सीरत-उन-नबी (भाग 7): हब्शा की पहली हिजरत

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।

सीरत-उन-नबी (भाग 7): हब्शा की पहली हिजरत

मक्का में मुसलमानों पर जुल्म बढ़ता जा रहा था। क़ुरैश के सरदार इस्लाम को खत्म करने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे थे। मुसलमानों को बेरहमी से सताया जाता, गालियाँ दी जातीं, मारा-पीटा जाता, और कुछ को तो शहीद भी कर दिया गया। इस मुश्किल हालात में अल्लाह के रसूल ﷺ ने मुसलमानों को एक ऐसे मुल्क की तरफ हिजरत करने की इजाज़त दी, जहाँ वो अमन से रह सकें। ये मुल्क हब्शा (अबीसिनिया) था, और वहाँ का बादशाह नजाशी एक नेक और इंसाफ पसंद हाकिम था।

अगर आपने भाग 6 (मुसलमानों पर अत्याचार) नहीं पढ़ा है, तो पहले उसे जरूर पढ़ें:

➡️ सीरत-उन-नबी ﷺ (भाग 6): मुसलमानों पर अत्याचार

क्यों चुनी गई हब्शा?

रसूलुल्लाह ﷺ ने हब्शा को हिजरत के लिए इसलिए चुना क्योंकि:

1. वहाँ का हाकिम नजाशी इनसाफ़ पसंद था और कमजोरों पर जुल्म नहीं करता था।

2. हब्शा क़ुरैश के असर से बाहर था, यानी वहाँ के लोग क़ुरैश के दबाव में नहीं आते थे।

3. वहाँ का माहौल मुसलमानों के लिए ज्यादा महफूज था।

पहली हिजरत – मुसलमानों का पहला क़ाफिला (615 CE)

नबी-ए-करीम ﷺ की इजाज़त से कुछ मुसलमान रात के अंधेरे में मक्का से रवाना हुए और समुंदर के रास्ते हब्शा पहुंचे। ये इस्लाम की पहली हिजरत थी।

1. पहली हिजरत में जाने वाले लोग:

पहली बार सिर्फ़ 12 मर्द और 4 औरतें हिजरत करके हब्शा पहुँचे। इनकी कयादत हज़रत उस्मान बिन अफ्फान (रज़ि०) और उनकी बीवी हज़रत रुकय्या (रज़ि०) (जो रसूलुल्लाह ﷺ की बेटी थीं) कर रहे थे।

2. कुछ नाम जो पहली हिजरत में शामिल थे:

1. हज़रत उस्मान बिन अफ्फान (रज़ि०)

2. हज़रत रुकय्या (रज़ि०)

3. हज़रत ज़ुबैर बिन अव्वाम (रज़ि०)

4. हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ (रज़ि०)

5. हज़रत मुसअब बिन उमैर (रज़ि०)

6. हज़रत अबू सलमा (रज़ि०) और उनकी बीवी उम्मे सलमा (रज़ि०)

7. हज़रत अमीर बिन रबीआ (रज़ि०) और उनकी बीवी लैला बिन्त अबू हथमा (रज़ि०)

हिजरत का सफर

मुसलमानों ने जल्दी-जल्दी सफर किया ताकि क़ुरैश को खबर न हो। जब वो समुद्र किनारे पहुँचे, तो अल्लाह की रहमत से उन्हें एक जहाज मिल गया, जिसमें बैठकर वो हब्शा रवाना हो गए। जब क़ुरैश को खबर लगी, तब तक मुसलमान हब्शा पहुंच चुके थे।

हब्शा में मुसलमानों का इस्तकबाल

जब मुसलमान हब्शा पहुंचे, तो नजाशी ने उन्हें खुश-आमद (स्वागत) कहा। उसने मुसलमानों को अपने मुल्क में रहने की इजाज़त दी। वहाँ मुसलमानों को अमन और इत्मिनान मिला, और वो अपने दीन की इबादत करने लगे।

क़ुरैश की चाल – हब्शा में मुसलमानों को पकड़वाने की कोशिश

जब क़ुरैश को पता चला कि मुसलमान हब्शा में सुकून से रह रहे हैं, तो उन्होंने वहाँ के हाकिम नजाशी के पास दो चालाक आदमी भेजे – अम्र बिन आस और अब्दुल्लाह बिन अबी रबीआ। ये लोग बहुत चालाक और होशियार थे।

क़ुरैश के नुमाइंदों ने नजाशी से क्या कहा?

1. ये लोग नजाशी के दरबार में बहुत से महंगे तोहफे लेकर गए।

2. उन्होंने नजाशी के दरबारियों को रिश्वत दी, ताकि वो नजाशी को मुसलमानों के खिलाफ कर दें।

3. फिर उन्होंने नजाशी से कहा:

“ऐ बादशाह! हमारे मुल्क के कुछ लोग यहाँ आकर बसे हैं।

ये हमारे मज़हब से अलग हैं और हमारे बुजुर्गों के दीन को छोड़ चुके हैं।

हम इन्हें वापस अपने मुल्क ले जाना चाहते हैं।”

नजाशी एक समझदार हाकिम था। उसने कहा:

“मैं ऐसे ही किसी को तुम्हारे हवाले नहीं कर सकता। पहले मैं खुद इन लोगों से बात करूंगा।”

हज़रत जाएद बिन हारिसा (रज़ि०) की तकरीर

नजाशी ने मुसलमानों को दरबार में बुलाया और पूछा:

“तुम लोग कौन हो? तुम्हारा दीन क्या है? क्यों अपने मुल्क से भागकर यहाँ आए हो?”

हज़रत जाएद बिन हारिसा (रज़ि०) ने बहुत ही बेहतरीन जवाब दिया:

1. हम पहले जुल्म और बुराइयों में डूबे हुए थे।

2. हम बुतों की पूजा करते, हराम खाते, जुल्म करते और कमजोरों को सताते थे।

3. फिर अल्लाह ने हमारे पास अपने नबी ﷺ को भेजा।

4. उन्होंने हमें सच्चाई, नेकदिली और इंसाफ सिखाया।

5. जब हमने इस्लाम कबूल किया, तो हमारी क़ौम ने हम पर जुल्म किए और हमें हमारे घरों से निकाल दिया।

नजाशी का इमान लाने का पहला इशारा

नजाशी ने मुसलमानों की बात सुनी और फिर हज़रत जाएद (रज़ि०) से पूछा:

“क्या तुम्हारे नबी कोई किताब भी लाए हैं?”

हज़रत जाएद (रज़ि०) ने सूरह मरयम की आयतें पढ़नी शुरू कीं। जब नजाशी ने ये सुनी, तो उसकी आँखों से आँसू बहने लगे और उसने कहा:

“ये वही सच्चाई है जो ईसा (अलैहिस्सलाम) लाए थे। मैं तुम्हें किसी हाल में क़ुरैश के हवाले नहीं करूँगा!”

नतीजा

इस तरह मुसलमान हब्शा में अमन के साथ रहने लगे। नजाशी ने उन्हें पनाह दी और मुसलमानों ने वहां अपने दीन की तब्लीग शुरू कर दी।

अब अगले भाग में हम देखेंगे कि हज़रत उमर (रज़ि०) कब इस्लाम लाए और इस्लाम को कैसे ताक़त मिली।

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