शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
Allah Pe Umeed Rakha Karo – तिर्मिज़ी हदीस 3540 की तफ्सीर
इस्लाम में तौबा (पश्चात्ताप) और मगफिरत (क्षमा) का बहुत बड़ा दर्जा है। अल्लाह तआला अपने बंदों से अनंत रहमत और दया का वादा करता है। जामिअ तिर्मिज़ी हदीस 3540 हमें यही सीख देती है कि चाहे हमारे गुनाह कितने भी बड़े क्यों न हों, अगर हम सच्चे दिल से अल्लाह की तरफ लौटें और उम्मीद रखें, तो अल्लाह हमें बख्श देगा।
Aaj Ki Hadees
Hadees In English
Aye Aadam Ke Bete Jab Tak Tu Mujhse Duaen Karta Rahega Or Mujhse Umeed Rakhega To Me Tujhe Bakasta Rakhunga Chahe Tere Gunna Kisi Bhi Darze Tak Poche Hoye Ho Mujhe Kisi Baat Ki Parva Nahi Hai
Aye Adam Ki Aulaad Agar Tere Gunna Aasman Ko Chunne Lage Fir Tu Mujhse Magfirat Talab Kare To Me Tujhe Baks Dunga Or Mujhe Kisi Baat Ki Parva Na Hogi
Aye Adam Ki Aulaad Agar Tu Zamin Brabar Bhi Gunna Kar Bethe Fir Tu Mujhse Mafirat Talab Karne Ke Liye Mile Lekin Mere Saath Kisi Tarha Ka Sirk Na Kiya Ho To Me Uske Brabar Tere Pass Magfirat Lekar Aaunga Or Tujhe Baks Dunga
Hadees In Hindi
अल्लाह रब्बुल आलमिन फरमान है।
ए आदम की औलाद जब तक तू मुझ से दुआ करता रहेगा और मुझसे उम्मीद रखेगा तो में तुझे बकस्ता रहूंगा चाहे तेरे गुना किसी भी दर्जे तक पोछे होए हो मुझे किसी बात की परवा नहीं।
ए आदम की औलाद अगर तेरे गुना आसमान को चुनने लगे फिर तू मुझ से मगफिरत तलब करे तो में तुझे बक्स दूंगा और मुझे किसी बात की परवा ना होगी।
ए आदम की औलाद अगर तू जमीन बराबर भी गुना कर बैठे फिर तू मुझ से मगफिरत तलब करने के लिए मिले लेकिन मेरे साथ किसी तरह का सिर्क ना किया हो तो में उसके बराबर तेरे पास मगफिरत लेकर आऊंगा और तुझे बक्स दूंगा।
(Jaamia Trimdhi 3540)
हदीस की तफ्सीर
1. अल्लाह की रहमत से उम्मीद रखना जरूरी है
यह हदीस हमें सिखाती है कि हमें कभी भी अल्लाह की रहमत से मायूस नहीं होना चाहिए। शैतान हमें हमेशा गुमराह करने की कोशिश करता है कि हमारे गुनाह बहुत ज्यादा हो गए हैं और अब अल्लाह हमें माफ नहीं करेगा। लेकिन यह सोचना गलत है, क्योंकि अल्लाह ने खुद कहा है कि जब तक हम उससे उम्मीद रखेंगे और उससे दुआ करेंगे, वह हमें माफ करता रहेगा।
कुरआन में भी यही संदेश दिया गया है:
“कहो (ऐ नबी!), ऐ मेरे वे बंदो, जिन्होंने अपनी जानों पर जुल्म किया है! अल्लाह की रहमत से मायूस न हो, निस्संदेह अल्लाह सारे गुनाह माफ कर सकता है।”
(सूरह अज़-ज़ुमर 39:53)
2. गुनाहों की अधिकता मायने नहीं रखती, बल्कि तौबा मायने रखती है
अगर इंसान के गुनाह आसमान की ऊंचाई तक भी पहुंच जाएं, तब भी अगर वह सच्चे दिल से तौबा कर ले, तो अल्लाह उसे माफ कर देगा। यह हमें हौसला देता है कि गुनाह कितने भी बड़े क्यों न हों, अल्लाह की दया हमेशा बड़ी होती है।
हदीस-ए-कुद्सी में अल्लाह तआला फरमाता है:
“मेरी रहमत मेरे ग़ुस्से पर भारी है।”
(सहीह मुस्लिम 2751)
3. शिर्क के अलावा हर गुनाह माफ हो सकता है
अल्लाह तआला हर गुनाह माफ कर सकता है, लेकिन शिर्क (अल्लाह के साथ किसी को साझी मानना) सबसे बड़ा गुनाह है, जिसे माफ नहीं किया जाएगा यदि इंसान इसी हाल में दुनिया से चला जाए।
कुरआन में अल्लाह फरमाता है:
“निःसंदेह, अल्लाह उसे माफ नहीं करेगा जो उसके साथ शिर्क करे, लेकिन उससे कम जो भी होगा, जिसे चाहे माफ कर देगा।”
(सूरह अन-निसा 4:48)
4. अल्लाह से तौबा की शर्तें
अगर कोई व्यक्ति अल्लाह से सच्चे दिल से मगफिरत तलब करता है, तो अल्लाह उसे माफ कर देता है। लेकिन तौबा की कुछ शर्तें होती हैं:
(A) गुनाह छोड़ने का पक्का इरादा हो।
(B) अल्लाह से सच्चे दिल से माफी मांगे।
(C) अगर किसी का हक़ मारा है, तो उसे वापस करे।
(D) फिर से उस गुनाह को न करने का संकल्प ले।
“जो व्यक्ति गुनाह से तौबा कर लेता है, वह ऐसा है जैसे उसने कभी गुनाह किया ही नहीं।”
(इब्ने माजा 4250)
निष्कर्ष
अल्लाह की रहमत बहुत बड़ी है, हमें कभी मायूस नहीं होना चाहिए।
अगर गुनाह बहुत ज्यादा भी हो जाएं, तब भी तौबा से माफ हो सकते हैं।
शिर्क से बचना जरूरी है, क्योंकि यह सबसे बड़ा गुनाह है।
तौबा की शर्तें पूरी करके हमें अल्लाह से मगफिरत मांगनी चाहिए।
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