शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
Masjid Me Dakhil Hone Ki Dua : मस्जिद में जाने की दुआ और उसकी अहमियत
मस्जिद में दाखिल होने की दुआ जानिए, जो नबी करीम ﷺ की सुन्नत से साबित है। साथ ही मस्जिद में दाखिल होने के आदाब और इसके फायदे भी पढ़ें।
Masjid Me Dakhil Hone Ki Dua
English
Allahumma Aftahil Abwaba RahMatika
Hindi
अल्लाहुम्मा अफ्ताहिल अबवाबा राहमतिका।
Tarjuma In English
Ya Allah Mere Liye Apni Rehmat Ke Darwaze Khol De
Tarjuma In Hindi
या अल्लाह मेरे लिए अपनी रहमत के दरवाजे खोल दे।
(सहीह मुस्लिम 713)
मस्जिद में दाखिल होने की अहमियत
इस्लाम में मस्जिद को अल्लाह का घर कहा जाता है, और इसमें दाखिल होने से पहले एक खास दुआ पढ़ना सुन्नत है। यह दुआ रहमत और बरकत का जरिया बनती है और नबी करीम ﷺ की सुन्नत को ज़िंदा करने का सवाब भी मिलता है।
इसका फायदा:
1. अल्लाह की रहमत और बरकत हासिल होती है।
2. नबी ﷺ की सुन्नत को अपनाने का सवाब मिलता है।
3. अल्लाह मस्जिद में दाखिल होने वाले को अपने खास मेहमानों में शामिल करता है।
4. मस्जिद में दाखिल होते ही नेकियों का सिलसिला शुरू हो जाता है।
5. मस्जिद में दाखिल होने से अल्लाह गुनाहों को माफ कर देता है और नेकियों को बढ़ा देता है।
मस्जिद में दाखिल होने के सुन्नती आदाब
मस्जिद में दाखिल होते समय कुछ जरूरी आदाब हैं, जिनका पालन करना सुन्नत है:
1. दाहिने पैर से दाखिल हों
हदीस में आता है कि नबी ﷺ जब मस्जिद में दाखिल होते, तो दाहिने पैर से अंदर जाते और दुआ पढ़ते।
(सहीह बुखारी Hadith 444)
2. नियत सही करें
मस्जिद में सिर्फ अल्लाह की इबादत के लिए जाएं, न कि दुनिया की बातों के लिए।
(सहीह मुस्लिम Hadith 285)
3. तहिय्यतुल मस्जिद (2 रकात नफ्ल) पढ़ें
हदीस में आता है: “जब तुम में से कोई मस्जिद में दाखिल हो, तो बैठने से पहले दो रकात नफ्ल नमाज अदा करे।”
4. शांति और अदब के साथ दाखिल हों
मस्जिद में दाखिल होते समय ऊँची आवाज में बात न करें, दौड़कर अंदर न जाएं और शांति से प्रवेश करें।
5. दिल से अल्लाह का शुक्र अदा करें
मस्जिद तक पहुंचने पर अल्लाह का शुक्र अदा करें कि उसने आपको अपनी इबादत के लिए चुना।
6. इबादत में एकाग्रता और दिली सुकून हासिल होता है।
7. अल्लाह का जिक्र करने और इबादत करने की तौफीक़ मिलती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
इस्लाम में मस्जिद में दाखिल होते वक्त दुआ पढ़ना सुन्नत और बहुत फज़ीलत वाला अमल है। यह दुआ अल्लाह की रहमत और बरकत का जरिया बनती है और नबी ﷺ की सुन्नत को अपनाने का सवाब भी मिलता है।
अल्लाह हमें इस सुन्नत पर अमल करने की तौफीक़ दे, आमीन!
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