिर (रज़ि०) और उनके बेटे हज़रत अम्मार (रज़ि०) पर बहुत ज़ुल्म हुए। उनकी वालिदा, हज़रत सुमय्या (रज़ि०), को तो क़ुरैश ने शहीद कर दिया, लेकिन हज़रत अम्मार (रज़ि०) फिर भी अपने ईमान पर डटे रहे।
4. हज़रत खब्बाब बिन अरत (रज़ि०)
हज़रत ख़ब्बाब رضي الله عنه एक लोहार (blacksmith) थे। जब वे मुसलमान हुए, तो उनके मालिक उन्हें आग में तपाए हुए लोहे पर लिटाते थे, जिससे उनकी पीठ की चमड़ी जल जाती थी।
5. हज़रत सुहैब रूमी رضي الله عنه
हज़रत सुहैब رضي الله عنه बहुत अमीर आदमी थे, लेकिन जब मुसलमान हुए, तो उन्हें उनके माल से महरूम कर दिया गया और मक्का छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया।
रसूलुल्लाह ﷺ पर ज़ुल्म
नबी-ए-करीम ﷺ पर भी तरह-तरह के जुल्म किए गए।
1. अबू जहल का दुर्व्यवहार
एक दिन नबी ﷺ हरम शरीफ में नमाज़ पढ़ रहे थे, तो अबू जहल ने उंट की ओझड़ी लाकर उनके ऊपर डाल दी।
2. क़ुरैश का मज़ाक
जब रसूलुल्लाह ﷺ इस्लाम की दावत देते, तो लोग उनका मज़ाक उड़ाते और कहते कि ये सिर्फ़ कहानी-किस्से हैं।
3. गली-कूचों में परेशानी
जब नबी ﷺ घर से बाहर निकलते, तो उनके रास्ते में कांटे बिछा दिए जाते।
4. अबू लहब और उसकी बीवी का जुल्म
अबू लहब और उसकी बीवी उम्मे जमीला नबी ﷺ को बहुत तकलीफें देते थे। वे घर के दरवाज़े पर गंदगी फेंकते और कांटे बिछाते थे।
सिर्फ़ ग़रीब ही नहीं, बड़े लोग भी शिकार बने
ज़ुल्म सिर्फ़ ग़रीबों पर ही नहीं हुआ, बल्कि कुछ नामवर लोगों को भी तकलीफें दी गईं।
1. हज़रत उस्मान बिन अफ्फान (रज़ि०)
जब उन्होंने इस्लाम कबूल किया, तो उनके चाचा ने उन्हें रस्सियों से बांधकर बहुत मारा और इस्लाम छोड़ने को कहा। लेकिन हज़रत उस्मान (रज़ि०) ने अपना दीन नहीं छोड़ा।
2. हज़रत सआद बिन अबी वक्कास (रज़ि०)
जब उन्होंने इस्लाम कबूल किया, तो उनकी वालिदा ने कहा कि अगर वो इस्लाम नहीं छोड़ेंगे, तो वो खाना-पीना छोड़ देंगी। लेकिन उन्होंने इस्लाम नहीं छोड़ा और अपनी माँ को समझाया।
“क्या तुम यह समझते हो कि तुम यूँ ही जन्नत में चले जाओगे, जबकि अभी तक तुम पर भी वह हाल नहीं गुज़रा जो तुमसे पहले लोगों पर गुज़रा था?”
(सूरत अल-बक़रह: 214)
यह आयत बताती है कि हर मुसलमान को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन सब्र रखने वालों के लिए जन्नत है।
(मुसन्नफ इब्न अबी शैबा, हदीस 32294)
मुसलमानों के लिए हालात मुश्किल होते गए
जब मुसलमानों पर जुल्म बढ़ने लगा, तो रसूलुल्लाह ﷺ ने उन्हें हब्शा (अबीसिनिया) की तरफ़ हिजरत करने का मशवरा दिया। अगले हिस्से में हम पहली हिजरत की तफसील देखेंगे।
नतीजा
इस दौर में मुसलमानों ने बहुत तकलीफें सहीं, लेकिन किसी ने भी अपना ईमान नहीं छोड़ा। उनकी सब्र और इस्तेक़ामत की वजह से इस्लाम का पेड़ और मजबूत होता गया। अब अगले हिस्से में हम “हब्शा की पहली हिजरत” के बारे में जानेंगे।
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