“बिद’अत क्या है? | नबी करीम ﷺ की हदीस से जानें दीन में बिद’अत का खतरा और उसके नुकसान”
“इस आर्टिकल में जानें कि बिद’अत क्या है और इस्लाम में बिद’अत को क्यों गुमराही कहा गया है। नबी करीम ﷺ की हदीस और कुरआन की आयत से समझें कि दीन में कोई नया इज़ाफा क्यों नहीं किया जा सकता।”
Hadees:”नबी करीम ﷺ ने फरमाया हर नया काम (दीन में) बिद’अत है, और हर बिद’अत गुमराही है।”
(सुनन अबू दाऊद हदीस नंबर 4607)
हदीस की तफसील:
इस हदीस में नबी करीम ﷺ ने दीन-ए-इस्लाम में नए अमल (बिद’अत) को शामिल करने के खतरों से आगाह किया है। इस्लाम एक मुकम्मल दीन है जो अल्लाह तआला की तरफ से मुकम्मल कर दिया गया है। इसमें किसी भी नए इज़ाफ़े की जरूरत नहीं है। अगर कोई नई चीज़ कुरआन और सुन्नत में मौजूद नहीं है और उसे दीन का हिस्सा बना लिया जाता है, तो इसे बिद’अत कहा जाता है और हर बिद’अत इंसान को गुमराही की तरफ ले जाती है।
बिद’अत की हकीकत:
1. बिद’अत क्या है?
बिद’अत हर वह नया अमल है जो नबी करीम ﷺ और सहाबा-ए-किराम के ज़माने में मौजूद नहीं था, लेकिन बाद में लोगों ने उसे दीन का हिस्सा बना लिया। इस्लाम में सिर्फ वही अमल क़ुबूल किया जाता है जो कुरआन और सही अहादीस से साबित हो।
2. बिद’अत के नुकसान
बिद’अत इंसान को असल दीन से दूर कर देती है और ऐसे आमाल में लगा देती है जो शरीअत के खिलाफ होते हैं। जो लोग बिद’अत को दीन समझकर अपनाते हैं, वे हक़ीक़त में अल्लाह के हुक्म की मुखालफ़त करते हैं।
दीन की मुकम्मलता
अल्लाह तआला ने कुरआन मजीद में फरमाया
Quran – “आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया और अपनी नेमत तुम पर पूरी कर दी और तुम्हारे लिए इस्लाम को दीन पसंद किया।”
(सूरह अल-माइदा 5:3)
इस आयत से यह बात साबित होती है कि इस्लाम मुकम्मल है और उसमें किसी भी नए अमल की कोई गुंजाइश नहीं है।
सबक़ – हमें दीन को कुरआन और सुन्नत की रोशनी में समझकर उस पर अमल करना चाहिए। हर वह अमल जो नबी ﷺ और सहाबा के दौर में नहीं किया गया, उसे दीन में शामिल करना गलत है और इससे बचना चाहिए।
नसीहत – हमें चाहिए कि हम अपने आमाल को कुरआन और सही हदीस के मुताबिक रखें और हर तरह की बिद’अत से बचें। अल्लाह हमें सही राह पर चलने की तौफीक दे।
नोट – इस हदीस से हमें यह सीख मिलती है कि दीन में किसी भी नए अमल को शामिल करने से पहले उसकी हकीकत को कुरआन और हदीस की रोशनी में परखना जरूरी है।
Conclusion
“इस्लाम में बिद’अत के खिलाफ नबी करीम ﷺ की हदीस और कुरआन की आयतों से यह साफ़ होता है कि हमारे दीन को बिना किसी नए इज़ाफ़े के पूरा किया गया है। हमें अपने हर अमल को सही अहादीस और कुरआन की रोशनी में समझना चाहिए और बिद’अत से बचना चाहिए। अपने दीन को सही तरीके से जानकर उस पर अमल करना ही हमारे लिए सच्ची राह है। अल्लाह हमें इस रास्ते पर चलने की तौफीक दे।”
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