बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रही

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।

Ma Baap Ke Liye Allah Ka Hukum – Surah Al-Isra (17:23) की तफ्सीर

इस्लाम में माता-पिता का दर्जा बहुत ऊँचा है। क़ुरआन और हदीस में बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि इंसान अपने मां-बाप के साथ भलाई करे और उनकी सेवा में कोई कमी ना छोड़े। सूरह अल-इसरा (17:23) इस विषय पर एक बहुत अहम आयत है, जिसमें अल्लाह तआला ने माता-पिता के हक़ को सीधे अपनी इबादत के बाद रखा है। इस लेख में हम इस आयत की तफ्सीर, इसके मायने, और इससे मिलने वाले सबक को तफ्सील से समझेंगे।

Aaj Ki Aayat

Hadees In English

Or Tumhare Rab Ne Ye Irshad Farmaya Hai Ki Uske Siva Kisi Ki Ibadat Na Karna Or Apne Ma Baap Ke Saath Bhalai Karte Rehna Agar Vo Buddape Tak Chale Jaye To Bhi Uff Tak Mat Karna Na Unse Gussa Se Baat Karna Balki Unse Adab Ke Saath Baat Karna Or Unke Liye Dua Karna Ki Jaisa Mujhe Unhone Bachpan Me Pala Vaise Hi Inke Haal Pe Rehm Farma

Hadees In Hindi

और तुम्हारे रब ने यह इरशाद फरमाया है की उसके सिवा किसी की इबादत ना करना और अपने मां बाप के साथ भलाई करते रहना अगर वो बुढ़ापे तक चले जाए तो भी उफ तक मत करना ना उनसे गुस्से से बात करना बल्कि उनसे अदब के साथ बात करना और उनके लिए दुआ करना की जैसे मुझे उन्होंने बचपन में पाला वैसे ही उनके हाल पर रहम फरमा।

(Surah Al-Isra 17:23)

इस आयत की तफ्सीर

1. अल्लाह की इबादत और मां-बाप के साथ भलाई एक साथ क्यों?

अल्लाह तआला ने इस आयत में सबसे पहले तौहीद यानी अपनी इबादत का हुक्म दिया और इसके फौरन बाद मां-बाप के साथ भलाई करने का आदेश दिया। इससे यह समझ आता है कि इस्लाम में माता-पिता का हक़ कितना बड़ा है। जैसे इबादत में किसी को शरीक करना हराम है, वैसे ही मां-बाप के साथ बदसुलूकी करना भी बहुत बड़ा गुनाह है।

2. बुढ़ापे में मां-बाप की खास देखभाल का हुक्म

अल्लाह तआला ने इस आयत में खासतौर पर तब का ज़िक्र किया है जब माता-पिता बुढ़ापे में पहुँच जाएँ, क्योंकि उस समय उन्हें सबसे ज़्यादा मोहब्बत और खिदमत की ज़रूरत होती है। बुढ़ापे में इंसान कमजोर और नाज़ुक हो जाता है, इसलिए बच्चों का फर्ज़ है कि वे अपने मां-बाप का ख्याल रखें, उनका सम्मान करें, और उनके साथ अच्छे लहजे में बात करें।

3. ‘उफ़’ तक ना कहने का हुक्म क्यों?

क़ुरआन में अल्लाह तआला ने फरमाया कि “फला तकुल लहुमा उफ़” यानी उन्हें ‘उफ़’ तक मत कहो।

‘उफ़’ एक छोटा सा शब्द है, लेकिन यह नाराज़गी, ग़ुस्सा और बेअदबी को दिखाता है।

अगर अल्लाह ने यह तक मना कर दिया कि ‘उफ़’ भी मत कहो, तो फिर सोचो कि अगर कोई उनसे चिल्लाकर बात करे, उन्हें गालियाँ दे, या उनकी नाफरमानी करे तो यह कितना बड़ा गुनाह होगा?

इमाम क़ुर्तबी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि अगर अल्लाह तआला ने ‘उफ़’ तक कहने से रोका है, तो इससे ज्यादा बुरी बातों का करना तो और भी बड़ा गुनाह होगा।

4. नरमी और इज्जत से बात करने का हुक्म

अल्लाह तआला ने हुक्म दिया कि “बल्कि उनसे इज्जत और आदर से बात करो।”

यानी जब उनसे बात करो तो नर्मी, प्यार और इज्जत से बात करो।

बुढ़ापे में मां-बाप कभी-कभी ज्यादा बोल सकते हैं, किसी बात पर गुस्सा भी कर सकते हैं, लेकिन हमें सब्र से काम लेना है और उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचानी।

रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया: “जो अपने माता-पिता को प्यार से देखे, अल्लाह उसे हज का सवाब अता करता है।” (शुअबुल ईमान)

5. माता-पिता के लिए दुआ करने का हुक्म

सूरह अल-इसरा (17:24) में आगे अल्लाह फरमाते हैं:

“और उनके लिए दुआ करो कि – ऐ मेरे रब! उन पर रहम फरमा, जैसे उन्होंने बचपन में मुझे पाला-पोसा।”

यह आयत हमें सिखाती है कि हमें सिर्फ अपने माता-पिता की सेवा ही नहीं करनी, बल्कि उनके लिए हमेशा दुआ भी करनी चाहिए।

जब तक वे ज़िंदा हों, उनकी खिदमत करो, और जब इस दुनिया से चले जाएँ तो उनकी मग़फिरत और रहमत के लिए अल्लाह से दुआ मांगो।

मां-बाप की सेवा के बारे में हदीसें

1. मां-बाप की खिदमत जन्नत का रास्ता है

रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया:

“मां-बाप अल्लाह की रहमत के दरवाजे हैं, चाहे तो इस दरवाजे को संभाल लो या इसे गँवा दो।”

(सुनन इब्न माजह)

2. सबसे बड़ा हक़ मां का है

एक शख्स ने रसूलअल्लाह ﷺ से पूछा:

“या रसूलअल्लाह! मेरे अच्छे सुलूक का सबसे ज़्यादा हक़दार कौन है?”

आप ﷺ ने फरमाया: “तुम्हारी मां।”

फिर उस शख्स ने दोबारा पूछा: “फिर कौन?”

आप ﷺ ने फरमाया: “तुम्हारी मां।”

फिर तीसरी बार पूछा: “फिर कौन?”

आप ﷺ ने फरमाया: “तुम्हारी मां।”

चौथी बार पूछने पर कहा: “फिर तुम्हारे वालिद।”

(सहीह बुखारी 5971)

3. मां-बाप की नाराज़गी, अल्लाह की नाराज़गी

रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया:

“अल्लाह की रज़ा बाप की रज़ा में है और अल्लाह की नाराज़गी बाप की नाराज़गी में है।”

(जामे तिर्मिजी)

निष्कर्ष

सूरह अल-इसरा (17:23) की यह आयत हमें सिखाती है कि माता-पिता का हक़ बहुत बड़ा है। हमें उनकी सेवा करनी चाहिए, उनसे इज्जत से बात करनी चाहिए, और उनके लिए दुआ करनी चाहिए। जो अपने माता-पिता की खिदमत करता है, अल्लाह उसे दुनिया और आख़िरत में बेहतरीन बदला देगा। हमें चाहिए कि हम अपने मां-बाप की दुआएं लें, क्योंकि उनकी दुआ ही हमारी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी दौलत है।

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