बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
Chand Ke 2 Tukde Hona – Little Sign Of Doomsday (3)
इस्लाम की सच्चाई को साबित करने के लिए अल्लाह ने अपने नबी मुहम्मद ﷺ को बहुत सारे मोज़िज़े (चमत्कार) अता किए। इन में से सबसे बड़ा मोज़िज़ा “शक़-उल-क़मर” यानी चाँद के दो टुकड़े होने का वाक़िया है। यह सिर्फ़ एक मोज़िज़ा ही नहीं, बल्कि क़यामत की छोटी निशानियों में से भी एक निशानी है।
पिछली निशानी में हमने देखा कि कैसे फ़ितनों के साथ-साथ बड़ी-बड़ी मुसीबतें और परेशानियाँ भी आएंगी। अगर आपने वह नहीं देखा, तो इस आर्टिकल को देखें।
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इस्लामिक इतिहास में चाँद के दो टुकड़े होने का वाकया एक बहुत बड़ा मौजिज़ा (चमत्कार) था, जिसे नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह के हुक्म से दिखाया। यह घटना न केवल इस्लामी किताबों में दर्ज है, बल्कि इसका ज़िक्र क़ुरआन और हदीस में भी आता है। लेकिन क्या यह क़यामत की निशानी थी? क्या यह घटना पूरी दुनिया में देखी गई थी? और क्या साइंस भी इसे मानती है? आइए इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं।
चाँद के दो टुकड़े होने का वाकया कब और कैसे हुआ?
यह घटना तब हुई जब मक्का के कुछ काफ़िरों ने नबी करीम ﷺ से कहा कि अगर तुम सच्चे नबी हो, तो हमें कोई मौजिज़ा दिखाओ।
सहीह बुख़ारी की रिवायत के मुताबिक:
“क़ुरैश के लोगों ने नबी ﷺ से एक मौजिज़ा दिखाने की मांग की। अल्लाह के रसूल ﷺ ने अल्लाह से दुआ की और उनकी उंगली के इशारे से चाँद के दो टुकड़े हो गए। एक हिस्सा सफ़ा पहाड़ के एक तरफ़ और दूसरा दूसरी तरफ़ नज़र आया।”
(सहीह बुखारी: 3636, सहीह मुस्लिम: 2802)
क़ुरआन में भी इस घटना का ज़िक्र मिलता है:
“क़यामत क़रीब आ गई और चाँद दो टुकड़े हो गया। और अगर वो कोई निशानी देखते हैं, तो मुँह मोड़ लेते हैं और कहते हैं कि यह तो खुला हुआ जादू है।”
(सूरह अल-क़मर: 54:1-3)
मगर इसके बावजूद क़ुरैश के काफ़िरों ने इसे जादू कहकर इंकार कर दिया।
क्या यह क़यामत की निशानी थी?
जी हाँ, यह क़यामत की छोटी निशानियों में से एक थी। क़ुरआन में अल्लाह ने इसे क़यामत के क़रीब होने की निशानी बताया है। इसका मतलब यह नहीं कि क़यामत उसी वक़्त आ गई थी, बल्कि यह एक संकेत था कि क़यामत अब ज़्यादा दूर नहीं।
हज़रत अनस रज़ी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है:
“क़यामत की निशानियों में से यह भी है कि चाँद दो टुकड़े कर दिया जाएगा।”
(सहीह बुखारी: 3637)
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कुछ लोग क्यों मानते हैं कि यह एक कहानी है?
कुछ लोगों को इस घटना पर शक होता है। इसके पीछे कुछ सवाल उठाए जाते हैं, जिनका जवाब हम देते हैं:
Q1: अगर चाँद के दो टुकड़े हुए, तो पूरी दुनिया ने क्यों नहीं देखा?
✅ जवाब:
पूरी दुनिया में एक ही समय पर रात नहीं होती। जब अरब में रात थी, तो आधी दुनिया में दिन था, इसलिए वहां के लोग इसे देख नहीं सकते थे।
यह घटना कुछ सेकंड्स के लिए हुई, और तब के ज़्यादातर लोग सो रहे होते थे।
उस दौर में टेलीस्कोप और कैमरे नहीं थे, इसलिए इस घटना को रिकॉर्ड करने का कोई साधन नहीं था।
Q2: उस समय के दूसरे देशों ने इसका ज़िक्र क्यों नहीं किया?
✅ जवाब:
कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज़ों में इस घटना का ज़िक्र मिलता है।
भारत के राजा चेरामन पेरुमल ने इस घटना को देखा था और इस्लाम कबूल कर लिया था।
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Q3: क्या यह घटना केवल एक इस्लामी किताबों में लिखी गई है?
✅ जवाब:
इस्लामी किताबों के अलावा, कुछ प्राचीन भारतीय और चीनी ग्रंथों में भी इसका ज़िक्र मिलता है।
भारत के केरल में “चेरामन जुम्मा मस्जिद” इसी राजा की याद में बनाई गई थी।
क्या साइंस भी इसे मानती है?
NASA की रिपोर्ट के अनुसार, चाँद पर एक बहुत बड़ा रिल (Rille) नाम का दरार पाया गया है, जिसे “लूनर रिप्ट” (Lunar Rille) कहा जाता है। यह किसी बड़ी भौगोलिक घटना का संकेत देता है। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि यह दरार उसी समय बनी होगी, जब चाँद के दो टुकड़े हुए थे।
लेकिन विज्ञान अभी तक इसे पूरी तरह साबित नहीं कर पाया है।
इस घटना से हमें क्या सीख मिलती है?
1. अल्लाह की क़ुदरत पर यक़ीन:
यह साबित करता है कि अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर (सर्वशक्तिमान) है।
2. ईमान वालों का ईमान मज़बूत होता है:
सहाबा ने इस मौजिज़े को देखा और उनका ईमान और मज़बूत हुआ।
3. क़यामत की निशानियाँ हक़ हैं:
यह घटना क़यामत की निशानियों में से एक थी, जिससे हमें सबक लेना चाहिए।
नतीजा (Conclusion)
✔ चाँद के दो टुकड़े होना एक सच्ची घटना है, जिसे क़ुरआन, हदीस और कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज़ों में दर्ज किया गया है।
✔ यह क़यामत की निशानियों में से एक थी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि क़यामत उसी समय आ गई।
✔ साइंस ने भी चाँद पर बड़ी दरारें पाई हैं, जो इस घटना को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी साबित करने की कोशिश करती हैं।
✔ हमें इस मौजिज़े से अल्लाह की क़ुदरत पर यक़ीन रखना चाहिए और क़यामत की तैयारी करनी चाहिए।
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अल्लाह हमें नेक अमल करने की तौफीक़ अता फरमाए, आमीन!
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