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भारत की मुस्लिम हुकूमत का Part – 5: Iltutmish Ka Shasan

कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत में सत्ता संघर्ष शुरू हो गया। आरामशाह कमजोर शासक साबित हुआ, जिसके कारण दिल्ली के तुर्क अमीरों ने शम्सुद्दीन इल्तुतमिश (Iltutmish) को सुल्तान घोषित कर दिया। इल्तुतमिश ने न केवल अपने विरोधियों को हराया बल्कि दिल्ली सल्तनत को एक मज़बूत प्रशासनिक और सैन्य शक्ति में बदल दिया। उसने गुलाम वंश की “असली नींव” रखी और मंगोल आक्रमणों से भारत को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस लेख में हम इल्तुतमिश के जन्म, सत्ता संघर्ष, सैन्य विजय, प्रशासनिक सुधार, धार्मिक नीति और उसकी मृत्यु के बाद की स्थिति को विस्तार से जानेंगे।

इल्तुतमिश कौन था?

1. जन्म और प्रारंभिक जीवन:

इल्तुतमिश का जन्म 12वीं शताब्दी के अंत में तुर्किस्तान (मध्य एशिया) में हुआ था।

वह एक तुर्की कुलीन परिवार से था लेकिन उसके सौतेले भाइयों ने उसे गुलाम बना कर बेच दिया।

उसे एक व्यापारी ने खरीद लिया और बगदाद, फिर गजनी ले जाया गया, जहाँ उसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने खरीद लिया।

2. कुतुबुद्दीन ऐबक के अधीन इल्तुतमिश

कुतुबुद्दीन ऐबक ने उसकी काबिलियत देखकर उसे उच्च पद पर नियुक्त किया।

उसकी बहादुरी और निष्ठा के कारण कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी बेटी का निकाह इल्तुतमिश से कर दिया।

उसे “अमीर-ए-शिकदार” बनाया गया और बाद में बदायूं का गवर्नर नियुक्त किया गया।

3. दिल्ली का सुल्तान कैसे बना?

1210 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक की अचानक मृत्यु के बाद उसका बेटा आरामशाह दिल्ली का सुल्तान बना।

आरामशाह कमजोर और अयोग्य था, जिससे अमीरों और सरदारों में असंतोष बढ़ने लगा।

1211 ई. में तुर्क अमीरों ने इल्तुतमिश को दिल्ली बुलाया और उसे सुल्तान घोषित कर दिया।

इल्तुतमिश ने आरामशाह को हराकर दिल्ली की गद्दी संभाल ली।

इल्तुतमिश का शासनकाल (1211-1236)

इल्तुतमिश को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उसने अपनी रणनीति और प्रशासनिक क्षमता से दिल्ली सल्तनत को मजबूत किया।

1. आरामशाह को हटाकर सत्ता पर कब्ज़ा

आरामशाह कमजोर शासक था, इसलिए अमीरों और सरदारों ने इल्तुतमिश को सुल्तान घोषित कर दिया। आरामशाह को हराकर इल्तुतमिश ने गुलाम वंश की स्थिरता सुनिश्चित की।

2. मंगोल आक्रमण से भारत की रक्षा

चंगेज खान ने मध्य एशिया में तबाही मचाई और मंगोल आक्रमण का खतरा भारत पर भी मंडराने लगा।

इल्तुतमिश ने कूटनीति और सूझबूझ से मंगोलों को दिल्ली पर हमला करने से रोका।

3. चालुक्य और राजपूतों से संघर्ष

चालुक्य वंश और अन्य राजपूत राज्यों ने इल्तुतमिश के शासन को चुनौती दी।

रणथंभौर, मालवा, ग्वालियर, और बयाना पर कब्ज़ा कर लिया।

1226 में बंगाल के विद्रोह को कुचलकर उसे फिर से सल्तनत के अधीन किया।

4. दिल्ली सल्तनत की आधिकारिक मान्यता

1229 में बगदाद के अब्बासी खलीफा ने इल्तुतमिश को भारत का आधिकारिक सुल्तान मान लिया।

इससे दिल्ली सल्तनत को धार्मिक और राजनीतिक वैधता मिल गई।

5. प्रशासनिक सुधार और “तुर्कान-ए-चिहलगानी” की स्थापना

“तुर्कान-ए-चिहलगानी” (चालीस तुर्क अमीरों की परिषद) बनाई, जो शासन में सहायता करती थी।

सरकारी तंत्र को मजबूत किया और कई विभागों का गठन किया।

6. सिक्के और मुद्रा प्रणाली में सुधार

भारत में पहली बार “सिल्वर टंका” और “जिताल” नामक मुद्रा चलाई।

इससे व्यापार और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला।

7. कुतुब मीनार का निर्माण पूरा करवाया

कुतुब मीनार, जिसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने शुरू किया था, इल्तुतमिश ने 1231 में पूरा करवाया।

8. इबादतगाहों और मस्जिदों का निर्माण

जामा मस्जिद, मदरसे और कई धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया।

दिल्ली में हौज़-ए-शम्सी नामक एक विशाल जलाशय बनवाया।

9. इल्तुतमिश का मकबरा

इल्तुतमिश का मकबरा दिल्ली में कुतुब परिसर में स्थित है।

यह भारत का पहला गुलाम वंशीय मकबरा है।

इसकी दीवारों पर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं और यह इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का सुंदर उदाहरण है।

इल्तुतमिश की मृत्यु और उत्तराधिकारी

मृत्यु: 1236 ई. में लंबी बीमारी के बाद इल्तुतमिश की मृत्यु हो गई।

उसने अपनी बेटी रज़िया सुल्तान को अपना उत्तराधिकारी बनाया।

निष्कर्ष

इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का सबसे मजबूत शासक था। उसने मंगोल आक्रमण से भारत को बचाया, सल्तनत को आधिकारिक मान्यता दिलाई, प्रशासनिक सुधार किए और मुद्रा प्रणाली को मजबूत किया।

अगले भाग (Part – 6) में हम जानेंगे कि रज़िया सुल्तान भारत की पहली महिला शासक कैसे बनी और उसके शासनकाल में क्या हुआ।

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