बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
सीरत-उन-नबी (भाग 2): नबी ﷺ की पैदाइश और उनकी परवरिश
इस्लाम के आखिरी पैगंबर हज़रत मुहम्मद मुस्तफा ﷺ की ज़िंदगी हर इंसान के लिए एक बेहतरीन नमूना है। इस लेख में हम सीरत-उन-नबी ﷺ के भाग 2 में नबी ﷺ की पैदाइश, परवरिश और शुरुआती जिंदगी के बारे में विस्तार से जानेंगे।
अगर आपने भाग 1 (मक्का में नबी ﷺ से पहले के हालात) नहीं पढ़ा है, तो पहले उसे जरूर पढ़ें:
➡️ सीरत-उन-नबी (भाग 1): मक्का में नबी से पहले के हालात
नबी ﷺ की पैदाइश
1. कब और कहाँ हुआ जन्म?
हमारे प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद ﷺ का जन्म 12 रबीउल अव्वल (571 ईस्वी) को मक्का में हुआ।
(इमाम इब्न कसीर रह.)
यह साल “आम-उल-फील” (हाथी वाला वर्ष) के नाम से मशहूर है, क्योंकि इसी साल यमन के राजा अबराहा ने काबा पर हमला किया था, जिसे अल्लाह ने अबाबील परिंदों के ज़रिए नाकाम कर दिया।
“क्या तुमने नहीं देखा कि तुम्हारे रब ने हाथी वालों के साथ क्या किया?”
(सूरह अल-फील 105:1-5)
2. नबी ﷺ का खानदान (वंश वृक्ष)
आप ﷺ का पूरा नाम: मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब बिन हाशिम
आपका खानदान “बनू हाशिम” क़बीले से था, जो क़ुरैश के सबसे प्रतिष्ठित क़बीलों में से एक था।
(सहीह अल-बुखारी: 3851)
(सीरत इब्न हिशाम 1/1)
(तफ़सीर इब्न कसीर)
3. नामकरण
दादा अब्दुल मुत्तलिब आपको अपनी गोद में लेकर खाना काबा गए और अल्लाह से दुआ की।
उन्होंने आपका नाम “मुहम्मद” रखा, जिसका मतलब है “जिसकी खूब तारीफ की जाए”।
(सीरत इब्न हिशाम 1/159)
(अस-सहीह अल-मुसनद मिन सीरति अन-नबी ﷺ पृष्ठ 33)
आपकी वालिदा बीबी आमिना ने आपका नाम “अहमद” रखा।
(सीरत इब्न कसीर 1/224)
(सहीह अल-बुखारी हदीस नंबर: 3535)
4. नबी ﷺ के आने की भविष्यवाणियाँ
नबी ﷺ के आने की खबर पहले से दी जा चुकी थी। कई आसमानी किताबों में उनके आने की निशानियाँ मौजूद थीं:
“और (याद करो) जब मरयम के बेटे ईसा ने कहा, ‘ऐ बनी इसराईल! मैं अल्लाह का रसूल हूँ जो तुम्हारी तरफ भेजा गया हूँ, तौरात की पुष्टि करता हूँ जो मुझसे पहले आई थी, और एक रसूल की खुशखबरी देता हूँ जो मेरे बाद आएगा, जिसका नाम अहमद होगा।'”
(सूरह अस-सफ 61:6)
✅ तौरात (हज़रत मूसा عليه السلام की किताब) – इसमें आख़िरी नबी के आने का ज़िक्र था।
✅ इंजील (हज़रत ईसा عليه السلام की किताब) – इसमें भी रसूल ﷺ के आने की खुशखबरी थी।
कई यहूदी और ईसाई आलिम (विद्वान) इस बात को जानते थे कि आखिरी नबी मक्का या मदीना से आएंगे।
पैदाइश से पहले ही पिता का इंतेकाल
नबी ﷺ के वालिद (पिता), हज़रत अब्दुल्लाह, नबी ﷺ की पैदाइश से पहले ही मदीना में इंतेक़ाल फरमा गए।
इमाम इब्न कसीर अपनी प्रसिद्ध किताब “अल-बिदायाह वान-निहायाह” में लिखते हैं:
“नबी ﷺ के वालिद, हज़रत अब्दुल्लाह, व्यापार के सिलसिले में شام गए थे। वापसी पर मदीना में बीमार हो गए और वहीं बनी नज्जार के घर ठहरे। कुछ दिनों बाद वहीं उनका इंतिकाल हो गया। उस समय नबी ﷺ अपनी वालिदा के पेट में थे।”
(अल-बिदायाह वान-निहायाह, इब्न कसीर, जिल्द 2, पृष्ठ 260-261)
इसीलिए, आप ﷺ यतीम (अनाथ) पैदा हुए।
कुरआन में अल्लाह ने इस पर फ़रमाया:
“क्या उसने तुम्हें यतीम पाकर पनाह नहीं दी?”
(सूरह अध-दुहा 93:6)
बचपन और परवरिश
1. दूध पिलाने वाली ख़वातीन
अरबों में यह रिवाज था कि बच्चों को गांव की साफ़ हवा और शुद्ध माहौल में परवरिश के लिए दूध पिलाने वाली औरतों के हवाले कर दिया जाता था।
(सीरत इब्न हिशाम, जिल्द 1, पृष्ठ 162-165)
सबसे पहले नबी ﷺ को उनकी माता आमिना ने दूध पिलाया।
फिर सूबहिया असलमिया नाम की एक सहाबिया ने कुछ दिन दूध पिलाया।
(अल-बिदायाह वान-निहायाह, इब्न कसीर, जिल्द 2, पृष्ठ 259-261)
जब दूध पिलाने वाली औरतें मक्का आईं, तो सभी अमीर घरानों के बच्चों को ले गईं, लेकिन क्योंकि मुहम्मद ﷺ यतीम थे, कोई भी उन्हें लेने को तैयार न था।
हज़रत हलीमा सादिया ने जब किसी और बच्चे को न पाया, तो उन्होंने नबी ﷺ को गोद ले लिया।
(सीरत इब्न हिशाम, जिल्द 1, पृष्ठ 162-165)
2. हज़रत हलीमा सादिया (रज़ि.) का घर
हज़रत हलीमा (रज़ि.) जब आपको अपने घर लेकर गईं, तो उनका घर बरकतों से भर गया।
उनका दूध देने वाला ऊंट पहले से ज़्यादा दूध देने लगा।
उनकी बकरी पहले से ज़्यादा दूध देने लगी।
उन्होंने महसूस किया कि मुहम्मद ﷺ की वजह से अल्लाह की रहमत और बरकत उनके घर में आई है।
(सीरत इब्न हिशाम, जिल्द 1, पृष्ठ 162-165)
3. सीना चाक करने का वाकिया
जब नबी ﷺ चार साल के थे, तो एक दिन हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम आए और आपका सीना मुबारक चाक किया।
उन्होंने आपके दिल को निकालकर जमज़म के पानी से धोया और उसमें से शैतान का हिस्सा निकाल दिया।
इसके बाद आपका दिल ईमान और हिकमत से भर दिया गया।
(सहीह मुस्लिम, हदीस 162)
(मुस्नद अहमद, हदीस 12699)
“जब हलीमा सादिया के बेटे ने नबी ﷺ को इस हालत में देखा कि आप का चेहरा पीला पड़ गया था, तो वह दौड़कर अपनी माँ के पास गया और उन्हें बताया। जब हलीमा और उनके शौहर पहुँचे, तो देखा कि नबी ﷺ खड़े हैं, लेकिन डरे हुए हैं। हलीमा घबरा गईं और उन्होंने फैसला किया कि अब उन्हें नबी ﷺ को वापस मक्का ले जाना चाहिए।”
(सीरत इब्न हिशाम, जिल्द 1, पृष्ठ 162-165)
नबी ﷺ की वालिदा (मां) का इंतेकाल
इब्न कसीर (रहमतुल्लाह अलैह) लिखते हैं:
“नबी ﷺ की माता आमिना आपको लेकर मदीना गईं, जहाँ उन्होंने आपके वालिद की क़बर पर हाज़िरी दी। वहाँ लगभग एक महीने रहीं और फिर मक्का लौटने लगीं। लेकिन रास्ते में अबवा नामक स्थान पर बीमार पड़ गईं और वहीं उनका इंतकाल हो गया। उन्हें वहीं दफना दिया गया। फिर दादा अब्दुल मुत्तलिब ने परवरिश संभाली, लेकिन जब आप 8 साल के हुए, तो उनका भी इंतकाल हो गया।”
(अल-बिदायाह वान-निहायाह, इब्न कसीर, जिल्द 2, पृष्ठ 265-266)
नबी ﷺ की परवरिश हज़रत अबू तालिब ने की
दादा के बाद, आपके चाचा हज़रत अबू तालिब ने आपको अपनी परवरिश में लिया।
अबू तालिब ने नबी ﷺ से बहुत मोहब्बत की और हर मुश्किल में उनका साथ दिया।
(सीरत इब्न हिशाम, जिल्द 1, पृष्ठ 168-169)
(अल-बिदायाह वान-निहायाह, इब्न कसीर, जिल्द 2, पृष्ठ 270-271)
बचपन में ईमानदारी और सच्चाई
नबी ﷺ बचपन से ही सच्चे, अमानतदार और शरीफ़ थे।
लोग आपको “अस-सादिक” (सच्चे) और “अल-अमीन” (अमानतदार) के नाम से पुकारते थे।
आपने कभी झूठ नहीं बोला और कभी किसी का हक़ नहीं मारा।
(सहीह बुखारी, हदीस 7, जिल्द 1)
क्या नबी ﷺ के कोई सगे भाई-बहन थे?
नहीं, नबी ﷺ के कोई सगे भाई या बहन नहीं थे। आप ﷺ अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे।
हालांकि, आपके दूध-शरीक (रज़ाई) भाई-बहन थे, क्योंकि अरब में यह रिवाज था कि नवजात बच्चों को कुछ समय के लिए दूध पिलाने वाली औरतों के सुपुर्द किया जाता था।
हज़रत हलीमा सादिया ने नबी ﷺ को दूध पिलाया था, इसलिए उनके बच्चे अबू सुफ़यान बिन हारिस, शैमा, और अब्दुल्लाह बिन हारिस नबी ﷺ के दूध-शरीक भाई-बहन थे।
इसी तरह, हज़रत सूबहिया असलमिया ने भी कुछ समय के लिए नबी ﷺ को दूध पिलाया, जिससे उनके बच्चे भी आपके दूध-शरीक भाई बने।
हदीस और कुरआन में ज़िक्र
1. नबी ﷺ की पैदाइश से पहले ही पिता के इंतेकाल का ज़िक्र:
“क्या उसने तुम्हें यतीम पाकर पनाह नहीं दी?”
(सूरह अध-दुहा 93:6)
2. अल्लाह ने नबी ﷺ के बचपन की देखभाल की:
“क्या हमने तुम्हारा सीना नहीं खोल दिया?”
(सूरह अश-शरह 94:1)
3. बचपन से ही सच्चे और अमानतदार होने का ज़िक्र:
“मुहम्मद (ﷺ) ने कभी झूठ नहीं बोला और न ही उन्होंने कभी अमानत में खयानत की। लोग उन्हें ‘अस-सादिक’ और ‘अल-अमीन’ के नाम से पुकारते हैं।”
(सहीह बुखारी, हदीस 7, जिल्द 1)
निष्कर्ष
नबी ﷺ का जन्म मक्का में हुआ और वह पैदा होते ही यतीम हो गए।
हज़रत हलीमा सादिया (रज़ि.) ने उन्हें दूध पिलाया और उनकी वजह से उनके घर में बरकतें आईं।
6 साल की उम्र में मां का और 8 साल की उम्र में दादा का इंतेकाल हो गया।
चाचा अबू तालिब ने परवरिश की और बचपन से ही नबी ﷺ सच्चाई और ईमानदारी के लिए मशहूर हो गए।
अगला भाग:
सीरत-उन-नबी (भाग 3): शादी और नबूवत मिलने तक का सफर
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अल्लाह हमें नबी ﷺ की सीरत पर चलने की तौफ़ीक़ दे, आमीन!
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