शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
Bakra Eid Kyu Manaya Jata Hai – कुर्बानी का हकीकी मतलब
बकरा ईद जिसे ईद-उल-अज़हा (عيد الأضحى) भी कहा जाता है, इस्लामिक साल की दूसरी बड़ी ईद है। यह ईद हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की कुर्बानी की याद में मनाई जाती है, जब उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे हज़रत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की कुर्बानी देने का इरादा किया था।
अल्लाह रब्बुल इज्जत ने यह कुर्बानी एक इम्तेहान के तौर पर रखी थी, जिसमें इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) और उनके बेटे ने कामयाबी हासिल की। इसके बदले अल्लाह ने जन्नत से एक मेंढ़ा (दुम्बा) भेज दिया, जिसकी कुर्बानी दी गई।
बकरा ईद मनाने की वजह – कुर्बानी की हकीकत
1. हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की आज़माइश
कुरआन में अल्लाह तआला इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की कुर्बानी का ज़िक्र इस तरह करता है:
“फिर जब वह (इस्माईल) उनके साथ दौड़ने-भागने की उम्र को पहुंचा, तो उन्होंने कहा: ऐ मेरे बेटे! मैंने ख्वाब में देखा कि मैं तुझे ज़िबह कर रहा हूँ, अब तू बता कि तेरा क्या ख़याल है? उसने कहा: ऐ मेरे वालिद! जो हुक्म दिया गया है उसे कर डालिए, इंशाअल्लाह आप मुझे सब्र करने वालों में से पाएंगे।”
(सूरह अस-साफ्फात 37:102)
यह सुनकर हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए तैयार हो गए, लेकिन जब उन्होंने छुरी चलाई, तो अल्लाह ने जन्नत से एक मेंढ़ा भेज दिया और इस्माईल (अलैहिस्सलाम) को बचा लिया।
2. कुर्बानी का असली मकसद – तक़वा और अल्लाह की रज़ा
कुरआन में अल्लाह फ़रमाता है:
“अल्लाह तक न तो उनके गोश्त पहुंचते हैं और न ही उनका खून, बल्कि उसकी बारगाह में तुम्हारा तक़वा पहुंचता है।”
(सूरह अल-हज 22:37)
यानी कुर्बानी का असली मकसद अल्लाह की रज़ामंदी और तक़वा (परहेज़गारी) को हासिल करना है।
3. क्या बकरा ईद की कुर्बानी वाजिब है?
हदीस में आता है:
“जो आदमी कुर्बानी करने की हैसियत रखता हो और फिर भी कुर्बानी न करे, वह हमारी ईदगाह के करीब न आए।”
(सुनन इब्न माजा 3123)
यानी जो शख्स कुर्बानी करने की हैसियत रखता है, उस पर यह वाजिब (जरूरी) है।
बकरा ईद से जुड़े अहम सवाल-जवाब
Q1. क्या कुर्बानी हर मुसलमान पर जरूरी है?
नहीं, कुर्बानी हर मुसलमान पर जरूरी नहीं है। यह सिर्फ उसी पर वाजिब है जो इसकी हैसियत रखता है। अगर किसी के पास कुर्बानी देने की हैसियत नहीं है, तो उस पर कोई गुनाह नहीं।
Q2. क्या यह कुर्बानी सिर्फ इस्लाम में है?
नहीं, कुर्बानी का अमल बहुत पुराना है। हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) के बेटों हाबील और क़ाबील ने भी अल्लाह के लिए कुर्बानी दी थी, लेकिन सिर्फ हाबील की कुर्बानी क़ुबूल हुई।
Q3. क्या कुर्बानी का गोश्त गरीबों को देना जरूरी है?
हां, कुर्बानी का गोश्त तीन हिस्सों में बांटना मुस्तहब (बेहतर) है:
1. एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों के लिए
2. एक हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए
3. एक हिस्सा खुद अपने परिवार के लिए
निष्कर्ष (Conclusion)
बकरा ईद हमें सब्र, अल्लाह की रज़ामंदी और तक़वा का पैग़ाम देती है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि जब अल्लाह की राह में कुर्बानी देने का वक्त आए, तो हमें अपने दिल और जान से तैयार रहना चाहिए।
दुआ
“अल्लाह हम सबको सही मायने में कुर्बानी की हकीकत समझने की तौफीक़ अता फरमाए और हमें इस पर अमल करने वाला बनाए। आमीन।”
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