15th Of Shaban 2024 – 15 Shaban Importance In Islam

15th Of Shaban 2024 – 15 Shaban Importance In Islam

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।

15th Of Shaban 2024

आज के ज़माने में इस्लाम के नाम पर काफी बिद्दते आम हो चुकी है उनमें से एक 15th Of Shaban 2024 है। लोगो का ये मानना है की 15 shaban ki ibadat अल्लाह के नजदीक सबसे अहम इबादत है। Shaban ka mahina 2024 में किया करना चाहिए और लोग क्या करते है Shaban ka Roza kab hai 2024 में तो आज हम इस पोस्ट में बात करेंगे 15 shaban importance in islam के बारे में

1. लैलतुल कद्र (शबे क़द्र) – Lailatul qadr 2024 – कुरान कब नाजिल हुआ।

Note – कुछ लोगो का ये मानना है की कुरान month of shaban 2024 में नाजिल होई और लैलातूल कद्र की रात Shaban ka mahina 2024 मे नाजिल होई तो हम कुरान और हदीस से देखते है

Quran – हमने कुरान को सबै कद्र में नाजिल करना शुरू किया और तुमको क्या मालूम सबै कद्र क्या है सबै कद्र हजार महीनो से बेहतर है इस रात में फरिस्ते जिब्राइल अलेह सलाम साल भर की हर बात का हुकुम लेकर उतरते है ये रात सुबह होने तक की है

(सूरह कद्र 97:1-4)

Quran – हमने कुरान को मुबारक रात सबै कद्र में नाजिल किया बेशक हम अजाब से डराने वाले है इसी रात को तमाम दुनिया के हर फैसले किए जाते है

(सूरह दुखान 44:3-4)

Quran – कुरान रमजान के महीने में नाजिल किया गया

(सूरज बकरा 2:185)

Hadees – शौकानी रह. कहते है कि जमहूर उलैमा के नज़दीक लैलातुल कद्र (Lailatul Qadr) से मुराद शबे कद्र (Sab E Qadr) है जिसमें कुरआन नाज़िल किया गया और जो रमज़ान के आखिर अशरे की ताक रातों में से एक है

(फह उल क़दीर – जिल्द 4 सफा 554)

Note – इन कुरान और हदीस के मुताबिक कुरान रमजान के महीने में ही नाजिल होए है

2. शबे बरात की सचाई – Shab e barat 2024

Note – कुछ लोग इस रात से 15 Shaban की रात मुराद लेते है और 15 shaban ki fazilat में कुछ हदीस भी पेश करते हैं। जैसे

Hadees – आईशा रज़ि. से रिवायत है कि मैनें एक रात अल्लाह के रसूल सल्ल. को गुम पाया तो में आपकी तलाश में निकली मैंने देखा कि आप अपना सर आसमान की तरफ़ उठाये हैं आप ने मुझ से फ़रमाया कि क्या तुम्हें इस बात का खौफ़ हुआ कि अल्लाह और उसका रसूल तुम्हारी ख्यानत करके तुम पर जुल्म करेंगे बाद में आप सल्ल. ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला 15th of shaban 2024 को आसमाने दुनिया पर नुजुल फरमाते है और क़बीला banu Kalb Ki Bakri के बालों से ज़्यादा लोगों के गुनाहों को बख्शते है

(तिर्मिज़ी – 636)
(इब्ने माजा -1389)

Note – इमाम तिर्मिर्ज़ी ने लिखा कि इमाम बुख़ारी इस हदीस को ज़ईफ कहते थे क्यों कि यहया बिन अबि कसीर का समाअ उर वाह बिन जुबैर से और हिजाज बिर अरताता का यहया बिन अब कसीर से साबित नहीं । यहया और हिजाज दोनों ने तदलीस की है । दारकृत्नी ने इस हदीस को गैर साबित कहा

3. 15 Shaban को नबी सल्लाहु अलैह वसल्लम ने लम्बा सजदा करा

Hadees – आईशा रज़ि. फरमाती हैं कि रसूल सल्ल. 15 shaban ki ibadat में खड़े होकर नमाज़ पढने लगे तो आपने इतना लम्बा सज्दा किया कि मुझे यह गुमान हुआ कि आप का इन्तेकाल हो गया। फिर आपने सज्दे से सर उठाया और जब नमाज़ से फारिग हुए तो फ़रमाया आज के दिन यानी 15th Of Shaban 2024 में अल्लाह गुनाहों की माफी चाहने वालों की मगफिरत फरमाता है, रहम चाहने वालों पर नज़रे रहमत करता है और कीना परवर को उसके अपने हाल पर छोड़ देता है । (बैहकी)

Note – यह रिवायत मुरसल है । (तोहफा अला हूज़ी जिल्द 2 सफा 52 ) इस हदीस के रावी अला बिन हारिस का आईशा रज़ि. से समाअ ( सुनना) साबित नहीं है यानि यह हदीस भी जईफ है।

4. 15th Of Shaban 2024 को बन्दों की बख्शीश

Hadees – अल्लाह तआला 15th of shaban 2024 को अपने बन्दों की तरफ देखता है, जिसमें मुश्कि और कीना पर वर के अलावा सभी खुताकारों को बख़्श देता है।

(अबु मुसा अशअरी, इब्ने माजा-1390)

Note – इब्ने माजा में यह हदीस दो सनदों से मरवी है और दोनों सनदें जुई हैं। पहली सनद वलीद बिन मुस्लिम की तदलीस, इब्ने अब्दुर्रहमान व अबु मूसा के बीच इन्केतअ की वजह से जईफ है। दूसरी सनद इब्ने लहिया के मुख़्तलित, जबीर बिन सलीम और अब्दुर्रहमान बिन अरज़ब के मजहूल और अबु मुसा रज़ि. से मुलाक़ात साबित न होने की वजह से ज़ईफ है।

5. Shaban Fasting Days 2024 – Shaban Ke Roze Kitne Hai

Hadees – अली रज़ि. बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फ़रमाया जब 15th shaban 2024 हो तो उसमें कयाम करो और 15 Shaban तारीख को दिन में रोज़ा रखो क्योंकि अल्लाह तआला 15 Shaban को सूरज छिपने के बाद से आसमाने दुनिया पर नुजुल फ़रमाता है और ऐलान करता है कि हे कोई मगफ़िरत चाहने वाला कि मैं उसे बख़्श दूं, है कोई रोज़ी का तालिब कि मैं उसे रोज़ी अता करूं और है कोई मुसीबत जदा जो मुसीबत से छुटकारा चाहता हो कि मैं उसे मुसीबत से छुटकारा दूं

(इब्ने माजा-1388)

Note – हाफिज़ इब्ने हजर कहते हैं कि उलेमा जिरह व तअदील ने इस हदीस के एक रावी अबु बकर बिन अबि सबरह को हदीसें गढ़ने वाला कहा । (तकरीब अल तहज़ीब जिल्द 1 सफा 410 ) अल्लामा ज़हबी और इमाम बुख़ारी ने ज़ईफ़ कहा। ( मीज़ान अल एतेदाल जिल्द 4 सफा 503 ) नसाई ने मतरूक कहा। इसी सनद में दो और रावी अहमद और इब्ने मोईन हैं जो हदीसें गढ़ा करते थे। (अल सुनन वल मुबतदिआत)

Hadees – जो 15 Shaban का रोज़ा रखे उसके 60 साल गुज़िश्ता और 60 साल आइन्दा के गुनाह माफ किये जायेंगे

(रावी – अली रज़ि., अल मौज़ आत जिल्द 2 सफा 130 – इब्ने जौज़ी )

Note – इब्ने जौज़ी का बयान है कि यह हदीस मौजूअ (मन घड़त) है। इस हदीस को गढ़ने वाला मुहम्मद बिन महाजिर है, यह जो नाम भी पाता लिख देता था और ऐसे लोगों का ज़िक्र करता जो मजहूल और गैर मअरूफ हैं। अहमद इब्ने हम्बल ने भी कहा- यह हदीसें गढ़ता था ।

Note – अल्लामा मुबारक पुरी लिखते हैं कि 15 Shaban के रोज़े के बारे में कोई मरफूअ हदीस सही या हसन या ऐसी जईफ रिवायत जिसका जौअफ मामूली हो, मरवी नहीं है

(मिरआत अल मातीह जिल्द 4 सफा 344)

Note – लिहाज़ा सिर्फ 15 Shaban का रोज़ा सुन्नत समझ कर रखना बिदअत और ख़िलाफ़े सुन्नत है। अलबत्ता अगर कोई अय्यामे बैद 13, 14, 15, तारीख के रोज़े रखता हो तो इस दिन रोज़ा रखने में बुराई नहीं। इसलिए कि

Hadees – अबु ज़र रज़ि. से रिवायत है कि रसूल सल्ल. ने फ़रमाया “जब रोज़ा रखे तो महीने में तीन दिन रोज़े रख 13-14 और 15 तारीख में

(तिर्मिज़ी – 658, नसाई-2408)

Hadees – अबु हुरैरा रज़ि. से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फ़रमाया ‘’जब बाकी रह जाए आधा महीना शबान का तो रोज़ा न रखो

(तिर्मिज़ी – 635, माजा – 1651)

6. 15 वीं शाबान में ख़ास नमाज़े पढ़ना कैसा है ? – 15 shaban ki ibadat

Hadees – जो शबान की 15th shaban 2024 में 100 रकअतों में 1000 दफा सूरह इखलास पढ़ेगा तो फौत नहीं होगा हत्ता कि अल्लाह तआला उसके ख़्वाब में सौ फ़रिश्ते भेजेगा जो उसे जहन्नम से अमान में रखेंगे और तीन फ़रिश्ते भेजेगा जो उसे ख़ता से महफूज रखेंगे और बीस (20) फ़रिश्ते जो उसके दुश्मन से तदबीर करेंगे

(इब्ने उमर रज़ि.)

Note – इब्ने ज़ौज़ी और शौकानी फ़रमाते हैं यह रिवायत मनगढ़त है। इसके अक्सर रावी मजहूल हैं। इब्ने इराक और सुयुती रह. ने भी मौजूअ कहा

(किताब अल मौजूआत जिल्द 2 सफा 51)

7. 15 shaban ki ibadat वाले का क़यामत में दिल नहीं मरेगा

Hadees – जिसने 15 shaban ki ibadat की उस का दिल उस दिन नहीं मरेगा, जिस दिन के दिल मुर्दा हो जायेंगे

Note – (करदूस रज़ि.) यह रिवायत सही नहीं है। इस का एक रावी मरवान बिन सालिम सच्चा नहीं।

Note – (अहमद) मतरूक है (नसाई व दारकुनी) दूसरा रावी सलमा बिन सुलैमान ज़ईफ़ है। ईसा बिन इब्राहीम मुन्कर अल हदीस है (बुखारी, नसाई और अब हातिम) यह हदीस मुन्कर है

( मीज़ान जिल्द 3 सफा 308)

Note – जिस हदीस में है के शअबान में अगले शअबान तक के सारे काम मुकर्रर कर दिये जाते है। यहां तक के निकाह, औलाद और मय्यत का होना भी । वह हदीस मुरसल है और ऐसी हदीसों से कुरआन का रद्द नहीं किया जा सकता

(तफसीर इब्ने कसीर जिल्द 5 सफा 62)

इन सब बिद्दत का जायजा लिया जाए जैसे की

8. सलाते अलफिया ( हज़ारी नमाज़ ) की हकीकत

Note – यह नमाज़ सौ रकआत पढ़ी जाती है। इस नमाज़ की हर रकआत में सूरह फातिहा एक बार और सूरह इखलास दस दफा पढ़ी जाती है। इस नमाज़ का सबूत कुरआन या किसी भी सही हदीस में नहीं मिलता। इसलिए यह बिदअत है, और दींन में हर बिद्दत गुमराही है।

9. सौ रकाअतों वाली नमाज़

Note – जिसने 15 Shaban की रात में सौ रकअतें पढ़ीं तो अल्लाह उसकी तरफ़ सौ फरिश्ते भेजेगा । तीस उसे जन्नत की बशारत देंगे। तीस उसे अज़ाबे जहन्नम से निजात दिलायेंगे । तीस उसे दुनिया की मुसीबतों से बचायेंगे और दस उसे शैतान से दूर रखेंगे।” यह रिवायत मनघड़त है। साहिबे कश्शाफ ने इसे बिना सनद के बयान किया है

मुल्ला अली कारी हनफी ने लिखा कि सौ रकअत वाली नमाज़ इस्लाम में चौथी सदी हिजरी के बाद गढ़ी गई । यह बैतुल मक़दिस में परवान चढ़ी और इसके सबूत के लिए हदीसें भी गढ़ी गई

(अल मौजूआत-सफा-440)

10. 15th of shaban 2024 में 12 रकात नवाज पड़ना

जिसने 15th of shaban 2024 की रात में बारह रकअतें पढ़ी और हर रकअत में तीस दफा सूरह इखलास पढ़ी। तो मरने से पहले जन्नत में उसका ठिकाना उसे दिखाया जायेगा और उसके घर वालों में से ऐसे दस लोगों के बारे में उसकी सिफारिश कुबुल की जायेगी। जिन पर जहन्नम वाजिब हो चुकी होगी

(अबु हुरैरा रज़ि.)

Note – इब्ने जौज़ी कहते हैं कि यह हदीस मौजूअ है। इसके रूवात मजहूल हैं। इमाम सुयुती, इब्ने हजर और इब्ने इराक़ ने भी मौजूअ क़रार दिया है

(अललमु त नाहिया जिल्द 1 सफा 70)

11. सलातुर्रगाइब पढ़ना कैसा ?

Note – हाफ़िज़ इराक़ी ने कहा – 15 Shaban की रात की नमाज़ वाली हदीस मन घड़त और झुठी है

(अल मुन्करात – सफा -74)

इमाम नौवी रह. लिखते हैं कि जो नमाज़ सलातुर्रगाइब के नाम से मशहूर है। उसका ज़िक्र कुव्वतुल कुलूब और अहया अल उलूम में आ जाने से धोखा न खाएं

(अल मजमूआ शरह अल मुहज़्ज़्ब जिल्द 4 सफा 56 )

Note – इमाम मुकद्दसी ने इस नमाज़ को बातिल करार दिया और कहा- इस नमाज़ का वजूद 448 हिजरी में हुआ ।

Note – इब्ने तिमिया रह. ने लिखा कि यह ऐसी नमाज़ है जिसे न नबी सल्ल. ने पढ़ा, न सहाबा रज़ि. ने और न ही ताबईन रह. ने

(अल मुन्करात जिल्द 4 सफा – 57)

इन नमाज़ों के बारे में जो रिवायतें आई हैं, वह सब मौजूअ ( मन घड़त ) हैं

(दुर्रे मुख़्तार – जिल्द 2 सफा – 48 )

12. शबे बराअत का हलवा

इस दिन कुछ लोग हलवा बनाते, खाते और खिलाते भी हैं और इसकी वजह आप सल्ल. के जंगे उहद में दनदाने मुबारक की शहादत पर आप सल्ल. का हलवा खाना बतलाते हैं तो कोई इसे हमज़ा रज़ि. की शहादत पर उनकी फातिहा का नाम देता है जबकि मोर्रेखीन का अजमाअ है कि ‘जंगे उहद’ शव्वाल तीन हिजरी में हुई। कोई कहता है कि चूंकि उवैस करनी रह. ने आप सल्ल. के दातों की शहादत के सदमे और आप सल्ल. की मुहब्बत में अपने सारे दांत तोड़ लिये थे और हलवा खाया था।

हालांकि तारीखी रोशनी में यह सारी बातें गलत हैं। अजीब बात यह है कि हलवा खाना सब पसन्द करते हैं लेकिन आप सल्ल. की मुहब्बत में अपने दांतो को शहीद कराना कोई नहीं चाहता।

13. शबे बरात में चिराग़ा

कुछ लोग इस रात में मस्जिदों, घरों और बाज़ारों और कब्रिस्तानों में चिरागा करते हैं। जबकि ऐसा करना ना आप सल्ल. से साबित है और न सहाबा रज़ि. से बल्कि इस रात में रोशनी करना बरमकियों की ईजाद है जो बातनी फिर्के से थे।

14. रूहों की वापसी का अक़ीदा

कुछ लोगों का यह अक़ीदा है कि शबान की 15th Of Shaban में मुर्दो की रूहें घर आती हैं। इसलिए उन रूहों का इस्तकबाल करने के लिए घरों को सजाते हैं, रोशनी करते हैं और हलवे वगैरह पर फातिहा लगा कर उसका सवाब उन रूहों को पहुंचाते हैं। हालांकि इस अमल का सबूत कुरआन व हदीस में क़तई नहीं है

Quran – मरने के बाद वह (रूहे) ऐसे आलमे बरज़ख़ में हैं कि क़यामत तक दुनिया में पलट कर नहीं आ सकते।

(मूमिनून 23-16, 100, यासीन 36-31, जुमर 39-42, गाफिर 40-11 तक्वीर 81-7)

Note – इसलिए भी कि “मोमिनीन की रूह इल्लीयीन में (तत्फीफ 83 – 18 ) और ‘“काफ़िरों की रूहें सिज्जीन में “ ( तत्फ़ीफ़ 83 – 7) रहती हैं

15. कब्रिस्तान की ज़ियारत

कब्रों की ज़ियारत के लिए कबिस्तान जाते रहना आप सल्ल. की सुन्नत है। कब्रिस्तान की ज़ियारत करने से मौत की याद आती है। इस दुनिया से बेरगुबती बढ़ती है। नेक काम करने को दिल चाहता है। मुर्दो के लिए दुआ की जाती है, जिससे मुर्दो को फायदा पहुंचता है। लेकिन कब्रों की ज़ियारत के लिए इस रात को ख़ास कर लेना कुरआन या किसी सही हदीस से साबित नहीं। कुछ लोग अपने इस अमल के लिये हज़रते आयशा रजि. से मैरवी हदीस (तिर्मिज़ी) से दलील पकड़ते हैं जो सही नहीं । इसलिए कि यह रिवायत सख़्त जईफ है। खुद इमाम तिर्मिज़ी रह. ने कहा कि इमाम बुखारी रह भी इस हदीस को जईफ़ कहते थे।

16. शबे बराअत की हक़ीक़त

शब फारसी ज़बान का लफ्ज़ है और बराअत अरबी का। अगर दीन में इसकी कोई असल होती तो इसका नाम “लैलतुल बराअत” होता । बराअत के मअनी नफ़रत और बेज़ारी जाहिर करने के होते हैं जैसा कि सूरह तौबा की एक आयत में है और ‘शब’ रात को कहा जाता है। इस तरह ‘शबे बराअत’ का मतलब ‘नफरत और बेज़ारी जाहिर करने वाली रात “ होती है।

मुस्लिम कहलाने वाला एक फ़िक़ इस रात में अपने फर्ज़ी (बारहवें ) इमाम की पैदाइश की खुशी मनाते है और सहाबा इकराम रज़ि. खुसुसन अबु बकर रज़ि., उमर रज़ि., और उसमान रज़ि. से बेज़ारी ज़ाहिर करता है। इस फिर्के का अकीदा है कि “इमाम महदी” इस रात में पैदा हुए थे और वह किसी गार में रूपोश हैं। वहीं से कयामत से पहले ज़ाहिर होंगे।

इस मुल्क में बहुत से दीनी अफ़कार हमें बादशाहों के ज़रिये मिले हैं। इस रात की अहमियत भी उन्हीं में से एक है ।

लेबल हमारी अकीदत का लगाया गया और काम अपना लिया गया और लोग ला इल्मी या कम इल्मी की वजह से इस दिन व रात की फ़ज़ीलत को गुज़रते वक्त के साथ सच समझने लगे। जबकि यह बेकद्र की रात है, न ही इस रात फ़रिश्ते उतरते हैं और न ही रूहें आती हैं।

कारी अब्दुल बासित साहब लिखतें हैं ‘सही बात यह कि दीने इस्लाम में ‘“शबे बराअत” का कोई तसव्वुर नहीं और शअबान की 15वीं शब के सिलसिले में पाई जाने वाली तमाम रिवायतें जईफ और कमज़ोर हैं । बअज़ मुहद्देसीन अगर चे फ़ज़ाइले आमाल के सिलसिले में जईफ रिवायतों को कुबूल करते है और उन पर अमल करने को दुरूस्त मानते हैं लेकिन मुतलकन नहीं बल्कि शराइत के साथ ।

जईफ़ रिवायतों की बुनियाद पर किसी चीज़ को दीन में इस्तेहबाब का दर्जा देना सही नहीं है च जाय के उस की वजह से किसी चीज़ को फ़र्ज़ या वाजिब या अरकाने इस्लाम वगैरह का दर्जा दे दिया जाए और उसका ऐसा इल्तेज़ाम किया जाए जैसा कि फ़र्ज़ व वाजिब के साथ किया जाना चाहिये।

Conclusion

आज हमने इस आर्टिकल में जाना 15th Of Shaban 2024 में मानना कैसा है। और हमे क्या करना चाहिए।

अल्लाह हमे नेक अमल करने की तोफिक आता फरमाए आमीन।

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